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डॉक्टर बनने की चाहत क्या आपको डॉक्टर बना सकती है? जी हा! कैसे

मैंने कई साल पहले ऑस्ट्रेलिया के एक किशोर के साथ काम किया था। यह किशोर डॉक्टर और सर्जन बनना चाहता था, लेकिन उसके पास पैसा नहीं था; न ही उसने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की थी। ख़र्च निकालने के लिए वह डॉक्टरों के ऑफिस साफ करता था, खिड़‌कियाँ धोता था और मरम्मत के छुटपुट काम करता था।  उसने मुझे बताया कि हर रात जब वह सोने जाता था, तो वह दीवार पर टंगे डॉक्टर के डिप्लोमा का चित्र देखता था, जिसमें उसका नाम बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था। वह जहाँ काम करता था, वहाँ वह डिप्लोमाओं को साफ करता और चमकाता था, इसलिए उसे मन में डिप्लोमा की तस्वीर देखना या उसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं था। मैं नहीं जानता कि उसने इस तस्वीर को देखना कितने समय तक जारी रखा, लेकिन उसने यह कुछ महीनों तक किया होगा। जब वह लगन से जुटा रहा, तो परिणाम मिले। एक डॉक्टर इस लड़के को बहुत पसंद करने लगा। उस डॉक्टर ने उसे औज़ारों को कीटाणुरहित करने, इंजेक्शन लगाने और प्राथमिक चिकित्सा के दूसरे कामों की कला का प्रशिक्षण दिया। वह किशोर उस डॉक्टर के ऑफिस में तकनीकी सहयोगी बन गया। डॉक्टर ने उसे अपने खर्च पर हाई स्कूल और बाद में कॉलेज भी भेजा। आज

दौलत मनुष्य की सोचने की क्षमता है

एक बार मैंने एक एक्ज़ीक्यूटिव बोर्डरूम में सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक को ऐसी बात कहते सुना, जिसे मैं कभी नहीं भूला सका। उन्होंने कहा था, “मुझे ऐसा लगता है कि सत्यनिष्ठा दरअसल अपने आप में कोई आदर्श नहीं है, बल्कि यह तो बस वह आदर्श है, जो बाक़ी सभी आदर्शों की गारंटी देती है।”

जब भी मैं कोई रणनीतिक नियोजन सत्र आयोजित करता हूँ, तो सभी एक्ज़ीक्यूटिव जिस पहले आदर्श पर एकमत होते हैं, वह है सत्यनिष्ठा या ईमानदारी। लीडर जानते हैं कि सत्यनिष्ठा, विश्वास और विश्वसनीयता ही नेतृत्व की बुनियाद हैं। लीडर जिसमें विश्वास करते हैं, उसकी पैरवी के लिए खड़े होते हैं।

जॉन हंट्समैन सीनियर एक अरबपति थे, जिन्होंने शून्य से केमिकल कंपनी शुरू की और उसे 12 अरब डॉलर की कंपनी में बदल दिया। उनकी पुस्तक विनर्स नेवर चीट उनके खुद के अनुभव से ली गई कहानियों से भरी हैं, जिसमें उन्होंने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। 

जॉन हट्समैन सीनियर कहते थे कि सत्यनिष्ठा की बदौलत ही वे इतने सफल हुए। वे लिखते हैं, "व्यवसाय या जीवन के खेल में नैतिकता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। बुनियादी तौर पर तीन तरह के लोग होते हैं, असफल, अल्पकालीन सफल और वे जो सफल बनते हैं व बने रहते हैं। फर्क चरित्र का होता है।” 

अस्थायी विजेताओं के कई उदाहरण हैं, जिन्होंने धोखा देकर सफलता हासिल की थी। कुछ वर्षों तक एनरॉन को अमेरिका की सबसे नवाचारी और सबसे ज्यादा जोखिम उठाने वाली कंपनियों में गिना जाता था। कंपनी के सीईओ अमेरिका के सबसे महत्त्वपूर्ण लोगों को जानते थे, जिनमें अमेरिका के राष्ट्रपति भी शामिल थे। 

बात बस यह थी कि एनरॉन की सफलता झूठ की बुनियाद पर टिकी थी और जो 'विजेता' कंपनी का नेतृत्व कर रहे थे, वे सत्यनिष्ठा के अभाव की मिसाल थे। आपने संभवतः एनरॉन के सीईओ केनेथ ले और सीओओ जेफ्री स्किलिंग के बारे में सुना होगा। वे कई महीनों तक टीवी और अख़बार की सुर्ख़ियों में रहे थे।

जबकि जॉन हंट्समैन सीनियर (2012 में अमेरिका में राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने के दावेदार के पिता ) चकाचौंध से दूर अपनी अरबों डॉलर की कंपनी चलाते रहे। हो सकता है कि सत्यनिष्ठा वाले लीडर सबसे मशहूर या चकाचौंध वाले लीडर ना हों, लेकिन उन्हें परवाह भी नहीं होती। सत्यनिष्ठा का मतलब है सही चीज़ करना, क्योंकि यह सही चीज़ है और यही सफलता दिलाती है।

लीडर वादे करने में सतर्क रहते हैं, अनिच्छुक भी रहते हैं, लेकिन एक बार जब वे कोई वादा कर लेते हैं, तो वे बिना चूके उसे पूरा करते हैं और वे हमेशा सच बोलते हैं। जैक वेल्च इसे 'निष्कपटता' कहते हैं। वे मानते हैं कि अगर आप सच्चाई से घबराते हैं, तो आपमें प्रभावी लीडर बनने का गुर्दा नहीं है। आप खुद को जीहुजूरी करने वाले लोगों से घेर लेंगे, जो सच्चाई बताने के बजाय वही कहेंगे, जो आप सुनना चाहते हैं।
 
सत्यनिष्ठा वाला लीडर सच्चाई का सामना करने से नहीं घबराता है। जैक वेल्च इसे वास्तविकता का सिद्धांत कहते हैं “संसार को उस तरह देखना जैसा यह सचमुच है, वैसा नहीं जैसा आप इसे देखना चाहते हैं।” यह शायद नेतृत्व का सबसे अहम सिद्धांत है और सत्यनिष्ठा पर निर्भर है, क्योंकि इसमें सत्य और ईमानदारी की ज़रूरत होती है। कई कंपनियाँ और संगठन इसलिए असफल हो जाते हैं, क्योंकि वे वास्तविकता के सिद्धांत पर नहीं चलते हैं।

सत्यनिष्ठा का मतलब है सच्चाई बताना, भले ही सच्चाई अप्रिय हो। दूसरों को धोखा देने के बजाय ईमानदार होना बेहतर है, क्योंकि तब आप शायद ख़ुद को भी धोखा दे रहे होते हैं ।

लीडर्स को आत्मविश्वासी तो होना चाहिए, लेकिन उन्हें अपने मन में यह विचार भी रखना चाहिए कि वे गलत भी हो सकते हैं। कई लीडर अंततः सिर्फ इसलिए असफल हो जाते हैं, क्योंकि वे अपनी मान्यताओं या निष्कर्षों पर प्रश्न ही नहीं करते हैं। एलेक मैकेंजी ने एक बार लिखा था, “हर असफलता की जड़ में गलत धारणाएँ होती हैं।”

आत्मविश्वासी होने और अंधे होने के बीच फ़र्क होता है। आज के तीव्र परिवर्तन वाले संसार में एक संभावना यह है कि आप आंशिक रूप से या पूरी तरह से भी ग़लत हो सकते हैं। शायद आप ग़लत नहीं हैं, लेकिन उस संभावना के प्रति ख़ुद को खोलने से ही आप ज़्यादा प्रभावी लीडर बन जाते हैं, क्योंकि इससे आपका दिमाग़ नए विचारों या नई सोच के प्रति खुल जाएगा।

कम उम्र में अब्राहम लिंकन एक जनरल स्टोर में क्लर्क थे। एक दिन उन्हें पता चला कि एक ग्राहक ने कुछ सिक्के ज़्यादा दिए थे। लिंकन उस ग्राहक को खोजने और सिक्के लौटाने लिए कई मील पैदल चलकर गए। यह कहानी चारों तरफ़ फैल गई और जल्दी ही लिंकन को 'ईमानदार एब' का ख़िताब मिल गया। 

आगे चलकर उनकी असंदिग्ध ईमानदारी और सत्यनिष्ठा ने राष्ट्रपति बनने के बाद उनकी बहुत मदद की, जब उनके नेतृत्व में अमेरिका इतिहास के सबसे भीषण दौर से गुज़र रहा था, जहाँ देश का अस्तित्व ही दाँव पर लगा था। लिंकन संभवतः अपनी उपलब्धियों के लिए सबसे प्रशंसित और सम्मानित अमेरिकी राष्ट्रपति थे, लेकिन उनकी उपलब्धियों के मूल में वही सत्यनिष्ठा थी, जिसने छोटे लिंकन को उस ग्राहक को चंद सिक्के लौटाने के लिए प्रेरित किया था।

ईमानदारी और निष्पक्षता के कोई अपवाद नहीं होने चाहिए। उस ग्राहक ने सिर्फ़ चंद सिक्के ज़्यादा दिए थे, इससे अब्राहम लिंकन को कोई फ़र्क नहीं पड़ा था उस ग्राहक को पैसे लौटाने थे, यही सत्य था और इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था कि कितने। 

अगर आप छोटी स्थितियों में समझौता करने को तैयार रहते हैं, जो 'ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं हैं,' तो बड़ी परिस्थितियों में समझौता करना बहुत आसान हो जाता है। सत्यनिष्ठा एक मानसिक अवस्था है और यह स्थिति पर निर्भर नहीं करती है।

लीडर हमेशा निष्पक्ष रहते हैं, ख़ासतौर पर जब दूसरे लोग अन्यायपूर्ण हों। वास्तव में नेतृत्व की सच्ची निशानी यह है कि जब दूसरे आपके साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार कर रहे हों, तो आप कितने न्यायपूर्ण हो सकते हैं।

लीडर बनने के सात क़दम या तत्व :

1. इच्छा। आपमें नेतृत्व के अनुभव और ज़िम्मेदारी दोनों की सच्ची इच्छा होनी चाहिए।

2. निर्णय। निर्णय लें कि आप नेतृत्व के इन क़दमों की क़ीमत चुकाएँगे और इनका अभ्यास करेंगे। 

3. संकल्प। करियर के शुरुआती वर्षों से ही लीडर्स में लीडर बनने का और बने रहने का भारी संकल्प होता है।

4. अनुशासन। आत्म-अनुशासन कुंजी है। आत्म-महारत और आत्म-नियंत्रण हासिल करने की आपकी योग्यता ही काफ़ी हद तक यह तय करेगी कि आप नेतृत्व के कितने ऊँचे स्तरों तक पहुँच पाते हैं।

5. रोल मॉडलिंग। उन लीडर्स से सीखें जिनकी आप प्रशंसा करते हैं, इस बारे में सोचें कि आप उनके व्यवहार को अपने व्यवहार में कैसे उतार सकते हैं। 

6. अध्ययन। नेतृत्व पर पुस्तकें पढ़ें, नेतृत्व पर कोर्स करें और सीखें कि प्रभावी नेतृत्व क्या होता है। हमेशा यही सोचें कि आप जो पढ़ रहे हैं, उस पर कैसे अमल कर सकते हैं।

7. अभ्यास करें। नेतृत्व सीखा जा सकता है। नेतृत्व सीखा जाना चाहिए। नेतृत्व हमारी सभ्यता की सबसे बड़ी और सबसे ज़बर्दस्त आवश्यकता है। नेतृत्व करने वाले समूह में आपकी इतनी ज़्यादा ज़रूरत कभी नहीं रही, जितनी कि आज है।

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