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अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें

अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें। डेनियल काहनेमन की पुस्तक थिंकिंग, फास्ट एंड स्लो पिछले कुछ वर्षों में लिखी गई सर्वश्रेष्ठ और सबसे ज़्यादा गहन चिंतन वाली पुस्तकों में से एक है। वे बताते हैं कि हमें अपने दैनिक जीवन में जिन बहुत सी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, उनसे निपटने के लिए दो अलग-अलग प्रकार की सोच का इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है। तीव्र सोच का इस्तेमाल हम अल्पकालीन कामों, ज़िम्मेदारियों, गतिविधियों, समस्याओं और स्थितियों से निपटने के लिए करते हैं। इसमें हम जल्दी से और सहज बोध से काम करते हैं। ज़्यादातर मामलों में तीव्र सोच हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों के लिए पूरी तरह उचित होती है। दूसरी तरह की सोच का वर्णन काहनेमन धीमी सोच के रूप में करते हैं। इसमें आप पीछे हटते हैं और स्थिति के विवरणों पर सावधानीपूर्वक सोचने में ज़्यादा समय लगाते हैं और इसके बाद ही निर्णय लेते हैं कि आप क्या करेंगे। काहनेमन की ज्ञानवर्धक जानकारी यह है कि आवश्यकता होने पर भी हम धीमी सोच करने में असफल रहते हैं और इसी वजह से हम जीवन में कई ग़लतियाँ कर बैठते हैं। समय के प्रबंधन में उत्कृष्ट बनने और अपने

सर्वश्रेष्ठ लीडर कैसे बने

आज हमारे समाज में नेतृत्व की बहुत ज़रूरत है। चाहे हमारा घर हो या व्यावसायिक संगठन, चाहे निजी व सार्वजनिक संगठन हों या हमारी सरकार, हर जगह नेतृत्व की ज़रूरत है।आज नेतृत्व की ज़रूरत पहले से कहीं ज़्यादा है। और ख़ासतौर पर, हमें ऐसे नेतृत्व की ज़रूरत है, जो हमें सफलतापूर्वक भविष्य में ले जाए। हमें ऐसे लोगों की जरूरत है, जिनमें स्वप्न और साहस हो, जिनमें नए काम करने और नई राहें बनाने की क्षमता हो।

हमें दो प्रकार के लीडर चाहिए। 
पहला सबसे महत्त्वपूर्ण या आधारभूत है कार्यसंपादन लीडर । कार्यसंपादन लीडर वह व्यक्ति होता है, जो दूसरों के साथ काम करता है और उनसे काम कराता है।
हमें जिस दूसरे प्रकार के लीडर की ज़रूरत है, वह है काया-कल्पकारी लीडर। यह वह लीडर है, जो नया रास्ता बनाता है। यह वह लीडर है, जो स्वप्नदृष्टा होता है। यह वह लीडर है, जो लोगों को पहले से ज़्यादा ऊँचे स्तर पर प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित करता है, ऊपर उठाता है, प्रेरित करता है और सशक्त बनाता है।

हमें अपनी संस्थाओं, और खासतौर पर अपने व्यवसायों में नेतृत्व की भारी ज़रूरत है। इसका कारण यह है आज के कर्मचारी सहभागी बनना चाहते हैं। वे अपनी नौकरी या कार्यभार के संबंध में बातचीत करना चाहते हैं। वे कामकाज में अपने प्रदर्शन पर नियमित फ़ीडबैक चाहते हैं। वे यह जानना चाहते हैं, इसमें मेरे लिए क्या है, आज जब लोग किसी नौकरी का इंटरव्यू देने जाते हैं, तो उनमें से ज़्यादातर का नज़रिया यह होता है, “मुझे आपके यहाँ काम क्यों करना चाहिए ?"

नेतृत्व की दो बेहतरीन परिभाषाएँ हैं, ख़ासतौर पर कारोबारी संगठनों के संदर्भ में पहली नेतृत्व साधारण लोगों से असाधारण प्रदर्शन कराने की योग्यता है।
दूसरी नेतृत्व अनुयायी हासिल करने की योग्यता है।

वर्तमान में पद, पैसे या सत्ता के आधार पर हासिल नेतृत्व अल्पजीवी होता है। जिसे बाहरी कारण नेतृत्व कहा जाता है। स्थायी नेतृत्व सिर्फ़ वही होता है, जहाँ लोग यह निर्णय लेते हैं कि वे आपकी दिशा, आपके मार्गदर्शन और आपके स्वप्न का अनुसरण करेंगे। 

दूसरे शब्दों में, यह अनुसरण की स्वैच्छिक पहल है, जो आज के सर्वश्रेष्ठ लीडर्स की निशानी है। लीडर पैदा नहीं होते, बल्कि बनते हैं। कोई भी नैसर्गिक लीडर बनकर इस संसार में नहीं आता है। लीडर बनने के लिए सिकंदर महान को भी अध्ययन करना पड़ा था।

आप प्रभावी नेतृत्व के गुणों का जितना ज़्यादा अध्ययन करेंगे, इस बात की उतनी ही ज़्यादा संभावना है कि आप भी उन्हीं गुणों और व्यवहार को आत्मसात कर लेंगे, फिर ये गुण और व्यवहार आपके कामों और अंततः आपके परिणामों में प्रकट होंगे।

अब्राहम लिंकन ने लिखा था, “कुछ लोग सफल हुए हैं, यह इस बात का प्रमाण है कि दूसरे भी हो सकते हैं।” 

महान दार्शनिक बरट्रैंड रसेल ने लिखा था, “कोई चीज़ की जा सकती है, इस बात का सबसे अच्छा प्रमाण यह तथ्य है कि दूसरे इसे पहले कर चुके हैं।"

 अपनी जान-पहचान के उन स्त्री-पुरुषों के बारे में सोचें, जो आपकी नज़रों में प्रशंसनीय लीडर हैं और फिर यह सोचें कि आप उनके व्यवहार का अनुकरण कैसे कर सकते हैं। सोचें कि आप कैसे उनके जैसे बन सकते हैं। कुछ ही समय में आप सचमुच उनके गुण आत्मसात करने लगेंगे और एक समय ऐसा आएगा, जब आप खुद लीडर बन जाएँगे।

सिकंदर महान की कहानी हर उस व्यक्ति के लिए बहुत ज्ञानवर्धक है, जो नेतृत्व के ऊँचे पद पर पहुँचना चाहता है। आठ वर्ष की उम्र से पंद्रह वर्ष की उम्र तक आते-आते सिकंदर को यह विश्वास हो गया था कि संसार को जीतना उनके भाग्य में लिखा है। अरस्तू उनके गुरु थे और उनके मार्गदर्शन में सिकंदर ने कई सालों तक अध्ययन करके खुद को तैयार किया। 

सिकंदर ने अपने पिता और उनके सर्वश्रेष्ठ सेनापतियों से सैन्य कलाएँ सीखीं। उन्होंने खुद को एक महान सम्राट के रूप में देखा। उनके मन में अपनी योग्यताओं पर अटल विश्वास था कि वे जो भी लक्ष्य तय करेंगे, उन्हें हासिल कर लेंगे।

सिकंदर प्रशासन और क्रियान्वयन दोनों में विलक्षण थे। उन्होंने दूसरों को काम सौंपने में बहुत विवेक का परिचय देते हुए सही अफ़सरों को सही समय पर सही जगह पर नियुक्त किया। वे बुद्धिमत्ता से योजना बनाने, व्यवस्थापन करने, सोच-विचार करने और क्रियान्वयन करने में माहिर थे।

अरबेला के युद्ध में उनके साथ सिर्फ़ पचास हजार सैनिक थे, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने पर्शिया की दस लाख सैनिकों की सेना पर सामने से हमला किया और उन्हें पछाड़ दिया । पलभर के लिए भी उनके मन में पराजित होने का विचार नहीं आया। संभावनाएँ चाहे कितनी ही क्षीण क्यों ना दिख रही हों, उन्हें ख़ुद पर, अपने सैनिकों पर और हर मुश्किल पर विजय पाने की अपनी योग्यता पर पूरा भरोसा था।

सभी महान लीडर्स की तरह सिकंदर में भी अपने लोगों को संगठित करने की योग्यता थी। उनमें अपने साथियों को इस तरह प्रेरित करने की योग्यता भी थी, जिससे वे अतीत से बहुत ज़्यादा और बेहतर प्रदर्शन कर देते थे। उनमें अपनी शक्तियों पर एकाग्र होने और उन अति महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की भी योग्यता थी, जो विजय के लिए अनिवार्य थे। 

सिकंदर का जीवन और इतिहास नेतृत्व के उन सभी महान गुणों की मिसाल हैं, जिन्हें इस विषय पर हुए हर अध्ययन में पहचाना गया है।

समाज में दो प्रकार की श्रेणियां हैं जिसमें एक श्रेणी में सबसे नीचे हमें ऐसे लोग मिलते हैं, जिन्हें ज़रा भी पता नहीं है कि क्या हो रहा है। जबकि दूसरी सबसे ऊपर वाली श्रेणी में हमारे समाज के एक-दो प्रतिशत लोग रहते हैं, जो परिवर्तन के इंजन के स्पार्क प्लग होते हैं।

 अगर आप लीडर या बेहतर लीडर बनना चाहते हैं, तो यह याद रखें कि इसका दारोमदार पूरी तरह आप पर ही है। इसकी बागडोर आपके हाथों में हैं, या इससे भी ज़्यादा महत्त्वपूर्ण, आपके मस्तिष्क में है। 

आप ख़ुद के बारे में जैसा सोचते हैं, आप वैसे ही होते हैं। आपकी आत्म-छवि ही आपके प्रदर्शन को तय करती है। आप लीडर के रूप में खुद को जैसा मानते हैं, अगर आप इस बारे में अपनी धारणा बदल लें, तो आप ज्यादा प्रभावी लीडर बन सकते हैं।

 यह सब कारण और परिणाम के नियम से शुरू होता है। यह सृष्टि का बुनियादी नियम है। सभी नियम इस नियम के अधीन हैं। नियम यह है कि हर परिणाम के पीछे कोई ना कोई कारण होता है। कोई भी चीज़ यूँ ही या अकारण नहीं होती है। इस नियम के प्रभाव शक्तिशाली हैं।

अगर कोई व्यक्ति सफल है, तो उसकी सफलता के पीछे एक या अधिक कारण हैं, यानी अगर आप किसी दूसरे जितने सफल होना चाहते हैं, अगर आप सफल लोगों का अनुकरण करना चाहते हैं और उनके कामों व परिणामों का अनुसरण करना चाहते हैं, तो बस यह पता लगा लें कि उन्होंने क्या किया था और आप भी वही करने लगें। वही चीजें करें, जो सफल लोग करते हैं। उन्हें बार-बार करते रहें और अंततः आपको भी वैसे ही परिणाम मिलने लगेंगे।

विश्वास का नियम यह बताता है कि अगर आप प्रबलता के साथ किसी चीज़ में विश्वास करते हैं, तो वह चीज़ साकार हो जाएगी या इसे दूसरी तरह से कहें, तो अपने बारे में आपके जैसे विश्वास होते हैं, आप वैसे ही बन जाते हैं। 

दार्शनिक विलियम जेम्स ने कहा था, "विश्वास वास्तविक तथ्य का सृजनकार है।" आप इसे इस तरीके से भी कह सकते हैं कि "विश्वास वास्तविक तथ्य का निर्माण करता है।"

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