मन सभी धर्मों, कर्मों, प्रवृतियों का अगुआ है। सभी कर्मों (धर्मों) में मन पूर्वगामी है। मन ही प्रधान है, प्रमुख है, सभी धर्म (चैत्तसिक अवस्थाएं) पहले मन में ही पैदा होती हैं। मन सभी मानसिक प्रवृतियों में श्रेष्ठ है, स्वामी है। सभी कर्म मनोमय है। मन सभी मानसिक प्रवृतियों का नेतृत्व करता है क्योंकि सभी मन से ही पैदा होती है। जब कोई व्यक्ति अशुद्ध मन से, मन को मैला करके, बुरे विचार पैदा करके वचन बोलता है या शरीर से कोई पाप कर्म (बुरे कर्म) करता है, तो दुख उसके पीछे-पीछे वैसे ही हो लेता है जैसे बैलगाड़ी खींचने वाले बैलों के पैरों के पीछे-पीछे चक्का (पहिया) चलता है। मन सभी प्रवृतियों, भावनाओं का पुरोगामी है यानी आगे-आगे चलने वाला है। सभी मानसिक क्रियाकलाप मन से ही उत्पन्न होते हैं। मन श्रेष्ठ है, मनोमय है। मन की चेतना ही हमारे सुख-दुख का कारण होती है। हम जो भी फल भुगतते हैं, परिणाम प्राप्त करते हैं। वह मन का ही परिणाम है। कोई भी फल या परिणाम हमारे विचार या मन पर निर्भर है। जब हम अपने मन, वाणी और कमों को शुद्ध करेंगे तभी दुखों से मुक्ति मिल सकती है। मन हमारी सभी प्रकार की भावनाओं, प्रव...
आम व्यक्ति अपने पूरे जीवन और कामकाज में अपने मस्तिष्क की सिर्फ एक या दो प्रतिशत क्षमता का ही इस्तेमाल कर पाता हैं, बाकी क्षमता रिज़र्व रहती है , जिसका शायद ही उसने कभी दोहन या उपयोग किया हो। आपको अपने जीवन में चमत्कारिक परिणाम पाने के लिए कोई चमत्कार करने की जरूरत नहीं है, आपको तो बस इतना करना है कि आपको अपने भीतर मौजूद मानसिक शक्ति का वर्तमान से थोड़ा ज्यादा इस्तेमाल करें, आपके सोचने की क्षमता में यह छोटा सा सुधार आपके जीवन में गहरे परिवर्तन कर सकता है, इसकी बदौलत आगे आने वाली महीनों और सालों में आप इतना कुछ हासिल कर लेंगे, जिसे देखकर आप और बाकी लोग हैरान रह जाएंगे। रूस के प्रोफेसर सर्जेई येफ्रमोव द्वारा कुछ साल पहले किए गए शोध के अनुसार अगर आप अपनी मौजूदा मानसिक क्षमता का सिर्फ पचास प्रतिशत उपयोग कर सकें, तो आप एक दर्जन यूनिवर्सिटीज से पीएच.डी. कर सकते हैं, आसानी से एक दर्जन भाषाएं सीख सकते हैं, और इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के पूरे बाईस वॉल्यूम कंठस्थ याद कर सकते हैं। रॉबर्ट कॉलियर के अनुसार "चीजों को उस रूप में न सोचे, जेसी वे हैं, बल्कि उस रूप में सोचें जैसी वे हो सक...