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कैलिफोर्निया में एक टीचर को हर साल पाँच-छह हजार डॉलर का वेतन मिलता था। उसने एक दुकान में एक सुंदर सफेद अर्मीन कोट देखा, जिसका भाव 8,000 डॉलर था। उसने कहा, "इतना पैसा बचाने में तो मुझे कई साल लग जाएँगे। मैं इसका ख़र्च कभी नहीं उठा सकती। ओह, मैं इसे कितना चाहती हूँ!" इन नकारात्मक अवधारणाओं से विवाह करना छोड़कर उसने सीखा कि वह अपना मनचाहा कोट, कार या कोई भी दूसरी चीज़ हासिल कर सकती है और इसके लिए उसे संसार में किसी को चोट पहुँचाने की ज़रूरत नहीं है। मैंने उससे यह कल्पना करने को कहा कि उसने कोट पहन रखा है। कि कल्पना में वह इसका सुंदर फर छुए, महसूस करे और इसे सचमुच पहनने की भावना जगाए। वह रात को सोने से पहले अपनी कल्पना की शक्ति का इस्तेमाल करने लगी। उसने अपनी कल्पना में वह कोट पहना, उसे सहलाया, उस पर हाथ फेरा, जिस तरह कि कोई बच्ची अपनी गुड़िया के साथ करती है। वह ऐसा हर रात करती रही और आख़िरकार उसे इस सबका रोमांच महसूस हो गया। वह हर रात यह काल्पनिक कोट पहनकर सोने गई और इसे हासिल करने पर वह बहुत खुश थी। तीन महीने गुज़र गए, लेकिन कुछ नहीं हुआ। वह डगमगाने वाली थी, लेकिन उसने खुद को य...

हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के शोधकर्ताओं द्वारा शोध

हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में 1979 और 1989 के बीच हार्वर्ड में हुए एक अध्ययन के बारे में बताया गया है, 1979 में हार्वर्ड कि एमबीए ग्रैजुएट्स से पूछा गया, क्या आपने अपने भविष्य के लिए स्पष्ट लिखित लक्ष्य तय किए हैं और उन्हें हासिल करने की कोई योजना बनाई है ? पता चला कि सिर्फ 3 प्रतिशत ग्रैजुएट्स के पास लिखित लक्ष्य और योजनाएं थी, 13 प्रतिशत के पास लक्ष्य तो थे लेकिन उन्होंने लिखें नहीं थे, 84 प्रतिशत के पास स्पष्ट लक्ष्य ही नहीं थे सिवाय इसके कि वह बिजनेस स्कूल से जाने के बाद गर्मियों का आनंद लें। दस साल बाद 1989 में शोधकर्ताओं ने उस क्लास के सदस्यों से दोबारा संपर्क किया उन्होंने पाया कि जिन 13 प्रतिशत के पास अलिखित लक्ष्य थे वे लक्ष्य न बनाने वाले 84 प्रतिशत विद्यार्थियों से औसतन दोगुना कमा रहे थे लेकिन उनमें सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह थी कि हार्वर्ड छोड़ते वक्त जिन 3 प्रतिशत ग्रेजुएट्स के पास स्पष्ट, लिखित लक्ष्य थे वे बाकी सभी 97 प्रतिशत से औसतन दस गुना ज्यादा कमाई कर रहे थे इन लोगों के मामले में इकलौता फर्क स्पष्ट लक्ष्यों का था जो उन्होंने पढ़ाई पूरी करते वक्त बनाए थे। स्पष्टता का महत्...