सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

डॉक्टर बनने की चाहत क्या आपको डॉक्टर बना सकती है? जी हा! कैसे

मैंने कई साल पहले ऑस्ट्रेलिया के एक किशोर के साथ काम किया था। यह किशोर डॉक्टर और सर्जन बनना चाहता था, लेकिन उसके पास पैसा नहीं था; न ही उसने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की थी। ख़र्च निकालने के लिए वह डॉक्टरों के ऑफिस साफ करता था, खिड़‌कियाँ धोता था और मरम्मत के छुटपुट काम करता था।  उसने मुझे बताया कि हर रात जब वह सोने जाता था, तो वह दीवार पर टंगे डॉक्टर के डिप्लोमा का चित्र देखता था, जिसमें उसका नाम बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था। वह जहाँ काम करता था, वहाँ वह डिप्लोमाओं को साफ करता और चमकाता था, इसलिए उसे मन में डिप्लोमा की तस्वीर देखना या उसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं था। मैं नहीं जानता कि उसने इस तस्वीर को देखना कितने समय तक जारी रखा, लेकिन उसने यह कुछ महीनों तक किया होगा। जब वह लगन से जुटा रहा, तो परिणाम मिले। एक डॉक्टर इस लड़के को बहुत पसंद करने लगा। उस डॉक्टर ने उसे औज़ारों को कीटाणुरहित करने, इंजेक्शन लगाने और प्राथमिक चिकित्सा के दूसरे कामों की कला का प्रशिक्षण दिया। वह किशोर उस डॉक्टर के ऑफिस में तकनीकी सहयोगी बन गया। डॉक्टर ने उसे अपने खर्च पर हाई स्कूल और बाद में कॉलेज भी भेजा। आज

Life Changing Views

यहाँ जीवनशैली संबंधी कुछ नियम बताए जा रहे हैं, जिनका पालन सर्वश्रेष्ठ लीडर करते हैं :

भरपूर नींद लें। सात-आठ घंटे सोने के बाद आपके पास ज़्यादा ऊर्जा होगी। तब आप ज़्यादा चौकस, सकारात्मक और लचीले होंगे। लीडर के रूप में आपको सारे समय 100 प्रतिशत जागरूक होना होता है। यह नहीं चलेगा कि आप बहुत ज़्यादा थक जाएँ या मानसिक कोहरे में रहें। 

अपनी बैटरी को रिचार्ज करते रहें। चुनौती और संकट के दौर ख़ासतौर पर थका सकते हैं, हालाँकि यह अनुपयोगी लग सकता है, लेकिन कई बार कारोबार संबंधी हर चीज़ से दिनभर की छुट्टी लेना ज़रूरी होता है।

पूरी तरह कामबंदी करें। संभवतः अपनी बैटरी को रिचार्ज करने का सबसे अच्छा तरीक़ा यह है कि आप 36 घंटों के लिए पूरी तरह से काम बंद कर दें। शुक्रवार रात से रविवार की सुबह तक कंप्यूटर की तरफ़ देखें भी नहीं। फ़ोन ना सुनें या अपने ऑफ़िस से लाई अध्ययन सामग्री पर निगाह ना डालें। खुद को पूरी छुट्टी दें। इसका नतीजा यह होगा कि आप पहले से ज़्यादा तरोताज़ा होकर काम पर लौटेंगे।

अपने खान-पान पर निगाह रखें। अगर आप चाहते हैं कि आपका मस्तिष्क पूरी शक्ति से काम करे, तो इसके लिए सही आहार करने और ग़लत आहार से बचने की ज़रूरत होती है। तीन सफ़ेद विषों को छोड़ दें : शकर, नमक और आटा। ब्रेड, मिठाइयों, सॉफ्ट ड्रिंक्स और पास्ता से बचें। इसके बजाय फल, सब्ज़ियाँ और मछली, अंडे या लीन मीट जैसे उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन लें।

ज़्यादा व्यायाम करें। व्यायाम के लाभ रासायनिक होते हैं। जब आप जमकर व्यायाम करते हैं, तो आपका मस्तिष्क एंडोर्फ़िन यानी 'खुशी के रसायन' प्रवाहित करता है, जो आपको ज़्यादा सकारात्मक, आत्मविश्वासी और सृजनात्मक महसूस कराते हैं।

अपने दिन की सही शुरुआत करें। सुबह जागने के बाद तीस से साठ मिनट तक व्यायाम करें। इसके बाद नाश्ते में उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन लें। आप ना सिर्फ़ दिन के लिए तैयार हो जाएँगे, बल्कि अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर पर काम करने के लिए भी तैयार हो जाएँगे।

हमारे माहौल में ऐसी आवाज़ें भरी रहती हैं, जो संवाद और चर्चा में बाधा डालती हैं। टेलीविज़न और ख़ासतौर पर कार का रेडियो बंद रखें। शांति का लाभ लेकर अपने परिवार से चर्चा करें या शैक्षणिक अथवा प्रेरक सामग्री पढ़ें या सुनें। डीवीआर सेवा की बदौलत आप टीवी का कोई भी कार्यक्रम अपनी सुविधानुसार देख सकते हैं। खाली जगह भरने के लिए टीवी या रेडियो का इस्तेमाल ना करें।

एकांत की दैनिक अवधियाँ भी महत्त्वपूर्ण होती हैं। हर दिन अकेले ख़ामोशी में आधे घंटे से लेकर एक घंटा बिताएँ। आप यह देखकर हैरान रह जाएँगे कि मौन में कितना बढ़िया ज्ञान और विचार उत्पन्न होते हैं। आपको ना सिर्फ अपने दिन की योजना बनाने का अवसर मिलेगा, बल्कि स्पष्टता से इस बारे में सोचने का अवसर भी मिलेगा कि आप अल्पकाल और दीर्घकाल में क्या चाहते हैं। 

नियमित दिनचर्या में एकांत में रहने पर आपको महान नेतृत्व के लिए आवश्यक शांति, सृजनात्मकता और तनाव से मुक्ति मिल जाएगी। फ्रांसीसी लेखक ब्लेज़ पास्कल ने लिखा था, “संसार की सभी समस्याएँ इसलिए उत्पन्न होती हैं, क्योंकि इंसान अकेले एक कमरे में नहीं बैठ पाता है।" 

जीवन और काम के बीच संतुलन क़ायम रखना। अत्यधिक काम करने वाले प्रभावी नहीं होते हैं। जो लोग काम को घर पर लाते हैं, वे प्रायः ऐसा इसलिए करते हैं, क्योंकि ऑफ़िस में वे अनुशासित नहीं रहते हैं। वे सामाजिक मेल-मिलाप में पूरा दिन बर्बाद कर देते हैं। और फिर अफ़सोस करते हैं कि उन्हें रात को या वीकएंड में काम करना होगा। अपने कामकाजी जीवन और निजी जीवन में संतुलन कायम रखना महत्त्वपूर्ण है। जब आप घर जाएँ, तो व्यवसाय को एक तरफ़ रखने और अपने परिवार के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताने का संकल्प लें।

नियंत्रण के नियम के अनुसार "खुशी इस अहसास पर निर्भर करती है कि आप अपने जीवन के कितने नियंत्रण में हैं।" अप्रसन्नता उसी हद तक होती है, जिस हद तक आपको महसूस होता है कि आप नियंत्रण में नहीं हैं या आपका जीवन बाहरी घटकों या दूसरे लोगों से नियंत्रित है।

मनोवैज्ञानिक हमारे 'नियंत्रण के केंद्र' को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। जब आप प्रभारी होते हैं, तो आपके नियंत्रण का केंद्र आंतरिक होता है, यानी आप खुद तय करते हैं कि आपके साथ क्या होता है। इससे आप खुद को शक्तिशाली और उद्देश्यपूर्ण महसूस करते हैं। 

आपके नियंत्रण का केंद्र बाहरी तब होता है, जब आप यह महसूस करते हैं कि आप अपने जीवन को नियंत्रित नहीं करते हैं। परिस्थितियाँ, दूसरे लोग, यहाँ तक कि आपका व्यक्तित्व भी इस बात को नियंत्रित करता है कि आपके साथ क्या होता है। मिसाल के तौर पर, कुछ लोग जानते हैं कि उनका गुस्सा बुरा है, क्योंकि इससे वे दूसरों के साथ सफलतापूर्वक काम नहीं कर पाते हैं, लेकिन वे यह कहकर अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह मोड़ लेते हैं, “मैं क्या करूँ, मैं तो ऐसा ही हूँ।”
नेतृत्व ज़िम्मेदारी के बारे में है और इसमें अपने जीवन का नियंत्रण अपने हाथ में लेने तथा अपनी खुशी सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी भी शामिल है।


अच्छा श्रोता बनने की कुंजी

 1. ध्यानपूर्वक सुनें। अपने दिमाग़ को साफ़ कर लें और सामने वाला जो कह रहा है, उसी पर ध्यान केंद्रित करें। 'इसकी नकल' की कोशिश ना करें, क्योंकि यह पैंतरा कामयाब नहीं होता है। लोग समझ जाते हैं कि आपका दिमाग़ कहीं और भटक रहा है। 

शोधकर्ताओं के अनुसार जब भी कोई बातचीत होती है, तो शब्द किसी संदेश को सिर्फ़ 7 प्रतिशत संप्रेषित कर पाते हैं। आपकी आवाज़ के लहज़े से संदेश 38 प्रतिशत पहुँचता है। संदेश पहुँचाने के मामले में आपकी बॉडी लैंग्वेज सबसे अहम भूमिका निभाती है, क्योंकि यह 55 प्रतिशत संदेश पहुँचाती है।
 
अपने शरीर को सुनने की मुद्रा में रखें और वक्ता की तरफ़ थोड़ा झुकें। आपकी यह मुद्रा वक्ता को स्पष्ट बता देती है कि आप उसकी बात सुन रहे हैं और उसकी बात बीच में ना काटें। अगर आप बोल रहे हैं, तो इसका मतलब यह है कि आप सुन नहीं रहे हैं।

2. जवाब देने से पहले ठहरें। जब सामने वाला बोलना बंद कर दे या बातचीत में विराम आ जाए, तो आप यह सोच सकते हैं कि सामने वाले की बात पूरी हो गई है और आपके मन में बीच में कूदने का प्रलोभन आ सकता है, लेकिन हो सकता है कि सामने वाला अपने विचारों को व्यवस्थित करने के लिए पल भर रुका हो और आगे भी बोलना चाहता हो। अगर आप इस पल बीच में बोलने लगते हैं, तो उसे ऐसा लगेगा जैसे आप अवरोध डाल रहे हैं। 

अगर आप जवाब देने से पहले ठहरते हैं और पल भर की ख़ामोशी रहने देते हैं, तो आप सामने वाले का अर्थ ज़्यादा गहरे स्तर पर सुन सकेंगे। आप दूसरे लोगों की कही बातों को ज़्यादा अच्छी तरह समझेंगे, क्योंकि आप उनके बोलते समय खुद बोलने की ताक में नहीं रहते हैं। अंत में, जब सामने वाले व्यक्ति की बात पूरी हो जाए, तो ठहरने से उसे यह समझ आ जाता है कि आप उसकी बात सचमुच सुन रहे हैं। और जवाब देने से पहले सावधानी से उसकी कही बातों पर विचार कर रहे हैं।

3. प्रश्न पूछ कर स्पष्टीकरण माँगें। सवाल पूछने की तकनीक भी यह साबित करती है कि आप सामने वाले की बात सचमुच सुन रहे थे, सुनने का नाटक नहीं कर रहे थे। इतना ही नहीं, सवाल पूछने से फ़ायदा यह होगा कि आप सामने वाले की कही बातों के बारे में ग़लत मान्यताएँ बनाने या ग़लत निष्कर्ष निकालने से बच जाएँगे। 

अगर आपको पक्का यक़ीन नहीं है, तो यह मानकर ना चलें कि आप समझ गए हैं। इस तरह के प्रश्न पूछकर स्थिति को स्पष्ट कर लें :
“आपका सटीक मतलब क्या है?"
"आप इस बारे में कैसा महसूस करते हैं?"

4. वक्ता की कही बातों को अपने शब्दों में दोहराएँ। इससे ना सिर्फ़ वक्ता को यह पता चल जाएगा कि आपने उसकी बात गौर से सुनी है, बल्कि उसे यह भी पता चल जाएगा कि आप उसकी बात अच्छी तरह समझ गए हैं और अगर आपने कोई चीज़ ग़लत समझ ली है, तो वक्ता के पास उसे सही करने का अवसर होता है।

5. बाधा डाले बिना सुनें। वाटरलू के युद्ध में नेपोलियन ने मार्शल ग्राउची को एक संदेश भेजा, जिसके पास 30,000 सैनिक युद्ध के मैदान से थोड़ी दूर थे। चूँकि नेपोलियन ने अपना संदेश जल्दबाज़ी में भेजा था, इसलिए जो आदेश ग्राउची के पास पहुँचे, वे इतने उलझन भरे थे कि उसे समझ नहीं आया कि क्या करना है, इसलिए उसने कुछ नहीं किया। वह अपने 30,000 सैनिकों के साथ रणभूमि से दूर बैठा रहा, जबकि कुछ पहाड़ियों की दूरी पर वाटरलू में नेपोलियन युद्ध हार गया और यूरोपीय इतिहास की पूरी दिशा ही बदल गई और यह सब इसलिए हुआ, क्योंकि संदेश पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया था।

यदि आप लीडर हैं और कोई आपसे बात करना चाहता हो, तो दरवाज़ा बंद कर दें, फ़ोन बंद कर दें और बिना व्यवधान डाले पूरे ध्यान से सुनें। सुनना उन सबसे अच्छे तरीक़ों में से है, जिनसे आप यह पता लगा सकते हैं कि क्या हो रहा है। सुनने के प्रति लापरवाही भरा नज़रिया आपके लिए विनाशकारी हो सकता है।


आप नीचे दिए कदमों के ज़रिये कर्मचारियों को बेहतर बना सकते हैं :

1. बिलकुल शुरुआत से ही अपेक्षाओं को स्पष्ट कर दें। यह सुनिश्चित करें कि कर्मचारी सटीकता से जानते हों कि आप उनसे किन परिणामों की अपेक्षा करते हैं। उन परिणामों को यथासंभव निष्पक्ष बनाएँ।

2. प्रदर्शन को मापने योग्य पैमाने तय करें। याद रखें, “जिसे मापा जाता है, उसे ही किया जाता है।" हर काम के वित्तीय पैमाने तय करें।

3. कभी यह मानकर ना चलें कि कर्मचारी आपके निर्देशों को पूरी तरह समझ गया है। अपने कर्मचारियों को कोई काम या प्रोजेक्ट सौंपते समय यह सुनिश्चित करें कि वे उसे लिख रहे हों, फिर उनसे कहें कि वे आपको पढ़कर सुनाएँ कि आपने उन्हें कौन सा काम सौंपा है।

4. नियमित फ़ीडबैक दें। कर्मचारियों को बता दें कि वे क्या अच्छा कर रहे हैं। उन्हें बता दें कि वे किस चीज़ को बदल सकते हैं। और सुधार सकते हैं। फ़ीडबैक प्रेरणादायक होता है, क्योंकि इससे सामने वाले को यह संदेश मिलता है कि उसके काम में आपकी रुचि है। आप कितना अच्छा काम कर रहे हैं, इस बारे में अँधेरे में रहना प्रेरणाहीन होता है। सबसे बढ़कर, लोग अच्छी तरह किए गए काम की भावना से प्रेम करते हैं। उन्हें यह बता दें।

5. जब कोई समस्या खड़ी होती है, तो कई बार नाराज़ या अधीर होना आसान होता है। यह नज़रिया रखें कि स्पष्ट समस्याओं के बावजूद कर्मचारी ने सर्वश्रेष्ठ इरादे से काम किया है, फिर समस्या से शांति से और इस तरह निपटें, जिससे कर्मचारी अपमानित महसूस ना करे ।

6. कर्मचारी की आलोचना ना करें या किसी सार्वजनिक स्थान पर समस्या पर बातचीत ना करें। स्थिति पर बात करने के लिए कर्मचारी को अपने ऑफिस में बुलाएँ।

7. समस्या या ग़लतफ़हमी के बारे में बहुत विशिष्ट बनें। स्पष्टता से समझाएँ कि आप क्यों चिंतित हैं। कर्मचारी की बात पूरी सुनें। भले ही कर्मचारी रक्षात्मक बन जाए, लेकिन स्थिति के बारे में कर्मचारी का स्पष्टीकरण घटना को एक अलग रोशनी में दिखा सकता है।

8. यदि ग़लती कर्मचारी की है, तो इस बारे में स्पष्ट अपेक्षाएँ तय करें कि कर्मचारी का प्रदर्शन कैसे और कितना बेहतर बनना चाहिए। इससे ज़्यादा कुंठाजनक और प्रेरणाहीन कुछ भी नहीं है, जब यह बता दिया जाए कि चुनौती को सुलझाओ या समस्या को रोको, लेकिन यह ना बताया जाए कि कैसे।

9. कर्मचारी सटीकता से यह जानना चाहते हैं कि समस्या को दुरुस्त करने के लिए वे क्या कर सकते हैं। जाँच करें, कि क्या कर्मचारी ने वे फेरबदल कर लिए हैं, जिन पर वह सहमत हुआ था? फ़ीडबैक दें और आवश्यकता होने पर अतिरिक्त समर्थन भी दें।


जब आप खुद को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे हों, तो ये तीन नियम याद रखें :

 1. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कहाँ से आए हैं। फर्क सिर्फ़ इससे पड़ता है कि आप जा कहाँ रहे हैं। किसी कमज़ोरी की वजह से अगर आप अतीत में अवसर चूक गए हों या आपने ग़लतियाँ कर दी हों, तो चिंता ना करें। वह सब बीत चुका है। महत्त्वपूर्ण तो भविष्य है। आप पहले लीडर नहीं रहे हैं, इसका यह मतलब नहीं है कि आप आगे जाकर लीडर नहीं बन सकते।

2. अगर आप अपने जीवन को बेहतर बनाना चाहते हैं, तो आपको बेहतर बनना होगा। अगर आप लीडर बनना चाहते हैं, तो आपको नेतृत्व के गुण विकसित करने चाहिए। 

3. आप जो भी चीज़ सीखना चाहते हैं, सीख सकते हैं। आप जो भी बनना चाहते हैं, बन सकते हैं। 

बेंजामिन फ्रैंकलिन जैसे लीडर जानते थे कि वे क्या बनना चाहते हैं और फिर उन्होंने उस दिशा में मेहनत की।

अमेरिका के संस्थापकों में से एक बेंजामिन फ्रैंकलिन ने भी कड़ी मेहनत करके नेतृत्व के गुण विकसित किए। फ्रैंकलिन स्वीकार करते थे कि छोटी उम्र में वे बहुत अप्रिय स्वभाव के थे, बहुत बहस करते थे और बुरा व्यवहार करते थे। ज़ाहिर है, यह उनकी सफलता में बाधक था। इसलिए उन्होंने जान-बूझकर अपने व्यक्तित्व को बदलने का बीड़ा उठाया। 

उन्होंने बैठकर तेरह गुण लिखे, जो वे हासिल करना चाहते थे और फिर वे इन गुणों के अनुरूप काम करना सीखने लगे। हर सप्ताह वे एक गुण को चुनकर उस पर ध्यान केंद्रित करते थे, जैसे सहनशीलता या शांति, लेकिन फ्रैंकलिन जानते थे, जिस तरह वॉशिंगटन जानते थे, कि नेतृत्व के गुण सिर्फ़ एक सप्ताह में ही नहीं आ जाते हैं। फ्रैंकलिन इन गुणों का अध्ययन करते रहे। 

उन्होंने अंततः किसी ख़ास गुण पर दो सप्ताह तक ध्यान केंद्रित किया, फिर तीन सप्ताह, फिर पूरे महीने। इसका नतीजा यह हुआ कि कभी रूखे और लोगों को विकर्षित करने वाले फ्रैंकलिन अमेरिका की तरफ़ से काम करने वाले सबसे प्रभावी कूटनीतिज्ञों में से एक बन गए। 

पेरिस में उन्होंने अत्यंत महत्त्वपूर्ण कूटनीतिक भूमिका निभाई, जिसकी बदौलत उन्हें अंतरराष्ट्रीय समर्थक मिले, जिनकी मदद के बिना अमेरिका इंग्लैंड जैसे शक्तिशाली राष्ट्र को नहीं हरा सकता था और यह सब तेरह गुणों पर काम करने से शुरू हुआ।


लीडर हमेशा खुद को बेहतर बनाने की तलाश में रहते हैं। चार बुनियादी क़दम उठाकर आप नेतृत्व की अपनी योग्यताओं और गुणों को बेहतर बना सकते हैं :

1. कुछ चीजें ज़्यादा करें। वे चीज़ें ज़्यादा करें, जो आपके लिए ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं और जो लीडर के रूप में परिणाम हासिल करने के लिए ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हैं।

2. कुछ चीजें कम करें। साथ ही, उन गतिविधियों में कम समय देने का निर्णय लें, जो लीडर के रूप में आपकी सफलता में बाधक हैं।

3. वे चीजें करना शुरू करें, जो आप नहीं कर रहे हैं, लेकिन जो आपको करनी चाहिए। वे योग्यताएँ, सक्षमताएँ या ज्ञान कौन सा है, जिसकी मदद से आप सफल लीडर बन सकते हैं? उन्हें पहचानें और फिर या तो उन्हें हासिल करें या उन्हें सीखें।

4. कुछ चीजें करना बिलकुल छोड़ दें। हो सकता है कि कुछ गतिविधियाँ लीडर के रूप में आपके लक्ष्यों के लिए अब प्रासंगिक ही ना हों। पीछे हटकर देखें और आप जो हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, उसी दृष्टिकोण से अपनी सारी गतिविधियों का मूल्यांकन करें। हो सकता है, आपको यह पता लगे कि कभी जो महत्त्वपूर्ण था, वह अब महत्त्वपूर्ण नहीं है और उसमें आपको ज़रा भी समय नहीं लगाना चाहिए।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जीवन को समझे,अपने विचारों को उद्देश्य में परिवर्तित करें

जीवन को समझने के लिए आपको पहले अपने आप को समझना होगा तभी आप जीवन को समझ पाएंगे जीवन एक पहेली नुमा है इसे हर कोई नहीं समझ पाता,  लोगों का जीवन चला जाता है और उन्हें यही पता नहीं होता कि हमें करना क्या था हमारा उद्देश्य क्या था हमारे विचार क्या थे हमारे जीवन में क्या परिवर्तन करना था हमारी सोच को कैसे विकसित करना था,  यह सारे बिंदु हैं जो व्यक्ति बिना सोचे ही इस जीवन को व्यतीत करता है और जब आखरी समय आता है तो केवल कुछ व्यक्तियों को ही एहसास होता है कि हमारा जीवन चला गया है कि हमें हमारे जीवन में यह परिवर्तन करने थे,  वही परिवर्तन व्यक्ति अपने बच्चों को रास्ता दिखाने के लिए करता है लेकिन वे परिवर्तन को सही मुकाम तक पहुंचाने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं यह तो उनकी आने वाली पीढ़ी को देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है,  कि उनकी पीढ़ी कहां तक सक्षम हो पाई है और अपने पिता के उद्देश्य को प्राप्त कर पाने में सक्षम हो पाई है या नहीं, व्यक्ति का जीवन इतना स्पीड से जाता है कि उसके सामने प्रकाश का वेग भी धीमा नजर आता है, व्यक्ति अपना अधिकतर समय बिना सोचे समझे व्यतीत करता है उसकी सोच उसके उद्देश्य से

दौलत मनुष्य की सोचने की क्षमता का परिणाम है

आपका मस्तिष्क असीमित है यह तो आपकी शंकाएं हैं जो आपको सीमित कर रही हैं दौलत किसी मनुष्य की सोचने की क्षमता का परिणाम है इसलिए यदि आप अपना जीवन बदलने को तैयार हैं तो मैं आपका परिचय एक ऐसे माहौल से करवाने जा रहा हूं जो आपके मस्तिष्क को सोचने और आपको ज्यादा अमीर बनाने का अवसर प्रदान करेगा।  अगर आप आगे चलकर अमीर बनना चाहते हैं तो आपको एक ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसके दरमियान 500 से अधिक व्यक्ति कार्यरत हो ऐसा कह सकते हैं कि वह एक इंडस्ट्रियलिस्ट होना चाहिए या एक इन्वेस्टर होना चाहिए उसको यह मालूम होना चाहिए की इन्वेस्टमेंट कैसे किया जाए। जिस प्रकार व अपनी दिमागी क्षमता का इन्वेस्टमेंट करता है उसी प्रकार उसकी पूंजी बढ़ती है यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह अपनी दिमागी क्षमता का किस प्रकार इन्वेस्टमेंट करें कि उसकी पूंजी बढ़ती रहे तभी वह एक अमीर व्यक्ति की श्रेणी में उपस्थित होने के लिए सक्षम होगा। जब कोई व्यक्ति नौकरी छोड़ कर स्वयं का व्यापार स्थापित करना चाहता है तो इसका एक कारण है कि वह अपनी गरिमा को वापस प्राप्त करना चाहता है अपने अस्तित्व को नया रूप देना चाहता है कि उस पर किसी का अध

जीवन में लक्ष्य कैसे प्राप्त करें।

आज के जीवन में अगर आप कुछ बनना चाहते हैं, तो आपको अपने जीवन को एक लक्ष्य के रूप में देखना चाहिए, लक्ष्य आपको वह सब कुछ दे सकता है, जो आप पाना चाहते हैं, आपको सिर्फ एक लक्ष्य तय करना है, और उस लक्ष्य पर कार्य करना है, कि आपको उस लक्ष्य को किस तरह हासिल करना है, इसे हासिल करने की आपको योजना बनानी है, और उस योजना पर आपको हर रोज मेहनत करनी है। किसी भी लक्ष्य को हासिल करने की समय सीमा किसी और पर नहीं केवल आप पर निर्भर करती हैं, कि आप उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए क्या कुछ कर सकते हैं, जब आप किसी लक्ष्य को हासिल करने का इरादा बनाते हैं, तो आपको यह पता होना चाहिए कि जिस इरादे को लेकर आप लक्ष्य को हासिल करने वाले हैं, वह इरादा उस समय तक कमजोर नहीं होना चाहिए जब तक कि आपका लक्ष्य पूर्ण न हो जाए। आपने देखा होगा कि लोग लक्ष्य निर्धारित करते हैं, जब उस लक्ष्य पर कार्य करने का समय आता है, तो कुछ समय तक तो उस लक्ष्य पर कार्य करते हैं, लेकिन कुछ समय बाद उनका इरादा कमजोर हो जाता है, वे हताश हो जाते हैं तो आप मान के चल सकते हैं कि वे जिंदगी में कुछ भी हासिल करने के लायक नहीं। इस सृष्टि पर उन्हीं लोग