मन सभी धर्मों, कर्मों, प्रवृतियों का अगुआ है। सभी कर्मों (धर्मों) में मन पूर्वगामी है। मन ही प्रधान है, प्रमुख है, सभी धर्म (चैत्तसिक अवस्थाएं) पहले मन में ही पैदा होती हैं। मन सभी मानसिक प्रवृतियों में श्रेष्ठ है, स्वामी है। सभी कर्म मनोमय है। मन सभी मानसिक प्रवृतियों का नेतृत्व करता है क्योंकि सभी मन से ही पैदा होती है। जब कोई व्यक्ति अशुद्ध मन से, मन को मैला करके, बुरे विचार पैदा करके वचन बोलता है या शरीर से कोई पाप कर्म (बुरे कर्म) करता है, तो दुख उसके पीछे-पीछे वैसे ही हो लेता है जैसे बैलगाड़ी खींचने वाले बैलों के पैरों के पीछे-पीछे चक्का (पहिया) चलता है। मन सभी प्रवृतियों, भावनाओं का पुरोगामी है यानी आगे-आगे चलने वाला है। सभी मानसिक क्रियाकलाप मन से ही उत्पन्न होते हैं। मन श्रेष्ठ है, मनोमय है। मन की चेतना ही हमारे सुख-दुख का कारण होती है। हम जो भी फल भुगतते हैं, परिणाम प्राप्त करते हैं। वह मन का ही परिणाम है। कोई भी फल या परिणाम हमारे विचार या मन पर निर्भर है। जब हम अपने मन, वाणी और कमों को शुद्ध करेंगे तभी दुखों से मुक्ति मिल सकती है। मन हमारी सभी प्रकार की भावनाओं, प्रव...
हिटलर एक प्रचंड राष्ट्रवादी था, उसने छोटी सी आयु में ही उन संघर्षों में भाग लेना शुरू कर दिया, हिटलर राष्ट्रवाद की दिशा में बड़ी तेजी से बढ़ने लगा, और उसने 15 वर्ष की आयु में ही परंपरागत राष्ट्रीयता और जनसाधारण की धारणा पर आधारित राष्ट्रीयता के अंतर को स्पष्ट पहचानने लगा, और उसका झुकाव राष्ट्रीयता की और था। इतिहास के अध्ययन का अर्थ है, कि उन शक्तियों को खोजना और पहचानना, जो उन कारणों के परिणाम है, जो हमारी आंखों के सामने ऐतिहासिक तथ्य बनाते हैं, पढ़ने और अध्ययन करने की कला का अर्थ है, आवश्यक को स्मरण रखना और अनावश्यक को छोड़ देना। मेरे इतिहास के प्रोफेसर, जो पढ़ाने और लिखाने में उपयोगी दृष्टिकोण को कैसे लागू किया जा सकता है, बताते थे, कि आवश्यक को ग्रहण करना तथा अनावश्यक का त्याग करना, यह लिंज में रियालशूल के निवासी डॉक्टर लियोपोल्ड पुच्छ थे, जो इतिहास के अध्यापक थे, वे उन गुणों की जीती जागती तस्वीर थे, साथ ही साथ वे एक आकर्षक वक्ता भी थे, ये प्रोफेसर न केवल वर्तमान से उदाहरण लेकर भूतकाल का वर्णन कर सकते थे, बल्कि अतीत से वर्तमान के लिए एक सीख भी निकाल सकते थे, मुझे ऐसा प्रोफेसर म...