अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें। डेनियल काहनेमन की पुस्तक थिंकिंग, फास्ट एंड स्लो पिछले कुछ वर्षों में लिखी गई सर्वश्रेष्ठ और सबसे ज़्यादा गहन चिंतन वाली पुस्तकों में से एक है। वे बताते हैं कि हमें अपने दैनिक जीवन में जिन बहुत सी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, उनसे निपटने के लिए दो अलग-अलग प्रकार की सोच का इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है। तीव्र सोच का इस्तेमाल हम अल्पकालीन कामों, ज़िम्मेदारियों, गतिविधियों, समस्याओं और स्थितियों से निपटने के लिए करते हैं। इसमें हम जल्दी से और सहज बोध से काम करते हैं। ज़्यादातर मामलों में तीव्र सोच हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों के लिए पूरी तरह उचित होती है। दूसरी तरह की सोच का वर्णन काहनेमन धीमी सोच के रूप में करते हैं। इसमें आप पीछे हटते हैं और स्थिति के विवरणों पर सावधानीपूर्वक सोचने में ज़्यादा समय लगाते हैं और इसके बाद ही निर्णय लेते हैं कि आप क्या करेंगे। काहनेमन की ज्ञानवर्धक जानकारी यह है कि आवश्यकता होने पर भी हम धीमी सोच करने में असफल रहते हैं और इसी वजह से हम जीवन में कई ग़लतियाँ कर बैठते हैं। समय के प्रबंधन में उत्कृष्ट बनने और अपने
हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में 1979 और 1989 के बीच हार्वर्ड में हुए एक अध्ययन के बारे में बताया गया है, 1979 में हार्वर्ड कि एमबीए ग्रैजुएट्स से पूछा गया, क्या आपने अपने भविष्य के लिए स्पष्ट लिखित लक्ष्य तय किए हैं और उन्हें हासिल करने की कोई योजना बनाई है ? पता चला कि सिर्फ 3 प्रतिशत ग्रैजुएट्स के पास लिखित लक्ष्य और योजनाएं थी, 13 प्रतिशत के पास लक्ष्य तो थे लेकिन उन्होंने लिखें नहीं थे, 84 प्रतिशत के पास स्पष्ट लक्ष्य ही नहीं थे सिवाय इसके कि वह बिजनेस स्कूल से जाने के बाद गर्मियों का आनंद लें।
दस साल बाद 1989 में शोधकर्ताओं ने उस क्लास के सदस्यों से दोबारा संपर्क किया उन्होंने पाया कि जिन 13 प्रतिशत के पास अलिखित लक्ष्य थे वे लक्ष्य न बनाने वाले 84 प्रतिशत विद्यार्थियों से औसतन दोगुना कमा रहे थे लेकिन उनमें सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह थी कि हार्वर्ड छोड़ते वक्त जिन 3 प्रतिशत ग्रेजुएट्स के पास स्पष्ट, लिखित लक्ष्य थे वे बाकी सभी 97 प्रतिशत से औसतन दस गुना ज्यादा कमाई कर रहे थे इन लोगों के मामले में इकलौता फर्क स्पष्ट लक्ष्यों का था जो उन्होंने पढ़ाई पूरी करते वक्त बनाए थे।
स्पष्टता का महत्व समझना आसान है कल्पना करें कि आप किसी बड़े शहर के बाहरी इलाके में खड़े हैं और आपसे उस शहर में किसी खास घर या ऑफिस तक गाड़ी से पहुंचने को कहा जाता है लेकिन यहां एक पेच है, सड़क पर कोई साइन बोर्ड नहीं है और आपके पास शहर का नक्शा भी नहीं है सच तो यह है कि आपको उस घर या ऑफिस का सिर्फ बहुत सतही वर्णन ही बताया गया है सवाल यह है आपको क्या लगता है कि नक्शे और साइन बोर्ड के बिना आपको शहर में वह मकान या ऑफिस खोजने में कितना समय लगेगा ?
जवाब है पूरी जिंदगी भी लग सकती हैं अगर आप कभी उस मकान या ऑफिस को खोज ले, तो यह बहुत हद तक किस्मत का मामला होगा, और दुखद बात यह है कि ज्यादातर लोग अपनी जिंदगी इसी तरह जीते हैं।
अधिकांश लोग जिंदगी भर नक्शे और साइन बोर्ड के बिना दुनिया में निरुद्धदेश्य से यात्रा शुरू कर देते हैं यह जीवन में बिना लक्ष्य और योजनाओं के काम शुरू करने जैसा है, वे बीच राह में चीजें सोचने के आदी होते हैं, नतीजा यह होता है कि आम तौर पर, दस बीस साल नौकरी करने के बावजूद वे कड़के बने रहते हैं अपनी नौकरी में दुखी नजर आते हैं अपने जीवनसाथी से असंतुष्ट रहते हैं और बहुत कम तरक्की कर पाते हैं, और इसके बावजूद वे हर रात घर जाकर टीवी देखते हैं और चीजों के बेहतर होने की उम्मीद करते हैं, लेकिन वे शायद ही कभी बेहतर होती हैं, अपने आप तो नहीं ही होती।
अर्ल नाइटिंगेल ने एक बार लिखा था : खुशी किसी सार्थक आदर्श या लक्ष्य की क्रमिक प्राप्ति हैं।
आप सच्ची खुशी तभी महसूस करते हैं जब आप किसी महत्वपूर्ण चीज की और कदम दर कदम प्रगति कर रहे होते हैं।
लोगोथेरेपी के संस्थापक विक्टर फ्रैंकल ने लिखा था कि : इंसान की सबसे बड़ी जरूरत जिंदगी में अर्थ और उद्देश्य का एहसास होना है ।
लक्ष्य आपको अर्थ और उद्देश्य दोनों का एहसास दिलाते हैं, लक्ष्य आपको दिशा का एहसास भी दिलाते हैं अपने लक्ष्य की और आगे बढ़ते वक्त आप ज्यादा खुशी और शक्तिशाली महसूस करते हैं, आप ज्यादा ऊर्जावान और प्रभावी महसूस करते हैं, आप ज्यादा कार्यकुशल योग्य और आत्मविश्वासी महसूस करते हैं, लक्ष्यों की और उठा हर कदम आपके इस विश्वास को बढ़ा देता है कि आप भविष्य में ज्यादा बड़े लक्ष्य तय कर सकते हैं और उन्हें पा सकते हैं।
आप जितने लोग भविष्य के बारे में चिंतित हैं और परिवर्तन से डर रहे हैं उतने इतिहास में किसी और युग में नहीं रहे, लक्ष्य निर्धारण का एक बहुत बड़ा फायदा यह है कि लक्ष्य होने पर आप जीवन में परिवर्तन की दिशा को नियंत्रित कर सकते हैं, लक्ष्य होने पर आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि अपनी जिंदगी के ज्यादातर परिवर्तन आप खुद तय करे और वे आपकी मनचाही दिशा में हो, लक्ष्य होने पर आप हर काम को सार्थक और उद्देश्यपूर्ण बना सकते हैं।
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जब आप अपनी सोच को बदलते हैं तो आप अपनी जिंदगी को भी बदल देते हैं।