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अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें

अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें। डेनियल काहनेमन की पुस्तक थिंकिंग, फास्ट एंड स्लो पिछले कुछ वर्षों में लिखी गई सर्वश्रेष्ठ और सबसे ज़्यादा गहन चिंतन वाली पुस्तकों में से एक है। वे बताते हैं कि हमें अपने दैनिक जीवन में जिन बहुत सी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, उनसे निपटने के लिए दो अलग-अलग प्रकार की सोच का इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है। तीव्र सोच का इस्तेमाल हम अल्पकालीन कामों, ज़िम्मेदारियों, गतिविधियों, समस्याओं और स्थितियों से निपटने के लिए करते हैं। इसमें हम जल्दी से और सहज बोध से काम करते हैं। ज़्यादातर मामलों में तीव्र सोच हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों के लिए पूरी तरह उचित होती है। दूसरी तरह की सोच का वर्णन काहनेमन धीमी सोच के रूप में करते हैं। इसमें आप पीछे हटते हैं और स्थिति के विवरणों पर सावधानीपूर्वक सोचने में ज़्यादा समय लगाते हैं और इसके बाद ही निर्णय लेते हैं कि आप क्या करेंगे। काहनेमन की ज्ञानवर्धक जानकारी यह है कि आवश्यकता होने पर भी हम धीमी सोच करने में असफल रहते हैं और इसी वजह से हम जीवन में कई ग़लतियाँ कर बैठते हैं। समय के प्रबंधन में उत्कृष्ट बनने और अपने

आय को दुगना कैसे करें

नीलम, नई दिल्ली में काम करने वाली एक सेक्रेटरी ने मुझे एक रोचक किस्सा बताया। उसने व्यक्तिगत उपलब्धि पर मेरे एक प्रोग्राम को सुना था। परिणामस्वरूप, उसने अपनी ताज़ा कमाई, पंद्रह हजार रूपए प्रतिमाह में एक साल के भीतर दोगुनी बढ़ोतरी करने का फ़ैसला किया। उसने मुझे बताया कि उसको भी यह यक़ीन नहीं था कि यह संभव है, क्योंकि वह सेक्रेटरियों के एक ऐसे समूह से थी जहाँ वेतन तय था। हर किसी को यही वेतन मिलता था।

  फिर भी, उसने अपने बॉस के लिए ज़्यादा उपयोगी बनने के रास्ते खोजना शुरू किए। उसने पाया कि वह अपनी सामान्य डाक के निपटारे में ही काफ़ी वक्त देते हैं। एक दिन, उसने उनकी पूरी डाक इकट्ठा की और सभी के जवाब लिख डाले। उसके बाद वह उन पत्रों को जाँचने और सुधार के लिए बॉस के पास ले गई। उसके काम से बॉस एकदम प्रसन्न हो गया और उसने उसे यही काम और ज्यादा करने के लिए प्रोत्साहित किया। जल्द ही, वह अपने बॉस की नब्बे फीसदी डाक को सँभालने लगी। और बॉस ने एक दिन इस बात को महसूस भी कर लिया।

तक़रीबन तीन माह के बाद उसके बॉस ने उसे बुलाया। बॉस ने उससे कहा कि वह उसकी मदद की क़द्र करता है और उसका वेतन बढ़ाना चाहता है। उसने सेक्रेटरी से यह बात किसी को नहीं बताने को कहा ताकि दूसरों में असंतोष का भाव न पनपे। उसके बाद उसने उसका वेतन पंद्रह हजार रूपए से बढ़ाकर सतरा हजार पांच सौ रुपए प्रतिमाह कर दिया।

सेक्रेटरी ने बॉस को धन्यवाद दिया और उसके काम में मदद के सिलसिले को ऐसे ही जारी रखा। तीन माह बाद, फिर बॉस ने उसका वेतन बढ़ा दिया। तीन माह बाद फिर उसे वेतन वृद्धि मिली। साल के अंत तक उसका वेतन बढ़कर बाईस हजार पांच सौ रुपए प्रतिमाह हो गया, जो कि उसके आरंभिक वेतन से पचास फीसदी ज़्यादा था और उसकी साथी सेक्रेटरियों को तो अभी भी पंद्रह हजार रूपए प्रतिमाह का ही वेतन मिल रहा था।

  उसने बताया कि उसने जब अपनी ऊर्जा अपने बॉस और अपनी कंपनी के काम की बेहतरी के लिए लगाई तो परिणाम चमत्कारिक रहे। यही रणनीति आपके लिए भी काम आ सकती है।

किस्मत का हर दरवाजा, लोगों को किसी न किसी तरह से बेहतर सेवा देने की सोच के साथ ही खुलता है। दौलत जमा करने के लिए जरूरी आधारभूत बातें हैं समय और ज्ञान आपको अपनी जानकारी और ज्ञान में निरंतर इज़ाफ़ा करते रहना चाहिए, ताकि आप जो भी काम कर रहे हैं वो और बेहतर होता जाए। 

लगभग चार सौ बरस से भी पहले, फ्रांसिस बेकन ने कहा था कि ज्ञान ही ताक़त है। लेकिन, यह अंशतः ही सही है। जब ज्ञान को किसी अच्छे काम में लगाया जाता है, तभी वह ताक़त कहलाता है। आपका काम ऐसा ज्ञान हासिल करना है जो आपके काम को ज़्यादा तेज और बेहतर बना सके।

यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है कि आपने कितने घंटे काम किया, महत्व की बात तो यह है कि आपने उन घंटों में काम को बेहतर बनाने के लिए कितना वक्त दिया। आपकी कामयाबी इस बात पर निर्भर है कि एक कर्मचारी या एक मालिक की हैसियत से कंपनी के मजदूर या कंपनी के मालिक की हैसियत से आप अपने वर्तमान काम को कंपनी के लिए कितने बेहतर तरीके से कर सकते हो। यही आपकी कमाई और आपके आर्थिक भविष्य को तय करता है।

कामयाब लोगों की उत्पादन क्षमता नाकामयाब लोगों से ज्यादा होती है। कामयाब लोगों की आदतें बेहतर होती हैं। वे ज्यादा बड़े सपने देखते हैं। वे लिखित लक्ष्यों के साथ काम करते हैं। वे वही काम करते हैं जो उनको पसंद है और बेहतर से भी बेहतर होने के लिए सतत प्रयास करते रहते हैं। वे अपनी नैसर्गिक क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल करते हैं। वे कंपनी के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए और समस्याओं को सुलझाने के तौर-तरीक़ों पर निरंतर विचार मंथन करते रहते हैं। अपने वक़्त के एक-एक मिनट का इस्तेमाल अधिकतम परिणामों के लिए करने पर ही उनका पूरा ध्यान केंद्रित होता है।

इन सबसे भी ज़्यादा, वे अपने काम को, चाहे फिर वो जो भी हो, बेहतर बनाने के मौक़ों को अपने चारों ओर तलाशते रहते हैं। उनमें पूर्व सोच के साथ हर काम को जल्द निपटाने का भाव होता है। वे काम के पूरे वक़्त बस काम ही करते हैं। वे तरक्क़ी करते रहने की सोच को विकसित करके बनाए भी रखते हैं। परिणाम यह होता है कि जल्द ही वे ऐसे बन जाते हैं कि उनको रोक पाना किसी के बस की बात नहीं होती।


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