मन सभी धर्मों, कर्मों, प्रवृतियों का अगुआ है। सभी कर्मों (धर्मों) में मन पूर्वगामी है। मन ही प्रधान है, प्रमुख है, सभी धर्म (चैत्तसिक अवस्थाएं) पहले मन में ही पैदा होती हैं। मन सभी मानसिक प्रवृतियों में श्रेष्ठ है, स्वामी है। सभी कर्म मनोमय है। मन सभी मानसिक प्रवृतियों का नेतृत्व करता है क्योंकि सभी मन से ही पैदा होती है। जब कोई व्यक्ति अशुद्ध मन से, मन को मैला करके, बुरे विचार पैदा करके वचन बोलता है या शरीर से कोई पाप कर्म (बुरे कर्म) करता है, तो दुख उसके पीछे-पीछे वैसे ही हो लेता है जैसे बैलगाड़ी खींचने वाले बैलों के पैरों के पीछे-पीछे चक्का (पहिया) चलता है। मन सभी प्रवृतियों, भावनाओं का पुरोगामी है यानी आगे-आगे चलने वाला है। सभी मानसिक क्रियाकलाप मन से ही उत्पन्न होते हैं। मन श्रेष्ठ है, मनोमय है। मन की चेतना ही हमारे सुख-दुख का कारण होती है। हम जो भी फल भुगतते हैं, परिणाम प्राप्त करते हैं। वह मन का ही परिणाम है। कोई भी फल या परिणाम हमारे विचार या मन पर निर्भर है। जब हम अपने मन, वाणी और कमों को शुद्ध करेंगे तभी दुखों से मुक्ति मिल सकती है। मन हमारी सभी प्रकार की भावनाओं, प्रव...
क्या आपने कभी सोचा है कि आजकल हमें समय की इतनी कमी क्यों महसूस होती है ? समय पर काम न करने या होने पर हम झल्ला जाते हैं, आग बबूला हो जाते हैं, चिढ़ जाते हैं, तनाव में आ जाते हैं। समय की कमी के चलते हम लगभग हर पल जल्दबाज़ी और हड़बड़ी में रहते हैं। इस चक्कर में हमारा ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है, लोगों से हमारे संबंध ख़राब हो जाते हैं, हमारा मानसिक संतुलन गड़बड़ा जाता है और कई बार तो दुर्घटनाएँ भी हो जाती हैं। समय की कमी हमारे जीवन का एक अप्रिय और अनिवार्य हिस्सा बन चुकी है।
क्या आपने कभी यह बात सोची है: हमारे पूर्वजों को कभी टाइम मैनेजमेंट की ज़रूरत नहीं पड़ी, तो फिर हमें क्यों पड़ रही है? क्या हमारे पूर्वजों को दिन में 48 घंटे मिलते थे और हमें केवल 24 घंटे ही मिल रहे हैं? आप भी जानते हैं और मैं भी जानता हूँ कि ऐसा नहीं है! हर पीढ़ी को एक दिन में 24 घंटे का समय ही मिला है। लेकिन बीसवीं सदी की शुरुआत से हमारे जीवन में समय कम पड़ने लगा है और यह समस्या दिनो दिन बढ़ती ही जा रही है। बड़ी अजीव बात है, क्योंकि बीसवीं सदी की शुरुआत से ही मनुष्य समय बचाने वाले नए-नए उपकरण बनाता जा रहा है।
बीसवीं सदी से पहले कार नहीं थी, मोटर साइकल या स्कूटर भी नहीं थे, लेकिन हमारे पूर्वजों को कहीं पहुँचने की जल्दी भी नहीं थी। पहले मिक्सर, फ़ूड प्रोसेसर या माइक्रोवेव नहीं थे, लेकिन गृहिणियाँ सिल पर मसाला पीसने या चूल्हे पर खाना पकाने में किसी तरह की हड़बड़ी नहीं दिखाती थीं। पहले बिजली नहीं थी, लेकिन किसी को रात-रात भर जागकर काम करने की ज़रूरत भी नहीं थी। वास्तव में तब जीवन ज़्यादा सरल था, क्योंकि उस समय इंसान की ज़िंदगी घड़ी के हिसाब से नहीं चलती थी। औद्योगिक युग के बाद फैक्ट्री, ऑफ़िस और नौकरी का जो दौर शुरू हुआ, उसने मनुष्य को घड़ी का गुलाम बनाकर रख दिया।
पहले जीवन सरल था और अब जटिल हो चुका है : यही हमारी समस्या का मूल कारण है। पहले जीवन की रफ्तार धीमी थी, लेकिन अब तेज़ हो चुकी है। अब हमारे जीवन में इंटरनेट आ गया है, जो पलक झपकते ही हमें दुनिया से जोड़ देता है। अब हमारे जीवन में टी.वी. आ चुका है, जिसके प्रयोग से हम दुनिया की ख़बरें जान लेते हैं। अब हमारे पास कारें और हवाई जहाज़ हैं, जिनसे हम तेज़ी से कहीं भी पहुँच सकते हैं। अब हमारे पास 5जी मोबाइल्स हैं, जिनसे हम दुनिया में कहीं भी, किसी से भी बात कर सकते हैं और उसे देख भी सकते हैं। आधुनिक आविष्कारों ने हमारे जीवन की गति बढ़ा दी है। शायद आधुनिक आविष्कार ही हमारे जीवन में समय की कमी का सबसे बड़ा कारण हैं। इनकी बदौलत हम दुनिया से तो जुड़ गए हैं, लेकिन शायद खुद से दूर हो गए हैं।
यदि आप समय के सर्वश्रेष्ठ उपयोग को लेकर गंभीर हैं, तो इसका सबसे सीधा समाधान यह है यदि आप किसी तरह आधुनिक आविष्कारों से मुक्ति पा लें और दोबारा पुराने ज़माने की जीवनशैली अपना लें, तो आपको काफ़ी सुविधा होगी। नहीं, नहीं... मैं यहाँ चूल्हे पर रोटी पकाने या मुंबई से दिल्ली तक पैदल जाने की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं तो केवल यह कहना चाहता हूँ कि मोबाइल, टी.वी., इंटरनेट, चैटिंग आदि समय बर्बाद करने वाले आविष्कारों का इस्तेमाल कम कर दें।
पहले घड़ी हमारे जीवन पर हावी नहीं हुई थी और इसका सीधा सा कारण यह था कि ज़्यादातर लोगों के पास घड़ी थी ही नहीं। पहले अलार्म घड़ी की कोई ज़रूरत नहीं थी; मुर्गे की बाँग ही काफ़ी थी। तब 8:18 की लोकल पकड़ने का कोई तनाव नहीं रहता था। तब कोई काम सुबह नौ बजे हो या सवा नौ बजे, कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता था... लेकिन आज पड़ता है।
तो हम इस टॉपिक पर आगे बढ़ने से पहले यह बात अच्छी तरह से समझ लें कि डाइबिटीज़, हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और हृदय रोग की तरह ही समय की कमी भी एक आधुनिक समस्या है, जो आधुनिक जीवनशैली का परिणाम है। यदि आप इस समस्या को सुलझाना चाहते हैं, तो आपको अपनी जीवनशैली को बदलना होगा। याद रखें, दुनिया नहीं बदलेगी; बदलना तो आपको ही है। यदि आप अपनी जीवनशैली और सोच को बदल लेंगे, तो समय का समीकरण भी बदल जाएगा। जैसा अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा था, 'हम जिन महत्वपूर्ण समस्याओं का सामना करते हैं, उन्हें सोच के उसी स्तर पर नहीं सुलझाया जा सकता, जिस पर हमने उन्हें उत्पन्न किया था।'
अब गेंद आपके पाले में है! अपनी सोच बदलें, जीवनशैली बदलें और समय का उचित प्रबंधन करके अपना जीवन बदल लें। इस संदर्भ में आधुनिक प्रबंधन के पितामह पीटर एफ. ड्रकर की बात याद रखें, 'जब तक हम समय का प्रबंधन नहीं कर सकते, तब तक हम किसी भी चीज़ का प्रबंधन नहीं कर सकते।'
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जब आप अपनी सोच को बदलते हैं तो आप अपनी जिंदगी को भी बदल देते हैं।