मन सभी धर्मों, कर्मों, प्रवृतियों का अगुआ है। सभी कर्मों (धर्मों) में मन पूर्वगामी है। मन ही प्रधान है, प्रमुख है, सभी धर्म (चैत्तसिक अवस्थाएं) पहले मन में ही पैदा होती हैं। मन सभी मानसिक प्रवृतियों में श्रेष्ठ है, स्वामी है। सभी कर्म मनोमय है। मन सभी मानसिक प्रवृतियों का नेतृत्व करता है क्योंकि सभी मन से ही पैदा होती है। जब कोई व्यक्ति अशुद्ध मन से, मन को मैला करके, बुरे विचार पैदा करके वचन बोलता है या शरीर से कोई पाप कर्म (बुरे कर्म) करता है, तो दुख उसके पीछे-पीछे वैसे ही हो लेता है जैसे बैलगाड़ी खींचने वाले बैलों के पैरों के पीछे-पीछे चक्का (पहिया) चलता है। मन सभी प्रवृतियों, भावनाओं का पुरोगामी है यानी आगे-आगे चलने वाला है। सभी मानसिक क्रियाकलाप मन से ही उत्पन्न होते हैं। मन श्रेष्ठ है, मनोमय है। मन की चेतना ही हमारे सुख-दुख का कारण होती है। हम जो भी फल भुगतते हैं, परिणाम प्राप्त करते हैं। वह मन का ही परिणाम है। कोई भी फल या परिणाम हमारे विचार या मन पर निर्भर है। जब हम अपने मन, वाणी और कमों को शुद्ध करेंगे तभी दुखों से मुक्ति मिल सकती है। मन हमारी सभी प्रकार की भावनाओं, प्रव...
1. अगर आप अपने दिमाग को सकारात्मक रखना चाहते हैं तो आलोचना करने से इंकार कर दे, शिकायत करना छोड़ दें, और किसी भी चीज के लिए दूसरों की निंदा करना बंद कर दें, जब भी आप किसी दूसरे की आलोचना करते हैं, किसी चीज की शिकायत करते हैं या कोई चीज करने या नहीं करने के लिए किसी की निंदा करते हैं तो हर बार आप अपने भीतर नकारात्मकता और क्रोध की भावनाएं जगा देते हैं और फिर कष्ट भी आपको भी भुगतना पड़ता है। 2. जब आप जल भून रहे होते हैं तब आपके शत्रु नाच गा रहे होते हैं। 3. आप आज जहां हैं और जो हैं इसलिए हैं क्योंकि आपने ही इसका फैसला किया है। 4. अगर कोई ऐसी चीज है जिससे लेकर आप खुश नहीं है तो यह आप पर ही निर्भर करता है कि आप उसे बदलने और बेहतर बनाने के लिए कुछ ऐसे कदम उठाए जिससे वह आपके मनमाफिक हो जाए। 5. आज आप उतना ही कमा रहे हैं जितना आपने कमाने का फैसला किया है ना उससे कम, ना उससे ज्यादा। 6. कोई भी व्यक्ति आपकी उतनी परवाह नहीं करता जितनी कि आप स्वयं की करते हैं। 7. अपनी तकदीर का स्वामी स्वयं को माने या स्वयं बने। 8. अतीत की घटनाओं के बारे में अफसोस और शिकायत करना छोड़ दें, क्योंकि उन्हें बदला नही...