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दुखों से मुक्ति : बुद्ध और उनका धम्म

धम्मपदं : दुखों से मुक्ति और सुख शांति के जीवन का मार्ग : महाकारुणिक तथागत बुद्ध के उपदेशों का यह 'धम्मपद' अनमोल, अमृत वचन है। मानव जीवन का परम उद्देश्य होता है दुखों से मुक्ति और सुख शांति को पाना। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह ग्रंथ परिपूर्ण है।  'धम्मपद' 'धम्म' का सरल अर्थ है सदाचार अर्थात 'सज्जनों' द्वारा जीवन में धारण करने, पालन करने योग्य कर्तव्य। और 'पद' शब्द का अर्थ यहां 'मार्ग' माना गया है। इस प्रकार 'धम्मपद' का अर्थ होगा- धम्म यानी सदाचार (Morality) का मार्ग।  ग्रंथ में 'पद' शब्द का एक दूसरा अर्थ भी माना गया है। वह अर्थ है, किसी का कथन, वचन, शिक्षा, उपदेश या वाणी। इस ग्रंथ में 'धम्मपद' का सरल अर्थ है- भगवान बुद्ध के शील सदाचार सम्बंधी उपदेश, वचन या वाणी। इस प्रकार 'धम्मपद' का अर्थ है- धम्म वचन या धम्मवाणी या धम्म देशना। आज से 2600 साल पहले भगवान बुद्ध ने, बुद्धत्व प्राप्ति के बाद 45 साल तक मध्य देश की आम बोलचाल की भाषा में 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय लोकानुकम्पाय' का जो संदेश और उपदेश दिय...

मजिस्ट्रेट कैसे बने

जब आप किसी वाइकल को 60 किलोमीटर की स्पीड से चला रहे हो, और आप उसकी स्पीड को 80 किलोमीटर कर देते हैं, तो अब आपकी वाइकल 80 किलोमीटर की स्पीड से चल रही हैं। 

यानी आप APP की तैयारी से मजिस्ट्रेट की तैयारी पर आ जाते हैं, जिसकी स्पीड 80 किलोमीटर पर hour है, अगर आप अपनी वाइकल की स्पीड को 80 किलोमीटर से घटाकर 60 किलोमीटर पर hour कर देते हैं, तो क्या आप मजिस्ट्रेट बन पाएंगे, नहीं। 

क्योंकि जिस तरह वाइकल की स्पीड 80 किलोमीटर से घटाकर 60 किलोमीटर पर hour करने पर वाइकल की स्पीड घट जाती हैं। 

उसी तरह आप मजिस्ट्रेट की तैयारी करते समय APP की तैयारी करने लग जाएंगे, तो आप मजिस्ट्रेट कभी नहीं बन पाएंगे। 

क्योंकि अब आपकी दिमागी वाइकल की क्षमता की स्पीड 80 किलोमीटर से 60 किलोमीटर पर hour पर आ चुकी हैं।

कहने का तात्पर्य यह है कि जब आप किसी उद्देश्य को तय करते हैं, और उसी उद्देश्य को पाना चाहते हैं, तो उस उद्देश्य में फेरबदल नहीं होना चाहिए। 

अगर आप उस उद्देश्य में फेरबदल करते हैं, तो आपकी दिमागी क्षमता में काफी फेरबदल उसी के साथ होता है, फिर आप जिस उद्देश्य को लेकर चल रहे थे, उसी उद्देश्य को पाना आपके लिए असंभव हो जाता। 

आप मेहनत करते रहते हैं, लेकिन उस उद्देश्य को पा नहीं पाते हैं। इसका और कोई कारण नहीं है, केवल यही कारण है कि आप अपने उद्देश्य के प्रति स्थाई तथा निश्चित नहीं है।

उद्देश्य में फेरबदल ना करें तभी आप उद्देश्य को पा सकते हैं। और उसी स्पीड से चल सकते हैं जिस स्पीड को आपने निर्धारित किया है 80 किलोमीटर पर hour जो मजिस्ट्रेट बनने के लिए आपके जीवन में आवश्यक हैं।

जैसे ही आपके उद्देश्य में बदलाव होते हैं, आपकी वाइकल की स्पीड ऑटोमेटेकली घट जाती हैं, इसलिए जब आप अपनी वाइकल की स्पीड को घटा देते हैं, तो आपका उस स्थान पर पहुंचने की समय सीमा में फेरबदल हो जाता है, और आप निर्धारित समय पर उस स्थान पर नहीं पहुंच पाते हैं। 

जब आप वहां पहुंचते हैं तो आपको उस स्थान पर कोई और व्यक्ति उस सीट पर बैठा हुआ मिलता है, ऐसा उस दशा होता है, जब आप अपने उद्देश्य में बदलाव कर देते हैं।

जो उपलब्धि आज आपको प्राप्त होनी थी, आपका उद्देश्य में बदलाव करने की वजह से, आज वह उपलब्धि किसी और को प्राप्त है।

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