मन सभी धर्मों, कर्मों, प्रवृतियों का अगुआ है। सभी कर्मों (धर्मों) में मन पूर्वगामी है। मन ही प्रधान है, प्रमुख है, सभी धर्म (चैत्तसिक अवस्थाएं) पहले मन में ही पैदा होती हैं। मन सभी मानसिक प्रवृतियों में श्रेष्ठ है, स्वामी है। सभी कर्म मनोमय है। मन सभी मानसिक प्रवृतियों का नेतृत्व करता है क्योंकि सभी मन से ही पैदा होती है। जब कोई व्यक्ति अशुद्ध मन से, मन को मैला करके, बुरे विचार पैदा करके वचन बोलता है या शरीर से कोई पाप कर्म (बुरे कर्म) करता है, तो दुख उसके पीछे-पीछे वैसे ही हो लेता है जैसे बैलगाड़ी खींचने वाले बैलों के पैरों के पीछे-पीछे चक्का (पहिया) चलता है। मन सभी प्रवृतियों, भावनाओं का पुरोगामी है यानी आगे-आगे चलने वाला है। सभी मानसिक क्रियाकलाप मन से ही उत्पन्न होते हैं। मन श्रेष्ठ है, मनोमय है। मन की चेतना ही हमारे सुख-दुख का कारण होती है। हम जो भी फल भुगतते हैं, परिणाम प्राप्त करते हैं। वह मन का ही परिणाम है। कोई भी फल या परिणाम हमारे विचार या मन पर निर्भर है। जब हम अपने मन, वाणी और कमों को शुद्ध करेंगे तभी दुखों से मुक्ति मिल सकती है। मन हमारी सभी प्रकार की भावनाओं, प्रव...
लीडर कभी असफल शब्द का इस्तेमाल नहीं करते। वे कभी असफलता के संदर्भ में सोचते तक नहीं हैं। वे मूल्यवान सबक़ पहचानते हैं, सीखने के अनुभवों को ग्रहण करते हैं और अल्पकालीन झटकों को झेलते हैं, लेकिन कभी असफलता के संदर्भ में सोचते तक नहीं हैं।
ओरिसन स्वेट मार्डेन ने लिखा था, “उस इंसान के लिए कोई असफलता नहीं है, जिसे अपनी शक्ति का अहसास है, जो जानता ही नहीं है कि वह कब परास्त हो चुका है, संकल्पवान प्रयास के लिए कोई असफलता नहीं होती, यानी अजेय इच्छाशक्ति। उस व्यक्ति के लिए कोई असफलता नहीं होती, जो गिरने के बाद हर बार खड़ा हो जाता है, जो रबड़ की गेंद की तरह वापस उछल जाता है, तब तक जुटा रहता है, जब हर कोई हौसला छोड़ देता है, जो तब भी धकाता रहता है, जब बाक़ी सभी मुड जाते हैं।”
बहुत साल पहले एक युवा एक्ज़ीक्यूटिव ने आईबीएम के थॉमस जे. वॉटसन से पूछा था, “मैं अपने करियर में ज़्यादा तेज़ी से कैसे आगे बढ़ सकता हूँ?" वॉटसन का जवाब था, "अपनी असफलता की दर दोगुनी कर लो ।” दूसरे शब्दों में, आप जितनी ज़्यादा बार असफल होते और सीखते हैं, आप उतनी ही ज़्यादा तेज़ी से सफल होंगे।
कुछ लीडर तो यह भी कहते हैं, “अगर हम अपने बाज़ार में सफल होना चाहते हैं, तो हमें यहाँ ज़्यादा तेज़ी से असफल होना होगा।" दूसरे शब्दों में, हमें अपने सबक़ ज़्यादा जल्दी सीखने होंगे। हर साल एक-दो असफलताओं के बजाय , दस-बीस असफलताओं का अनुभव लें और इस बात की ज़्यादा संभावना है कि ज्ञान की दृष्टि से आप अपने बाज़ार पर वर्चस्व जमाने की स्थिति में होंगे।
समाधान-केंद्रित बनें लीडर झटकों और संकटों से निपटने में इसलिए सक्षम होते हैं, क्योंकि वे समाधान-केंद्रित होते हैं। यदि कोई समस्या है, तो वे दोष देने के लिए किसी व्यक्ति को नहीं खोजते हैं, बल्कि उससे निपटने के तरीके खोजते हैं।
कुछ महत्त्वपूर्ण क़दम जिनकी मदद से लीडर किसी संकट या विपत्ति पर प्रतिक्रिया कर सकता है, चाहे यह कितनी ही बड़ी क्यों ना हो :
शांत रहें। चिंता ना करें। नाराज़ ना हों। ज़ाहिर है, यह कहना आसान है, करना कठिन, लेकिन लीडर अपनी शांति और मानसिक स्पष्टता को बनाए रखते हैं, क्योंकि वे किसी ऐसी चीज़ पर नाराज़ नहीं होते, जिसे वे बदल नहीं सकते।
अपनी योग्यताओं पर विश्वास रखें। आपने अतीत में संकटों को सफलतापूर्वक पार किया है और आप यह दोबारा कर लेंगे।
आगे जाने की हिम्मत करें। अचानक परिस्थितियों का रुख पलटने से पंगु ना बनें। स्थिति को सुधारने के लिए तुरंत विशिष्ट कार्य करें।
तथ्यों का पता लगाए। निर्णय लेने से पहले सटीकता से पता लगाएँ कि हुआ क्या था।
नियंत्रण लें। 100 प्रतिशत ज़िम्मेदारी स्वीकार करें। दोष देने या अतीत में अटके रहने से कुछ भी नहीं सुलझता है।
अपने नुक़सान को सीमित करें। उस स्थिति से दूर चल दें, जिसे दुरुस्त नहीं किया जा सकता।
संकट का प्रबंधन करें। ज़िम्मेदारी लें, योजना बनाएं और समस्या सुलझाने में व्यस्त हो जाएँ ।
लगातार संवाद करें। कर्मचारियों को जानकारी देते रहें। अनिश्चितता से संकट गहरा जाता है।
अपनी कमियों को पहचानें। संकट के समाधान को धीमा करने वाली कमी को पहचानें और उसे दूर करें।
अपनी सृजनात्मकता को उन्मुक्त करें। ज़्यादा से ज़्यादा समाधान सोचें।
पलटवार करें। स्थिति का आकलन करें, तथ्य हासिल करें, फिर आक्रामक हो जाएँ।
चीज़ों को सरल रखें। हो सकता है कि संकट की स्थिति में बहुत ज़्यादा चल रहा हो और बहुत कुछ करना हो। सिर्फ़ सबसे महत्त्वपूर्ण कामों पर ध्यान केंद्रित करें।
अपनी सत्यनिष्ठा से कभी समझौता ना करें। चाहे संकट या चुनौती कोई भी हो, आपको अपनी सत्यनिष्ठा से कभी भी समझौता किए बिना इसे सुलझाना चाहिए। याद रखें, हर व्यक्ति देख रहा है ।
तब तक जुटे रहें, जब तक कि आप सफल ना हो जाएँ। चाहे सकट को सुलझाना कितना ही मुश्किल क्यों ना हो या चाहे इसमें कितना ही लंबा समय क्यों ना लगे, कभी हार ना मानें।
ज्यादातर नेतृत्व स्थितिवादी होता है। कई लीडर स्थिति के कारण ही ऊपर उठ जाते हैं। मैंने कई स्त्री-पुरुषों को देखा है, जो औसत पद पर थे, लेकिन किसी उथल-पुथल या विपत्ति की अवधि में उन पर अचानक नेतृत्व थोप दिया गया।
मैंने ऐसे लोगों को भी देखा है, जो एक स्थिति में तो उत्कृष्ट लीडर थे, लेकिन दूसरी स्थिति में कमज़ोर साबित हुए। कुछ लोग शांत परिस्थितियों में बहुत अच्छे लीडर होते हैं, जबकि कुछ उथल-पुथल वाली स्थितियों में उत्कृष्ट होते हैं।
कारोबारी लीडर को कई बार 'काया - कल्पकारी' होना चाहिए। काया-कल्पकारी उन स्थितियों में असाधारण होता है, जहाँ गंभीर वित्तीय समस्याओं और बाज़ार में हुए परिवर्तनों की वजह से कंपनी के दिवालिया होने का ख़तरा हो। ये लीडर पुनर्गठन कर सकते हैं और कंपनी को दोबारा पटरी पर ला सकते हैं, कई बार तो कुछ सप्ताहों में ही, जबकि मौजूदा नेतृत्व यह काम नहीं कर सकता।
नेतृत्व बहुत ज्यादा स्थितिवादी होता है, लेकिन विपत्ति में महान लीडर उभरकर सामने आते हैं। विपत्ति में ही यह तय होता है कि कोई लीडर महान है या नहीं। इसलिए जब भी आप अपने सामने किसी विपरीत स्थिति को देखें, तो सोचें कि यह एक अवसर है, जहाँ आप दिखा सकते हैं कि आप 'सही मिट्टी' के बने हैं कि आपमें लीडर बनने के लिए जरूरी गुण हैं।
विपत्ति सच्चे लीडर को सामने लाती है। एपिक्टेटस ने लिखा था, "परिस्थितियाँ इंसान को नहीं बनाती हैं, वे तो सिर्फ उसकी असलियत उसके सामने उजागर करती हैं।" मुश्किल समय में सच्चे लीडर अलग दिख जाते हैं।
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जब आप अपनी सोच को बदलते हैं तो आप अपनी जिंदगी को भी बदल देते हैं।