मन सभी धर्मों, कर्मों, प्रवृतियों का अगुआ है। सभी कर्मों (धर्मों) में मन पूर्वगामी है। मन ही प्रधान है, प्रमुख है, सभी धर्म (चैत्तसिक अवस्थाएं) पहले मन में ही पैदा होती हैं। मन सभी मानसिक प्रवृतियों में श्रेष्ठ है, स्वामी है। सभी कर्म मनोमय है। मन सभी मानसिक प्रवृतियों का नेतृत्व करता है क्योंकि सभी मन से ही पैदा होती है। जब कोई व्यक्ति अशुद्ध मन से, मन को मैला करके, बुरे विचार पैदा करके वचन बोलता है या शरीर से कोई पाप कर्म (बुरे कर्म) करता है, तो दुख उसके पीछे-पीछे वैसे ही हो लेता है जैसे बैलगाड़ी खींचने वाले बैलों के पैरों के पीछे-पीछे चक्का (पहिया) चलता है। मन सभी प्रवृतियों, भावनाओं का पुरोगामी है यानी आगे-आगे चलने वाला है। सभी मानसिक क्रियाकलाप मन से ही उत्पन्न होते हैं। मन श्रेष्ठ है, मनोमय है। मन की चेतना ही हमारे सुख-दुख का कारण होती है। हम जो भी फल भुगतते हैं, परिणाम प्राप्त करते हैं। वह मन का ही परिणाम है। कोई भी फल या परिणाम हमारे विचार या मन पर निर्भर है। जब हम अपने मन, वाणी और कमों को शुद्ध करेंगे तभी दुखों से मुक्ति मिल सकती है। मन हमारी सभी प्रकार की भावनाओं, प्रव...
रॉबर्ट कोलियर ने कहा था, "दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है जो आप हासिल नहीं कर सकते, बस एक बार मन में यह ठानने की देर है कि इसे हासिल कर सकते हैं।" आपमें वे सभी गुण है, जो एक कामयाब व्यक्ति में होते हैं, आप विशेष हैं, मानव इतिहास में आप जैसा कभी भी, कोई भी नहीं हुआ है। आपके पास प्रतिभा और काबिलियत का अद्भुत भंडार है जिसका आज तक आपके द्वारा कभी इस्तेमाल नहीं किया गया है, इसका इस्तेमाल करके आप उन चीजों को पा सकते हैं जिसकी आपने तमन्ना की है। आप क्या और कितना कुछ हासिल कर सकते हैं, यह इस पर निर्भर हैं कि आप खुद को किस हद तक काबिल समझते हैं, आपकी कामयाबी की वास्तव में कोई भी सीमा नहीं है। खुद को हमेशा दूसरों से कम न आके, जो प्रतिभा आपको दूसरों में नजर आती हैं वही प्रतिभा आपमें भी हैं बस आपको उसे स्वयं में देखने की देर है, जिस दिन आप उसे स्वयं में देख लेंगे, आप वही बन जाएंगे जैसा आपने बनने का सोचा है।