अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें। डेनियल काहनेमन की पुस्तक थिंकिंग, फास्ट एंड स्लो पिछले कुछ वर्षों में लिखी गई सर्वश्रेष्ठ और सबसे ज़्यादा गहन चिंतन वाली पुस्तकों में से एक है। वे बताते हैं कि हमें अपने दैनिक जीवन में जिन बहुत सी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, उनसे निपटने के लिए दो अलग-अलग प्रकार की सोच का इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है। तीव्र सोच का इस्तेमाल हम अल्पकालीन कामों, ज़िम्मेदारियों, गतिविधियों, समस्याओं और स्थितियों से निपटने के लिए करते हैं। इसमें हम जल्दी से और सहज बोध से काम करते हैं। ज़्यादातर मामलों में तीव्र सोच हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों के लिए पूरी तरह उचित होती है। दूसरी तरह की सोच का वर्णन काहनेमन धीमी सोच के रूप में करते हैं। इसमें आप पीछे हटते हैं और स्थिति के विवरणों पर सावधानीपूर्वक सोचने में ज़्यादा समय लगाते हैं और इसके बाद ही निर्णय लेते हैं कि आप क्या करेंगे। काहनेमन की ज्ञानवर्धक जानकारी यह है कि आवश्यकता होने पर भी हम धीमी सोच करने में असफल रहते हैं और इसी वजह से हम जीवन में कई ग़लतियाँ कर बैठते हैं। समय के प्रबंधन में उत्कृष्ट बनने और अपने
लीडर गतिविधि केंद्रित नहीं बल्कि वे परिणाम-केंद्रित होते हैं। आप जो कर रहे हैं, अगर उसका कोई मूल्यवान परिणाम नहीं निकल रहा है, तो उसे करना मूल्यहीन और निरर्थक है। लीडर हमेशा उन परिणामों के संदर्भ में सोचते रहते हैं, जिनकी उनसे अपेक्षा की जाती है। परिणाम पाना खुद से सवाल पूछते रहने पर निर्भर करता है।
चार सवाल जिन्हें आप खुद से पूछ सकते हैं :
1. मेरी उच्च मूल्य की गतिविधियाँ कौन सी हैं? आप ऐसे कौन से काम करते हैं, जो आपके कामकाज और कंपनी के प्रति सबसे ज़्यादा मूल्यवान योगदान देते हैं? यही वे गतिविधियाँ हैं, जिन पर आपको ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
2. मेरे मुख्य परिणाम क्षेत्र कौन से हैं? किसी संगठन में किसी पद के लिए अमूमन पाँच से सात मुख्य परिणाम क्षेत्र होते हैं। ये वे क्षेत्र हैं, जहाँ आपको अनिवार्य रूप से उत्कृष्ट परिणाम पाना होता है, तभी आप अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा कर सकते हैं। जब आप अपने मुख्य परिणाम क्षेत्रों को पहचान लें, तो फिर आपको प्रदर्शन के सर्वोच्च पैमाने तय करने चाहिए और उन पैमानों के अनुरूप प्रदर्शन करना चाहिए।
3. वह क्या है, जो मैं और सिर्फ़ मैं ही कर सकता हूँ? आपके पास ऐसी कौन सी ज़िम्मेदारियाँ और काम हैं, जिन्हें आप और सिर्फ़ आप ही कर सकते हैं, अगर आप उन्हें नहीं करते हैं, तो वे होते ही नहीं हैं।
4. मेरे समय का सबसे मूल्यवान उपयोग क्या है? ऐसे काम जिन्हें सिर्फ़ आप ही पूरा कर सकते हैं, लेकिन बहुत से लीडर अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी नहीं कर पाते हैं, क्योंकि उन्हें ऐसी ज़िम्मेदारियों और कामों में घसीट लिया जाता है, जिनमें उन्हें उलझना नहीं चाहिए। सर्वश्रेष्ठ लीडर जानते हैं कि उन्हें क्या करने के लिए पैसे मिल रहे हैं।
परिणाम पाने की एक मुख्य योग्यता यह जानना है कि प्राथमिकताएँ कैसे तय करें। उच्च मूल्य की अपनी गतिविधियों को पहचानना ही काफ़ी नहीं है। लीडर प्राथमिकताएँ तय करते हैं, ताकि वे केवल सबसे महत्त्वपूर्ण और सर्वोच्च मूल्य की गतिविधियों पर ही काम करें।
एबीसीडीई प्रणाली अपने कामों की प्राथमिकताएँ तय करने का सबसे प्रभावी तरीक़ा है। इस प्रणाली के लिए यह आवश्यक है कि आप अपने कामों की सूची बना लें और उन्हें प्राथमिकता का क्रम दें।
'ए' काम वह महत्त्वपूर्ण काम है, जिसे आपको करना ही है। अगर आप इसे नहीं करते हैं, तो इसके महत्त्वपूर्ण परिणाम होंगे। आपके पास एक से ज्यादा ए काम हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में उन पर ए-1, ए-2, ए-3 आदि का लेबल लगाएँ। जाहिर है, ए-1 सबसे महत्त्वपूर्ण काम है, फिर ए-2 की बारी आती है।
'बी' काम वह है, जिसे करना चाहिए और इसे अधूरा छोड़ने के परिणाम होंगे, लेकिन ये परिणाम उतने बुरे या ख़तरनाक नहीं होंगे, जितने कि ए स्तर के काम को अधूरा छोड़ने के होंगे। जब तक कि आपके पास कोई ‘ए‘ काम बचा हो, ‘बी‘ काम को कभी शुरू ना करें।
'सी' काम वह है, जिसे करना तो अच्छा लगता है, लेकिन जिसके कोई परिणाम नहीं होते हैं। पत्रिका या अख़बार पढ़ना आनंददायक होता है और इससे आपको राजनीति या खेल की नवीनतम जानकारी मिल सकती है, लेकिन यह कोई ऐसा काम नहीं है, जिससे आपके कामकाज में कोई योगदान मिलता हो । जब तक कोई ‘बी‘ काम अधूरा हो, तब तक ‘सी‘ काम कभी ना करें।
'डी' काम वह होता है, जिसे आप किसी दूसरे को सौंप सकते हैं। नेतृत्व का एक महत्त्वपूर्ण नियम यह है कि जो भी काम दूसरों को सौंपा जा सकता है, आपको हर वह काम सौंप देना चाहिए। आपके पास ऐसा पर्याप्त काम है, जिसे सिर्फ आप कर सकते हैं, तो आपको अपना समय ऐसे कामों पर खर्च नहीं करना चाहिए, जिन्हें दूसरे कर सकते हैं।
खुद से पूछें, “ऐसा क्या है, जिसे मैं और सिर्फ़ मैं कर सकता हूँ, जिससे कंपनी पर भारी फ़र्क पड़ेगा?" अगर कोई काम इस श्रेणी में नहीं आता है, तो इसे किसी दूसरे को सौंप दें।
प्राथमिकता वाला नियम यहाँ भी लागू होता है : जब कोई ‘सी‘ काम अधूरा बचा हो, तो कभी ‘डी‘ काम शुरू ना करें। 'ई' काम वह होता है, जिसे हटा देना चाहिए। यह आपकी टेबल पर होना ही नहीं चाहिए। इसके कोई परिणाम नहीं होते हैं। यह अनुपयोगी होता है। शायद यह कोई ऐसा काम है, जो अतीत में महत्त्वपूर्ण था, लेकिन अब उसका कोई मतलब नहीं रह गया है।
इस एबीसीडीई प्रणाली को कारगर बनाने की कुंजी यह है कि जब तक ज्यादा ऊँची प्राथमिकता वाला कोई काम अधूरा पड़ा हो, तब तक कम प्राथमिकता वाले काम को कभी शुरू ना करें। मैं हर काम के लिए इस नियम पर ज़ोर देता हूँ, क्योंकि इसे कहना आसान होता है, लेकिन याद रखना या करना ज़्यादा मुश्किल होता है।
लीडर अपने ख़ुद के परिणामों पर तो केंद्रित होते ही हैं, साथ ही वे दूसरों को भी हमेशा यह बताते रहते हैं कि उनके मुख्य परिणाम क्षेत्र कौन से हैं। वे दूसरों को ज़्यादा महत्त्वपूर्ण कामों पर प्राथमिकताएँ तय करने के लिए प्रेरित करते हैं। लीडर जानते हैं कि एकाग्र रहने और प्राथमिकताएँ तय करने की योग्यता मानव प्रभावकारिता की कुंजी है। यह कंपनी और लीडर की प्रभावकारिता की कुंजी भी है।
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जब आप अपनी सोच को बदलते हैं तो आप अपनी जिंदगी को भी बदल देते हैं।