कैलिफोर्निया में एक टीचर को हर साल पाँच-छह हजार डॉलर का वेतन मिलता था। उसने एक दुकान में एक सुंदर सफेद अर्मीन कोट देखा, जिसका भाव 8,000 डॉलर था। उसने कहा, "इतना पैसा बचाने में तो मुझे कई साल लग जाएँगे। मैं इसका ख़र्च कभी नहीं उठा सकती। ओह, मैं इसे कितना चाहती हूँ!" इन नकारात्मक अवधारणाओं से विवाह करना छोड़कर उसने सीखा कि वह अपना मनचाहा कोट, कार या कोई भी दूसरी चीज़ हासिल कर सकती है और इसके लिए उसे संसार में किसी को चोट पहुँचाने की ज़रूरत नहीं है। मैंने उससे यह कल्पना करने को कहा कि उसने कोट पहन रखा है। कि कल्पना में वह इसका सुंदर फर छुए, महसूस करे और इसे सचमुच पहनने की भावना जगाए। वह रात को सोने से पहले अपनी कल्पना की शक्ति का इस्तेमाल करने लगी। उसने अपनी कल्पना में वह कोट पहना, उसे सहलाया, उस पर हाथ फेरा, जिस तरह कि कोई बच्ची अपनी गुड़िया के साथ करती है। वह ऐसा हर रात करती रही और आख़िरकार उसे इस सबका रोमांच महसूस हो गया। वह हर रात यह काल्पनिक कोट पहनकर सोने गई और इसे हासिल करने पर वह बहुत खुश थी। तीन महीने गुज़र गए, लेकिन कुछ नहीं हुआ। वह डगमगाने वाली थी, लेकिन उसने खुद को य...
अगर आपका कोई लक्ष्य ही नहीं है, तो आपकी सफलता असंदिग्ध है। अगर आप यही नहीं जानते कि आप कहाँ पहुँचना चाहते हैं, तो आप कहीं नहीं पहुँच सकते। जैसे, किसी यात्रा पर जाने से पहले आपको यह पता होना चाहिए कि आप कहाँ जाना चाहते हैं, उसी तरह आपको यह भी पता होना चाहिए कि आर्थिक क्षेत्र में आप कहाँ पहुँचना चाहते हैं। तभी आप वहाँ तक पहुँच सकते हैं। यदि आपकी कोई मंज़िल ही नहीं है, तो आप वहाँ तक पहुँचने की योजना कैसे बनाएँगे और उस दिशा में कैसे चलेंगे? अगर आप जीवन में कुछ करना चाहते हैं, तो यह जान लें कि लक्ष्य के बिना काम नहीं चलेगा।
लक्ष्य दो तरह के होते हैं : सामान्य लक्ष्य और निश्चित लक्ष्य।
सामान्य लक्ष्य इस प्रकार के होते हैं, 'मैं और ज़्यादा मेहनत करूँगा,' 'मैं अपनी कार्यकुशलता बढ़ाऊँगा,' 'मैं अपनी योग्यता में वृद्धि करूँगा' इत्यादि। दूसरी ओर, स्पष्ट लक्ष्य इस प्रकार के होते हैं, 'मैं हर दिन 8 घंटे काम करूँगा,' या 'मैं हर महीने 20,000 रुपए कमाऊँगा,' या 'मैं सॉफ्टवेयर डिज़ाइनिंग का कोर्स करूँगा।' स्पष्ट लक्ष्य वे होते हैं, जिन्हें नापा या जाँचा जा सकता है।
लक्ष्य जितना स्पष्ट होता है, आपके सफल होने की संभावना उतनी ही ज़्यादा होती है। स्पष्ट आर्थिक लक्ष्य सफलता के लिए कितने महत्वपूर्ण होते हैं, इसका एक उदाहरण देखें।
'एक सेल्समैन की पत्नी अस्पताल में लंबे समय तक भर्ती रही। हैरानी की बात यह थी कि उस साल सेल्समैन ने अपने सामान्य औसत से लगभग दुगुना सामान बेचा। जब उससे उसकी सफलता का कारण पूछा गया, तो उसने कहा कि अस्पताल का बिल उसके सामने रखा था और वह सटीकता से जानता था कि बिल चुकाने के लिए उसे कितना सामान बेचना होगा।'
इस उदाहरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि अगर कोई मनुष्य ठान ले, तो वह अपने आर्थिक लक्ष्य हासिल कर सकता है, बशर्ते उसके सामने स्पष्ट लक्ष्य हो।
इसलिए समय के सर्वश्रेष्ठ उपयोग का दूसरा सिद्धांत है : आर्थिक लक्ष्य बनाएँ।
आर्थिक लक्ष्य बनाना बहुत ही आसान है। आपको पहले तो यथार्थवादी ढंग से यह तय करना है कि आप हर महीने कितनी धनराशि कमाना चाहते हैं और फिर गणित की सहायता से यह पता लगाना है कि इस धनराशि को कैसे कमाया जाए।
उदाहरण के लिए, अगर कोई दुकानदार हर महीने 10,000 रुपए कमाना चाहता है और उसे एक प्रॉडक्ट बेचने पर 50 रुपए लाभ होता है, तो गणित आसान है। उसे हर महीने 200 प्रॉडक्ट्स बेचने हैं (10,000/50)। यदि वह महीने में 25 दिन काम करता है, तो उसे हर दिन 8 प्रॉडक्ट्स बेचने होंगे। औसत का यह आँकड़ा जानने के बाद अब वह काम को टाल नहीं सकता। अब वह मूड न होने या बोरियत का बहाना भी नहीं बना सकता। इसलिए, क्योंकि काग़ज़ पर अंकों का गणित उसे बता रहा है कि अगर लक्ष्य प्राप्त करना है, तो उसे हर दिन इतना काम करना ही पड़ेगा।
स्पष्ट लक्ष्य होने पर आपको हर पल पता रहता है कि आपने कितनी प्रगति की है और यह संतोषजनक है या नहीं। ऊपर दिए उदाहरण में अगर दुकानदार शाम तक 8 प्रॉडक्ट्स बेच लेता है, तो वह जान जाएगा कि उसने आज का लक्ष्य पूरा कर लिया है, परंतु अगर वह 8 प्रॉडक्ट्स नहीं बेच पाता, तो उसे यह एहसास हो जाएगा कि मासिक लक्ष्य तक पहुँचने के लिए अगले दिन उसे 8 से भी ज़्यादा प्रॉडक्ट्स बेचने होंगे।
आर्थिक लक्ष्य 20-20 क्रिकेट मैच के लक्ष्य की तरह होते हैं। बाद में खेलने वाली टीम जानती है कि उसका लक्ष्य क्या है और जीतने के लिए उसे हर ओवर में किस औसत से रन बनाना है? हर ओवर के बाद अपेक्षित औसत घटता-बढ़ता रहता है और यही मासिक या वार्षिक आर्थिक लक्ष्यों के बारे में भी सही है।
आर्थिक लक्ष्य बनाना और उनके संदर्भ में अपनी प्रगति की जाँच करते रहना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि हम अक्सर इस बारे में मुगालते में रहते हैं। हमें लगता है कि हम बहुत मेहनत कर रहे हैं, हमें लगता है कि हम जितना कर रहे हैं, उससे ज़्यादा नहीं कर सकते। लेकिन याद रखें, मेहनत का मतलब हमेशा सफलता नहीं होता। सफलता पाने के लिए यह ज़रूरी है कि मेहनत सही दिशा में की जाए। आर्थिक विश्लेषण से हमें यह पता चल जाता है कि हम सही दिशा में मेहनत कर रहे हैं या नहीं। देखिए, महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि आपका इनपुट क्या है, महत्वपूर्ण बात तो यह है कि आपका आउटपुट क्या है; यानी महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि आप कितनी मेहनत कर रहे हैं, बल्कि यह है कि आप कितने सफल हो रहे हैं।
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