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अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें

अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें। डेनियल काहनेमन की पुस्तक थिंकिंग, फास्ट एंड स्लो पिछले कुछ वर्षों में लिखी गई सर्वश्रेष्ठ और सबसे ज़्यादा गहन चिंतन वाली पुस्तकों में से एक है। वे बताते हैं कि हमें अपने दैनिक जीवन में जिन बहुत सी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, उनसे निपटने के लिए दो अलग-अलग प्रकार की सोच का इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है। तीव्र सोच का इस्तेमाल हम अल्पकालीन कामों, ज़िम्मेदारियों, गतिविधियों, समस्याओं और स्थितियों से निपटने के लिए करते हैं। इसमें हम जल्दी से और सहज बोध से काम करते हैं। ज़्यादातर मामलों में तीव्र सोच हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों के लिए पूरी तरह उचित होती है। दूसरी तरह की सोच का वर्णन काहनेमन धीमी सोच के रूप में करते हैं। इसमें आप पीछे हटते हैं और स्थिति के विवरणों पर सावधानीपूर्वक सोचने में ज़्यादा समय लगाते हैं और इसके बाद ही निर्णय लेते हैं कि आप क्या करेंगे। काहनेमन की ज्ञानवर्धक जानकारी यह है कि आवश्यकता होने पर भी हम धीमी सोच करने में असफल रहते हैं और इसी वजह से हम जीवन में कई ग़लतियाँ कर बैठते हैं। समय के प्रबंधन में उत्कृष्ट बनने और अपने

उत्कृष्ट श्रोता बनने की कुंजी

लीडर उत्कृष्ट श्रोता होते हैं। किसी लीडर का 50-60 प्रतिशत समय सुनने में लगता है। उत्कृष्ट श्रोता बनने की कुंजी यह है कि सिर्फ़ शब्दों को ही ना सुनें, बल्कि शब्दों के पीछे की बात को भी सुनें। असली संदेश को सुनें और अपना सारा ध्यान बोलने वाले पर केंद्रित करें। 

दूसरों के साथ मुलाक़ातों और चर्चाओं में यह करें :

 1. ध्यानपूर्वक सुनें। अपने दिमाग़ को साफ़ कर लें और सामने वाला जो कह रहा है, उसी पर ध्यान केंद्रित करें। 'इसकी नकल' की कोशिश ना करें, क्योंकि यह पैंतरा कामयाब नहीं होता है। लोग समझ जाते हैं कि आपका दिमाग़ कहीं और भटक रहा है। 

शोधकर्ताओं के अनुसार जब भी कोई बातचीत होती है, तो शब्द किसी संदेश को सिर्फ़ 7 प्रतिशत संप्रेषित कर पाते हैं। आपकी आवाज़ के लहज़े से संदेश 38 प्रतिशत पहुँचता है। संदेश पहुँचाने के मामले में आपकी बॉडी लैंग्वेज सबसे अहम भूमिका निभाती है, क्योंकि यह 55 प्रतिशत संदेश पहुँचाती है।
 
अपने शरीर को सुनने की मुद्रा में रखें और वक्ता की तरफ़ थोड़ा झुकें। आपकी यह मुद्रा वक्ता को स्पष्ट बता देती है कि आप उसकी बात सुन रहे हैं और उसकी बात बीच में ना काटें। अगर आप बोल रहे हैं, तो इसका मतलब यह है कि आप सुन नहीं रहे हैं।

2. जवाब देने से पहले ठहरें। जब सामने वाला बोलना बंद कर दे या बातचीत में विराम आ जाए, तो आप यह सोच सकते हैं कि सामने वाले की बात पूरी हो गई है और आपके मन में बीच में कूदने का प्रलोभन आ सकता है, लेकिन हो सकता है कि सामने वाला अपने विचारों को व्यवस्थित करने के लिए पल भर रुका हो और आगे भी बोलना चाहता हो। अगर आप इस पल बीच में बोलने लगते हैं, तो उसे ऐसा लगेगा जैसे आप अवरोध डाल रहे हैं। 

अगर आप जवाब देने से पहले ठहरते हैं और पल भर की ख़ामोशी रहने देते हैं, तो आप सामने वाले का अर्थ ज़्यादा गहरे स्तर पर सुन सकेंगे। आप दूसरे लोगों की कही बातों को ज़्यादा अच्छी तरह समझेंगे, क्योंकि आप उनके बोलते समय खुद बोलने की ताक में नहीं रहते हैं। अंत में, जब सामने वाले व्यक्ति की बात पूरी हो जाए, तो ठहरने से उसे यह समझ आ जाता है कि आप उसकी बात सचमुच सुन रहे हैं। और जवाब देने से पहले सावधानी से उसकी कही बातों पर विचार कर रहे हैं।

3. प्रश्न पूछ कर स्पष्टीकरण माँगें। सवाल पूछने की तकनीक भी यह साबित करती है कि आप सामने वाले की बात सचमुच सुन रहे थे, सुनने का नाटक नहीं कर रहे थे। इतना ही नहीं, सवाल पूछने से फ़ायदा यह होगा कि आप सामने वाले की कही बातों के बारे में ग़लत मान्यताएँ बनाने या ग़लत निष्कर्ष निकालने से बच जाएँगे। 

अगर आपको पक्का यक़ीन नहीं है, तो यह मानकर ना चलें कि आप समझ गए हैं। इस तरह के प्रश्न पूछकर स्थिति को स्पष्ट कर लें :
“आपका सटीक मतलब क्या है?"
"आप इस बारे में कैसा महसूस करते हैं?"

4. वक्ता की कही बातों को अपने शब्दों में दोहराएँ। इससे ना सिर्फ़ वक्ता को यह पता चल जाएगा कि आपने उसकी बात गौर से सुनी है, बल्कि उसे यह भी पता चल जाएगा कि आप उसकी बात अच्छी तरह समझ गए हैं और अगर आपने कोई चीज़ ग़लत समझ ली है, तो वक्ता के पास उसे सही करने का अवसर होता है।

5. बाधा डाले बिना सुनें। वाटरलू के युद्ध में नेपोलियन ने मार्शल ग्राउची को एक संदेश भेजा, जिसके पास 30,000 सैनिक युद्ध के मैदान से थोड़ी दूर थे। चूँकि नेपोलियन ने अपना संदेश जल्दबाज़ी में भेजा था, इसलिए जो आदेश ग्राउची के पास पहुँचे, वे इतने उलझन भरे थे कि उसे समझ नहीं आया कि क्या करना है, इसलिए उसने कुछ नहीं किया। वह अपने 30,000 सैनिकों के साथ रणभूमि से दूर बैठा रहा, जबकि कुछ पहाड़ियों की दूरी पर वाटरलू में नेपोलियन युद्ध हार गया और यूरोपीय इतिहास की पूरी दिशा ही बदल गई और यह सब इसलिए हुआ, क्योंकि संदेश पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया था।

यदि आप लीडर हैं और कोई आपसे बात करना चाहता हो, तो दरवाज़ा बंद कर दें, फ़ोन बंद कर दें और बिना व्यवधान डाले पूरे ध्यान से सुनें। सुनना उन सबसे अच्छे तरीक़ों में से है, जिनसे आप यह पता लगा सकते हैं कि क्या हो रहा है। सुनने के प्रति लापरवाही भरा नज़रिया आपके लिए विनाशकारी हो सकता है।

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