मैंने कई साल पहले ऑस्ट्रेलिया के एक किशोर के साथ काम किया था। यह किशोर डॉक्टर और सर्जन बनना चाहता था, लेकिन उसके पास पैसा नहीं था; न ही उसने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की थी। ख़र्च निकालने के लिए वह डॉक्टरों के ऑफिस साफ करता था, खिड़कियाँ धोता था और मरम्मत के छुटपुट काम करता था। उसने मुझे बताया कि हर रात जब वह सोने जाता था, तो वह दीवार पर टंगे डॉक्टर के डिप्लोमा का चित्र देखता था, जिसमें उसका नाम बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था। वह जहाँ काम करता था, वहाँ वह डिप्लोमाओं को साफ करता और चमकाता था, इसलिए उसे मन में डिप्लोमा की तस्वीर देखना या उसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं था। मैं नहीं जानता कि उसने इस तस्वीर को देखना कितने समय तक जारी रखा, लेकिन उसने यह कुछ महीनों तक किया होगा। जब वह लगन से जुटा रहा, तो परिणाम मिले। एक डॉक्टर इस लड़के को बहुत पसंद करने लगा। उस डॉक्टर ने उसे औज़ारों को कीटाणुरहित करने, इंजेक्शन लगाने और प्राथमिक चिकित्सा के दूसरे कामों की कला का प्रशिक्षण दिया। वह किशोर उस डॉक्टर के ऑफिस में तकनीकी सहयोगी बन गया। डॉक्टर ने उसे अपने खर्च पर हाई स्कूल और बाद में कॉलेज भी भेजा। आज
कामयाबी कैसे हासिल की जाती है इसके बारे में आज हम आपको बताएंगे कि कामयाबी का फ़ॉर्मूला बहुत ही आसान था। जिसने कामयाबी को हासिल किया है। उन्होंने हमें बताया कि उसका बॉस काम को ख़त्म करने के लिए ऑफिस सबसे पहले आकर फिर सबके बाद जाते है। इस युवक ने फ़ैसला किया कि वह अपने बॉस से पंद्रह मिनट पहले आएगा और उसके जाने के पंद्रह मिनट बाद ही ऑफ़िस से जाएगा।
अगले दिन से ही उसने अपने इस संकल्प को साकार करना आरंभ कर दिया। यह ज़बर्दस्त कामयाबी हासिल करने वालों की एक और ख़ासियत होती है कि वे किसी अच्छे विचार के दिमाग़ में आने के बाद केवल उस पर सोचते ही नहीं बैठते, बल्कि तत्काल काम में जुट जाते हैं। उस युवक ने हर रोज़ अपने बॉस से पंद्रह मिनट पहले आकर पंद्रह मिनट बाद जाने का सिलसिला आरंभ कर दिया। जब उसके बॉस काम से घर चले जाते थे, वह युवक तब भी काम करता रहता था।
बॉस ने कुछ दिन तक उसे कुछ भी नहीं कहा। फिर, आख़िर एक दिन काम के बाद, बॉस ने उसकी डेस्क पर आकर उससे पूछा कि वह हर वक्त ऑफ़िस में ही कैसे दिखता है, जबकि उसके सभी साथी चले जाते हैं। युवक ने जवाब दिया कि वह कंपनी में कामयाबी हासिल करना चाहता है और वह जानता है कि यह तब तक संभव नहीं है, जब तक वह सबसे ज़्यादा मेहनत करने के लिए तैयार न हो।
बॉस मुस्कुराया और सिर हिलाकर चला गया। इसके बाद, बॉस ने उसे एक ऐसा काम सौंपा जो कि आम तौर पर उसके काम का हिस्सा नहीं था। उसने तत्काल इसे करके बॉस को सौंप दिया और अपनी डेस्क पर अपने काम के लिए लौट गया।
इसके तत्काल बाद, उसे एक और काम दिया गया और उसने वह भी जल्दी से निपटा दिया। एक साल के भीतर, उस युवक को उसके नियमित काम के अलावा भी कई ज़िम्मेदारियाँ दी गईं और उसने हर एक को स्वीकार कर जल्दी ही पूरा कर दिया।
दूसरे ही साल, उसे ऊँचे पद पर तरक्क़ी दे दी गई। उसने पढ़ाई की, अपने कौशल को और अधिक निखारा और मेहनत के साथ काम को जारी रखा। कुछ ही सालों में उसने अपने सभी साथियों को पीछे छोड़ दिया था। उसने अन्य मैनेजरों का भी सम्मान हासिल कर लिया था। उन्होंने उसे जल्द ही तरक्की देकर स्टाफ़ की बजाय अपने में ही शामिल कर लिया। आख़िरकार एक दिन वह कंपनी का वाइस प्रेसीडेंट बना।
यह रणनीति हर उस व्यक्ति के लिए कारगर साबित हो सकती है, जो कि अपने काम के अलावा भी कोई अन्य ज़िम्मेदारी निभाना चाहता है। यह हर किसी के लिए कारगर साबित हो सकती है।
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