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डॉक्टर बनने की चाहत क्या आपको डॉक्टर बना सकती है? जी हा! कैसे

मैंने कई साल पहले ऑस्ट्रेलिया के एक किशोर के साथ काम किया था। यह किशोर डॉक्टर और सर्जन बनना चाहता था, लेकिन उसके पास पैसा नहीं था; न ही उसने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की थी। ख़र्च निकालने के लिए वह डॉक्टरों के ऑफिस साफ करता था, खिड़‌कियाँ धोता था और मरम्मत के छुटपुट काम करता था।  उसने मुझे बताया कि हर रात जब वह सोने जाता था, तो वह दीवार पर टंगे डॉक्टर के डिप्लोमा का चित्र देखता था, जिसमें उसका नाम बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था। वह जहाँ काम करता था, वहाँ वह डिप्लोमाओं को साफ करता और चमकाता था, इसलिए उसे मन में डिप्लोमा की तस्वीर देखना या उसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं था। मैं नहीं जानता कि उसने इस तस्वीर को देखना कितने समय तक जारी रखा, लेकिन उसने यह कुछ महीनों तक किया होगा। जब वह लगन से जुटा रहा, तो परिणाम मिले। एक डॉक्टर इस लड़के को बहुत पसंद करने लगा। उस डॉक्टर ने उसे औज़ारों को कीटाणुरहित करने, इंजेक्शन लगाने और प्राथमिक चिकित्सा के दूसरे कामों की कला का प्रशिक्षण दिया। वह किशोर उस डॉक्टर के ऑफिस में तकनीकी सहयोगी बन गया। डॉक्टर ने उसे अपने खर्च पर हाई स्कूल और बाद में कॉलेज भी भेजा। आज

Motivational story

आप सचमुच क्या हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।

एक पति और पत्नी की कहानी है, जो कार से सैन डिएगो से लॉस एंजेलिस जा रहे हैं। पति सड़क से अपरिचित है, लेकिन इसके बावजूद तेज़ रफ़्तार से कार चला रहा है। एक मोड़ पर पत्नी कहती है, “प्रिय, क्या फ़ीनिक्स लॉस एंजेलिस के रास्ते में पड़ता है?"

पति पूछता है, “यह तुमने क्यों पूछा?" वह जवाब देती है, “देखो, मुझे अभी एक साइन बोर्ड दिखा, जिस पर लिखा था कि हम फ़ीनिक्स जाने वाली सड़क पर हैं।" पति जवाब देता है, “चिंता मत करो। हम बहुत तेज़ रफ़्तार से जा रहे हैं। "

जब आप अपने जीवन का एक्सीलरेटर दबाएँ, तो इससे पहले आपको पूरी तरह स्पष्ट कर लेना चाहिए कि आप सचमुच क्या हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।

प्रतिस्पर्धा की भीड़ में विशेषज्ञ बनने की कला

यहाँ मैं अपने अनुभव से एक उदाहरण दे रहा हूँ। मेरे एक मित्र ने कॉलेज की पढ़ाई पूरी की और बीमा उद्योग में जाने का निर्णय लिया। एक बार जब उसने अपना प्रशिक्षण पूरा कर लिया और उसे लाइसेंस मिल गया, तो वह बहुत सारे संभावित ग्राहकों को फोन कॉल करने लगा।

ज़ाहिर है कि सर्वश्रेष्ठ संभावित ग्राहक वे लोग होते हैं, जिनकी आमदनी तो ऊँची है, लेकिन उनके पास जीवन बीमा और वित्तीय नियोजन के बारे में अच्छे विकल्प चुनने या निर्णय लेने के लिए ना तो समय है, ना ही ज्ञान। मेरे मित्र ने पाया कि बाकी सारे एजेंट भी इसी दिशा में सोच रहे थे। इसके फलस्वरूप वे अपने ज़्यादातर प्रयास वकीलों, आर्किटेक्ट्स, इंजीनियरों, डॉक्टरों, दंतचिकित्सकों और व्यवसाय के मालिकों पर केंद्रित करते थे। जैसा कहा जाता है, “मछली पकड़ने वहीं जाएँ, जहाँ मछलियाँ रहती हैं।"

उसने निर्णय लिया कि प्रतिस्पर्धा की इस भीड़ से अलग हटकर दिखने के लिए उसे एक ख़ास तरह के ग्राहक और एक ख़ास तरह के बीमे व वित्तीय नियोजन के संदर्भ में विशेषज्ञ बनना चाहिए। उसने जीवन बीमा और एस्टेट प्लानिंग को चुना। उसने यह भी निर्णय लिया कि वह डॉक्टरों और दंतचिकित्सकों व चिकित्सा क्षेत्र के अन्य पेशेवर लोगों पर ध्यान केंद्रित करेगा।

फिर वह अपने साथी एजेंट से अलग हटकर दिखने के मकसद से चिकित्सा पेशे में विशेषज्ञ बनने के लिए समर्पित हो गया। वह डॉक्टरों से मिला, उसने मेडिकल एसोसिएशन की बैठकों में हिस्सा लिया, चिकित्सा संबंधी पत्रिकाएँ और शोधपत्र पढ़े। अंततः वह डॉक्टरों की वित्तीय आवश्यकताओं, ज़रूरतों और समस्याओं को पूरी तरह समझने लगा।

दो साल में ही उसने यह छवि बना ली कि वह चिकित्सा के पेशेवरों के लिए सबसे ज्ञानी वित्तीय नियोजक और बीमा विशेषज्ञ था। उसे डॉक्टरों के सामने आने वाली विशिष्ट समस्याओं पर बोलने तथा सेमिनार देने के लिए चिकित्सा सम्मेलनों में आमंत्रित किया जाने लगा, जहां वह उनके वित्तीय जीवन को व्यवस्थित करने के सबसे अच्छे तरीके बताता था।

पाँच साल के भीतर वह विश्व के सबसे शीर्ष बीमा एजेंटों में से एक बन गया। अब वह एक साल में सीधे कमीशन से एक मिलियन डॉलर से ज़्यादा कमा रहा था। यह विशेषज्ञता, विशिष्टीकरण और खंडीकरण की बदौलत हुआ था। यह इस कारण हुआ, क्योंकि उसने सटीकता से उन ग्राहकों पर ध्यान केंद्रित किया था, जो उसके व्यवसाय में उसकी सबसे ज्यादा आमदनी करा सकते थे।

न्यायधीश का अनोखा दंड 

अमेरिका में एक पंद्रह साल का लड़का था, स्टोर से चोरी करता हुआ पकड़ा गया। पकड़े जाने पर गार्ड की गिरफ्त से भागने की कोशिश में स्टोर का एक शेल्फ भी टूट गया। 

जज ने जुर्म सुना और लड़के से पूछा, "क्या तुमने सचमुच चुराया था ब्रैड और पनीर का पैकेट"?

लड़के ने नीचे नज़रें कर के जवाब दिया- जी हाँ।

जज :- क्यों ?

लड़का :- मुझे ज़रूरत थी।

जज :- खरीद लेते।

लड़का :- पैसे नहीं थे।

जज:- घर वालों से ले लेते।

लड़का:- घर में सिर्फ मां है। बीमार और बेरोज़गार है, ब्रैड और पनीर भी उसी के लिए चुराई थी।

जज:- तुम कुछ काम नहीं करते ?

लड़का:- करता था एक कार वाश में। मां की देखभाल के लिए एक दिन की छुट्टी की थी, तो मुझे निकाल दिया गया।

जज:- तुम किसी से मदद मांग लेते?

लड़का:- सुबह से घर से निकला था, लगभग पचास लोगों के पास गया, बिल्कुल आख़िर में ये क़दम उठाया।

जिरह ख़त्म हुई, जज ने फैसला सुनाना शुरू किया, चोरी और विशेषतौर से ब्रैड की चोरी बहुत ही शर्मनाक अपराध है और इस अपराध के हम सब ज़िम्मेदार हैं।

"अदालत में मौजूद हर शख़्स.. मुझ सहित सभी अपराधी हैं, इसलिए यहाँ मौजूद प्रत्येक व्यक्ति पर दस-दस डालर का जुर्माना लगाया जाता है। दस डालर दिए बग़ैर कोई भी यहां से बाहर नहीं जा सकेगा।"

ये कह कर जज ने दस डालर अपनी जेब से बाहर निकाल कर रख दिए और फिर पेन उठाया लिखना शुरू किया:- इसके अलावा मैं स्टोर पर एक हज़ार डालर का जुर्माना करता हूं कि उसने एक भूखे बच्चे से इंसानियत न रख कर उसे पुलिस के हवाले किया।

अगर चौबीस घंटे में जुर्माना जमा नहीं किया तो कोर्ट स्टोर सील करने का हुक्म देगी।

जुर्माने की पूर्ण राशि इस लड़के को देकर कोर्ट उस लड़के से माफी चाहती है।

फैसला सुनने के बाद कोर्ट में मौजूद लोगों के आंखों से आंसू तो बरस ही रहे थे, उस लड़के की भी हिचकियां बंध गईं। वह लड़का बार बार जज को देख रहा था जो अपने आंसू छिपाते हुए बाहर निकल गये।

क्या हमारा समाज, सिस्टम और अदालत इस तरह के निर्णय के लिए तैयार हैं?

✓यदि कोई भूखा व्यक्ति रोटी चोरी करता पकड़ा जाए तो उस देश के लोगों को शर्म आनी चाहिए।

ईमानदारी और निष्पक्षता के कोई अपवाद नहीं.....

कम उम्र में अब्राहम लिंकन एक जनरल स्टोर में क्लर्क थे। एक दिन उन्हें पता चला कि एक ग्राहक ने कुछ सिक्के ज़्यादा दिए थे। लिंकन उस ग्राहक को खोजने और सिक्के लौटाने लिए कई मील पैदल चलकर गए। यह कहानी चारों तरफ़ फैल गई और जल्दी ही लिंकन  को 'ईमानदार एब' का ख़िताब मिल गया। 

आगे चलकर उनकी असंदिग्ध ईमानदारी और सत्यनिष्ठा ने राष्ट्रपति बनने के बाद उनकी बहुत मदद की, जब उनके नेतृत्व में अमेरिका इतिहास के सबसे भीषण दौर से गुज़र रहा था, जहाँ देश का अस्तित्व ही दाँव पर लगा था। लिंकन संभवतः अपनी उपलब्धियों के लिए सबसे प्रशंसित और सम्मानित अमेरिकी राष्ट्रपति थे, लेकिन उनकी उपलब्धियों के मूल में वही सत्यनिष्ठा थी, जिसने छोटे लिंकन को उस ग्राहक को चंद सिक्के लौटाने के लिए प्रेरित किया था।


ईमानदारी और निष्पक्षता के कोई अपवाद नहीं होने चाहिए। उस ग्राहक ने सिर्फ़ चंद सिक्के ज़्यादा दिए थे, इससे अब्राहम लिंकन को कोई फ़र्क नहीं पड़ा था उस ग्राहक को पैसे लौटाने थे, यही सत्य था और इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था कि कितने। 

अगर आप छोटी स्थितियों में समझौता करने को तैयार रहते हैं, जो 'ज़्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं हैं,' तो बड़ी परिस्थितियों में समझौता करना बहुत आसान हो जाता है। सत्यनिष्ठा एक मानसिक अवस्था है और यह स्थिति पर निर्भर नहीं करती है।

द रूल्स ऑफ़ सिविलिटी एंड डिसेंट बिहेवियर इन कंपनी एंड कनवर्सेशन.....


जॉर्ज वॉशिंगटन एक मध्यवर्गीय परिवार में पैदा हुए थे, जिनके पास ज्यादा सुविधाएं नहीं थीं, लेकिन अंततः वे अमेरिकी सेना के सेनापति और अमेरिका के पहले राष्ट्रपति बने। अमेरिका की स्थापना के तूफानी दौर में भी वॉशिंगटन हमेशा अपने शालीन व्यवहार और शिष्ट अंदाज़ के लिए मशहूर थे। बहुत कम लोगों को यह पता है कि किशोरावस्था में उन्होंने एक पुस्तक पढ़ी थी, जिसने उनके लंबे जीवनकाल में उनके व्यवहार का मार्गदर्शन किया। इस पुस्तक का शीर्षक था द रूल्स ऑफ़ सिविलिटी एंड डिसेंट बिहेवियर इन कंपनी एंड कनवर्सेशन वॉशिंगटन ने इस पुस्तक के 110 नियम व्यक्तिगत नोटबुक में लिख लिए और इस नोटबुक को जीवनभर साथ रखा।


कोरी स्लेट या टेब्युला रासा की सोच का इंसान में छिपी संभावनाओं से संबंध.....

स्कॉटिश दर्शनशास्त्री डेविड ह्यूम ने सबसे पहले टेब्युला रासा (tabula rasa) या कोरी स्लेट की सोच को लोगों के सामने रखा था। इस सिद्धांत के अनुसार हर इंसान जब दुनिया में आता है तो उसके पास सोच या विचार के तौर पर कुछ भी नहीं होता और वो हर चीज जो इंसान सोचता या महसूस करता है, वह सब, उसने यहीं पर अपने शिशुकाल से सीखी होती हैं। 

कहने का मतलब है कि एक बच्चे का दिमाग एक कोरी स्लेट की तरह होता है जिस पर उससे संपर्क में आने वाला हर व्यक्ति और अनुभव अपनी छाप छोड़ देते हैं। बड़ा होने के दौरान वो जो भी सीखता है, महसूस करता है या अनुभव हासिल करता है. वयस्क अवस्था एक तरह से इन्हीं सब बातों का निचोड़ होती है। 

जाहिर तौर पर वयस्क बाद में जो कुछ भी करता या बनता है वो एक तरह से उसके बड़े होने की प्रक्रिया का ही परिणाम होता है। जैसा कि एरिस्टोटल ने लिखा है, "जिस किसी भी बात का प्रभाव पड़ता है, वही अभिव्यक्त होती है।"

जहाँ तक इंसान में छिपी संभावनाओं को जानने के क्षेत्र की बात है तो निज धारणा (self concept) को 20वीं सदी की सबसे बड़ी खोज कहा जा सकता है। इस सोच के मुताबिक हर इंसान जन्म से ही अपने बारे में एक धारणा कायम करता जाता है। फिर आपकी अपने बारे में यही धारणा ही आपके अवचेतन के कंप्यूटर को संचालित करने वाला मास्टर प्रोग्राम बन जाती है। फिर यही तय करती है कि आप क्या सोचेंगे, क्या कहेंगे, महसूस करेंगे और क्या करेंगे। यही वजह है कि आपकी ज़िंदगी में सारा बदलाव, खुद के बारे में धारणा बदलने और अपने बारे में या अपनी दुनिया के बारे में सोचने का अंदाज़ बदलते ही दिखाई देने लगता है।

हर बच्चे का जन्म खुद के बारे में बिना किसी धारणा के होता है। एक वयस्क के तौर पर आपकी हर सोच, मत, अनुभव, व्यवहार या किसी बात को आँकने की क्षमता, आपने बचपन से ही सीखी है। आज आप जो कुछ भी हैं वो उसी सोच या धारणा का परिणाम है जिसे आपने हक़ीक़त मान लिया है। वास्तविकता चाहे जो हो, जब आप किसी बात को सही मान लेते हैं तो वही आपके लिए सच बन जाती है। "आप वो नहीं हैं जो कि आप सोचते हैं कि आप हैं, लेकिन आप जो सोचते हैं आप वो ही हो जाते हैं।"


आख़िरकार, बिलकुल सपाट याददाश्त के साथ वह घर लौटी। एक नई शुरुआत.....

 काफ़ी पहले की बात है 30 वर्ष की एक विवाहित महिला थी, जिसके दो बच्चे थे। अन्य लोगों की ही तरह, उसका लालन-पालन एक ऐसे घर में हुआ था, जहाँ उसे हर वक्त आलोचनाओं का सामना करना पड़ता था और माँ-बाप का उसके साथ व्यवहार भी अधिकांशतया अच्छा नहीं होता था। 

परिणाम यह हुआ कि उसमें हीनभावना और स्वाभिमान की कमी घर कर गई, और उसमें आत्मविश्वास नाम की भी कोई चीज़ नहीं थी। नकारात्मक सोच के साथ वो हर वक्त डरी-सहमी सी भी रहती थी। वह बहुत ही शर्मीली थी और खुद को महत्वहीन समझती थी। उसे लगता था कि उसमें किसी भी काम के लायक प्रतिभा नहीं थी।

एक दिन, वह कार से स्टोर जा रही थी, लाल बत्ती की अनदेखी करके एक कार आई और उसकी कार से भिड़ गई। जब होश आया तो उसने खुद को अस्पताल में पाया। सिर में हल्की चोट के साथ ही उसकी पूरी याददाश्त ही चली गई थी। वह अब बोल तो सकती थी, लेकिन अपनी गुज़री हुई जिंदगी के बारे में उसे कुछ भी याद नहीं था। वह बिना याददाश्त वाली बनकर रह गई थी।

पहले, डॉक्टरों को लगा कि उसकी यह हालत कुछ दिन तक ही रहेगी। हफ्ते गुज़रे लेकिन उसकी याददाश्त थी कि लौटने का नाम ही नहीं ले रही थी। उसका पति और बच्चे हर रोज़ उससे मिलने आते थे, लेकिन वह उन्हें पहचान नहीं पाती थी। यह अपनी किस्म का एक ऐसा विशिष्ट मामला था कि दूसरे डॉक्टर और विशेषज्ञ भी उसे देखने के लिए आने लगे। वे उसका परीक्षण करते थे और उससे उसका हाल-चाल पूछ लेते थे।

आख़िरकार, बिलकुल सपाट याददाश्त के साथ वह घर लौटी। अपने साथ क्या हुआ है, इसे जानने के लिए उसने चिकित्सा विज्ञान की किताबें पढ़कर, याददाश्त जाने के कारणों का अध्ययन शुरू किया। उसने इस क्षेत्र के विशेषज्ञों से मुलाक़ातें और बातचीत की।

 आखिरकार उसने अपनी हालत पर एक पेपर लिख डाला। कुछ ही दिन के बाद, उसे अपना पेपर पढ़ने और उससे संबंधित सवालों के जवाब देने के लिए एक चिकित्सा सम्मेलन में शामिल होने का आमंत्रण मिला। उसे न्यूरोलॉजी संबंधी अपने अनुभव और विचार भी साझा करने थे।

इस दौरान एक चमत्कार ही हुआ। वह बिलकुल ही अलग इंसान बन गई। अस्पताल और बाहर सबकी चर्चा का केंद्र बन जाने से उसे पहली बार यह एहसास हुआ कि वह क़ीमती है, उसका भी कुछ महत्व है और उसका परिवार वाक़ई उसको बहुत चाहता है। 

चिकित्सा जगत का ध्यान अपनी ओर खिंचने और उन लोगों से मिली पहचान ने उसके आत्मविश्वास और खुद के बारे में सोच को और बेहतर बना दिया। वह एक बेहद सकारात्मक, आत्मविश्वास से परिपूर्ण, खुले विचारों वाली महिला बन गई जो कि बेहद स्पष्ट वक्ता और जानकारी से परिपूर्ण थी। जिसकी एक वक्ता और अपने विषय की जानकार के तौर पर चिकित्सा जगत में काफ़ी माँग थी।

उसकी बचपन की सारी नकारात्मक यादें मिट चुकी थीं। साथ ही उसमें बसी हीनभावना भी ख़त्म हो गई थी। वह एक बिलकुल ही नई व्यक्ति बन चुकी थी। उसने अपनी सोच बदलकर अपनी पूरी ज़िंदगी बदल डाली।


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