मन सभी धर्मों, कर्मों, प्रवृतियों का अगुआ है। सभी कर्मों (धर्मों) में मन पूर्वगामी है। मन ही प्रधान है, प्रमुख है, सभी धर्म (चैत्तसिक अवस्थाएं) पहले मन में ही पैदा होती हैं। मन सभी मानसिक प्रवृतियों में श्रेष्ठ है, स्वामी है। सभी कर्म मनोमय है। मन सभी मानसिक प्रवृतियों का नेतृत्व करता है क्योंकि सभी मन से ही पैदा होती है। जब कोई व्यक्ति अशुद्ध मन से, मन को मैला करके, बुरे विचार पैदा करके वचन बोलता है या शरीर से कोई पाप कर्म (बुरे कर्म) करता है, तो दुख उसके पीछे-पीछे वैसे ही हो लेता है जैसे बैलगाड़ी खींचने वाले बैलों के पैरों के पीछे-पीछे चक्का (पहिया) चलता है। मन सभी प्रवृतियों, भावनाओं का पुरोगामी है यानी आगे-आगे चलने वाला है। सभी मानसिक क्रियाकलाप मन से ही उत्पन्न होते हैं। मन श्रेष्ठ है, मनोमय है। मन की चेतना ही हमारे सुख-दुख का कारण होती है। हम जो भी फल भुगतते हैं, परिणाम प्राप्त करते हैं। वह मन का ही परिणाम है। कोई भी फल या परिणाम हमारे विचार या मन पर निर्भर है। जब हम अपने मन, वाणी और कमों को शुद्ध करेंगे तभी दुखों से मुक्ति मिल सकती है। मन हमारी सभी प्रकार की भावनाओं, प्रव...
नीलम, नई दिल्ली में काम करने वाली एक सेक्रेटरी ने मुझे एक रोचक किस्सा बताया। उसने व्यक्तिगत उपलब्धि पर मेरे एक प्रोग्राम को सुना था। परिणामस्वरूप, उसने अपनी ताज़ा कमाई, पंद्रह हजार रूपए प्रतिमाह में एक साल के भीतर दोगुनी बढ़ोतरी करने का फ़ैसला किया। उसने मुझे बताया कि उसको भी यह यक़ीन नहीं था कि यह संभव है, क्योंकि वह सेक्रेटरियों के एक ऐसे समूह से थी जहाँ वेतन तय था। हर किसी को यही वेतन मिलता था।
फिर भी, उसने अपने बॉस के लिए ज़्यादा उपयोगी बनने के रास्ते खोजना शुरू किए। उसने पाया कि वह अपनी सामान्य डाक के निपटारे में ही काफ़ी वक्त देते हैं। एक दिन, उसने उनकी पूरी डाक इकट्ठा की और सभी के जवाब लिख डाले। उसके बाद वह उन पत्रों को जाँचने और सुधार के लिए बॉस के पास ले गई। उसके काम से बॉस एकदम प्रसन्न हो गया और उसने उसे यही काम और ज्यादा करने के लिए प्रोत्साहित किया। जल्द ही, वह अपने बॉस की नब्बे फीसदी डाक को सँभालने लगी। और बॉस ने एक दिन इस बात को महसूस भी कर लिया।
तक़रीबन तीन माह के बाद उसके बॉस ने उसे बुलाया। बॉस ने उससे कहा कि वह उसकी मदद की क़द्र करता है और उसका वेतन बढ़ाना चाहता है। उसने सेक्रेटरी से यह बात किसी को नहीं बताने को कहा ताकि दूसरों में असंतोष का भाव न पनपे। उसके बाद उसने उसका वेतन पंद्रह हजार रूपए से बढ़ाकर सतरा हजार पांच सौ रुपए प्रतिमाह कर दिया।
सेक्रेटरी ने बॉस को धन्यवाद दिया और उसके काम में मदद के सिलसिले को ऐसे ही जारी रखा। तीन माह बाद, फिर बॉस ने उसका वेतन बढ़ा दिया। तीन माह बाद फिर उसे वेतन वृद्धि मिली। साल के अंत तक उसका वेतन बढ़कर बाईस हजार पांच सौ रुपए प्रतिमाह हो गया, जो कि उसके आरंभिक वेतन से पचास फीसदी ज़्यादा था और उसकी साथी सेक्रेटरियों को तो अभी भी पंद्रह हजार रूपए प्रतिमाह का ही वेतन मिल रहा था।
उसने बताया कि उसने जब अपनी ऊर्जा अपने बॉस और अपनी कंपनी के काम की बेहतरी के लिए लगाई तो परिणाम चमत्कारिक रहे। यही रणनीति आपके लिए भी काम आ सकती है।
किस्मत का हर दरवाजा, लोगों को किसी न किसी तरह से बेहतर सेवा देने की सोच के साथ ही खुलता है। दौलत जमा करने के लिए जरूरी आधारभूत बातें हैं समय और ज्ञान आपको अपनी जानकारी और ज्ञान में निरंतर इज़ाफ़ा करते रहना चाहिए, ताकि आप जो भी काम कर रहे हैं वो और बेहतर होता जाए।
लगभग चार सौ बरस से भी पहले, फ्रांसिस बेकन ने कहा था कि ज्ञान ही ताक़त है। लेकिन, यह अंशतः ही सही है। जब ज्ञान को किसी अच्छे काम में लगाया जाता है, तभी वह ताक़त कहलाता है। आपका काम ऐसा ज्ञान हासिल करना है जो आपके काम को ज़्यादा तेज और बेहतर बना सके।
यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है कि आपने कितने घंटे काम किया, महत्व की बात तो यह है कि आपने उन घंटों में काम को बेहतर बनाने के लिए कितना वक्त दिया। आपकी कामयाबी इस बात पर निर्भर है कि एक कर्मचारी या एक मालिक की हैसियत से कंपनी के मजदूर या कंपनी के मालिक की हैसियत से आप अपने वर्तमान काम को कंपनी के लिए कितने बेहतर तरीके से कर सकते हो। यही आपकी कमाई और आपके आर्थिक भविष्य को तय करता है।
कामयाब लोगों की उत्पादन क्षमता नाकामयाब लोगों से ज्यादा होती है। कामयाब लोगों की आदतें बेहतर होती हैं। वे ज्यादा बड़े सपने देखते हैं। वे लिखित लक्ष्यों के साथ काम करते हैं। वे वही काम करते हैं जो उनको पसंद है और बेहतर से भी बेहतर होने के लिए सतत प्रयास करते रहते हैं। वे अपनी नैसर्गिक क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल करते हैं। वे कंपनी के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए और समस्याओं को सुलझाने के तौर-तरीक़ों पर निरंतर विचार मंथन करते रहते हैं। अपने वक़्त के एक-एक मिनट का इस्तेमाल अधिकतम परिणामों के लिए करने पर ही उनका पूरा ध्यान केंद्रित होता है।
इन सबसे भी ज़्यादा, वे अपने काम को, चाहे फिर वो जो भी हो, बेहतर बनाने के मौक़ों को अपने चारों ओर तलाशते रहते हैं। उनमें पूर्व सोच के साथ हर काम को जल्द निपटाने का भाव होता है। वे काम के पूरे वक़्त बस काम ही करते हैं। वे तरक्क़ी करते रहने की सोच को विकसित करके बनाए भी रखते हैं। परिणाम यह होता है कि जल्द ही वे ऐसे बन जाते हैं कि उनको रोक पाना किसी के बस की बात नहीं होती।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
जब आप अपनी सोच को बदलते हैं तो आप अपनी जिंदगी को भी बदल देते हैं।