मैंने कई साल पहले ऑस्ट्रेलिया के एक किशोर के साथ काम किया था। यह किशोर डॉक्टर और सर्जन बनना चाहता था, लेकिन उसके पास पैसा नहीं था; न ही उसने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की थी। ख़र्च निकालने के लिए वह डॉक्टरों के ऑफिस साफ करता था, खिड़कियाँ धोता था और मरम्मत के छुटपुट काम करता था। उसने मुझे बताया कि हर रात जब वह सोने जाता था, तो वह दीवार पर टंगे डॉक्टर के डिप्लोमा का चित्र देखता था, जिसमें उसका नाम बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था। वह जहाँ काम करता था, वहाँ वह डिप्लोमाओं को साफ करता और चमकाता था, इसलिए उसे मन में डिप्लोमा की तस्वीर देखना या उसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं था। मैं नहीं जानता कि उसने इस तस्वीर को देखना कितने समय तक जारी रखा, लेकिन उसने यह कुछ महीनों तक किया होगा। जब वह लगन से जुटा रहा, तो परिणाम मिले। एक डॉक्टर इस लड़के को बहुत पसंद करने लगा। उस डॉक्टर ने उसे औज़ारों को कीटाणुरहित करने, इंजेक्शन लगाने और प्राथमिक चिकित्सा के दूसरे कामों की कला का प्रशिक्षण दिया। वह किशोर उस डॉक्टर के ऑफिस में तकनीकी सहयोगी बन गया। डॉक्टर ने उसे अपने खर्च पर हाई स्कूल और बाद में कॉलेज भी भेजा। आज
हिटलर एक प्रचंड राष्ट्रवादी था, उसने छोटी सी आयु में ही उन संघर्षों में भाग लेना शुरू कर दिया, हिटलर राष्ट्रवाद की दिशा में बड़ी तेजी से बढ़ने लगा, और उसने 15 वर्ष की आयु में ही परंपरागत राष्ट्रीयता और जनसाधारण की धारणा पर आधारित राष्ट्रीयता के अंतर को स्पष्ट पहचानने लगा, और उसका झुकाव राष्ट्रीयता की और था।
इतिहास के अध्ययन का अर्थ है, कि उन शक्तियों को खोजना और पहचानना, जो उन कारणों के परिणाम है, जो हमारी आंखों के सामने ऐतिहासिक तथ्य बनाते हैं, पढ़ने और अध्ययन करने की कला का अर्थ है, आवश्यक को स्मरण रखना और अनावश्यक को छोड़ देना।
मेरे इतिहास के प्रोफेसर, जो पढ़ाने और लिखाने में उपयोगी दृष्टिकोण को कैसे लागू किया जा सकता है, बताते थे, कि आवश्यक को ग्रहण करना तथा अनावश्यक का त्याग करना, यह लिंज में रियालशूल के निवासी डॉक्टर लियोपोल्ड पुच्छ थे, जो इतिहास के अध्यापक थे, वे उन गुणों की जीती जागती तस्वीर थे, साथ ही साथ वे एक आकर्षक वक्ता भी थे, ये प्रोफेसर न केवल वर्तमान से उदाहरण लेकर भूतकाल का वर्णन कर सकते थे, बल्कि अतीत से वर्तमान के लिए एक सीख भी निकाल सकते थे, मुझे ऐसा प्रोफेसर मिलने के कारण ही इतिहास मेरा रुचिकर विषय बन गया, आज भी मैं उस कोमल व्यक्तित्व को याद कर भावुक हुए बिना नहीं रह सकता।
पाठशाला में इतिहास के अध्ययन में जिस तरह की ऐतिहासिक विचारधारा को मुझ में उत्पन्न किया, उसने फिर कभी मेरा पीछा नहीं छोड़ा, विश्व का इतिहास अब मेरे लिए असीम ज्ञान का एक स्रोत बन गया, इससे में तत्कालीन ऐतिहासिक घटनाओं को समझने में समर्थ हो सका, इस सब का परिणाम यह हुआ, कि मुझे राजनीति सीखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी।
यह मेरे लिए बड़े सौभाग्य की बात थी, कि उस छोटे से कस्बाई शहर में सुलभ साधनों ने मुझे इस योग्य बना दिया, कि मैं बाद में बेहतर कला प्रसंगों की प्रशंसा करने के योग्य बन सका।
मेरे कला प्रेम ने मेरे पिता द्वारा सुझाए गए व्यवसाय के विरुद्ध गंभीर प्रतिरोध पैदा करने में मेरी काफी सहायता की, और जवानी के अल्हड़पन के बढ़ने के साथ-साथ मेरा विरोध भी बढ़ता गया, मेरा विश्वास और भी दृढ़ हो गया कि मैं कलाकार बनना चाहता था, और वास्तुकला में मेरी रुचि बढ़ती जा रही थी, मेरे विचार में यह स्थिति चित्रकला के प्रति मेरी प्रकृति का सहज परिणाम थी, कि मुझे कभी विचार ही नहीं आया कि एक दिन कभी इसके विपरीत भी कुछ ऐसा हो सकता है........... एडोल्फ हिटलर
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