अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें। डेनियल काहनेमन की पुस्तक थिंकिंग, फास्ट एंड स्लो पिछले कुछ वर्षों में लिखी गई सर्वश्रेष्ठ और सबसे ज़्यादा गहन चिंतन वाली पुस्तकों में से एक है। वे बताते हैं कि हमें अपने दैनिक जीवन में जिन बहुत सी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, उनसे निपटने के लिए दो अलग-अलग प्रकार की सोच का इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है। तीव्र सोच का इस्तेमाल हम अल्पकालीन कामों, ज़िम्मेदारियों, गतिविधियों, समस्याओं और स्थितियों से निपटने के लिए करते हैं। इसमें हम जल्दी से और सहज बोध से काम करते हैं। ज़्यादातर मामलों में तीव्र सोच हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों के लिए पूरी तरह उचित होती है। दूसरी तरह की सोच का वर्णन काहनेमन धीमी सोच के रूप में करते हैं। इसमें आप पीछे हटते हैं और स्थिति के विवरणों पर सावधानीपूर्वक सोचने में ज़्यादा समय लगाते हैं और इसके बाद ही निर्णय लेते हैं कि आप क्या करेंगे। काहनेमन की ज्ञानवर्धक जानकारी यह है कि आवश्यकता होने पर भी हम धीमी सोच करने में असफल रहते हैं और इसी वजह से हम जीवन में कई ग़लतियाँ कर बैठते हैं। समय के प्रबंधन में उत्कृष्ट बनने और अपने
ग्रीक दार्शनिक एरिस्टोटल ने ईसा पूर्व 350 वीं सदी में पश्चिमी दर्शन का आधारभूत सिद्धांत कायम किया था, इसे "एरिस्टोटेलियन प्रिंसिपल ऑफ कैजुअल्टी" कहां जाता है, आज हम इसे कारण और प्रभाव का नियम कहते हैं।
इस नियम के मुताबिक, आपकी जिंदगी पर पड़ने वाले हर प्रभाव का कोई न कोई कारण होता है, इसके अनुसार जो कुछ भी होता है, उसका कुछ कारण होता है, कामयाबी किसी दुर्घटना की तरह अकस्मात नहीं मिल जाती, न ही, नाकामयाबी अकस्मात मिलती है, आपके साथ जो कुछ भी होता है, उसका निर्धारण किस्मत या संयोग नहीं करता, बल्कि यह इसी अपरिवर्तनीय नियम की वजह से हैं।
बेरोजगारी और गरीबी से कामयाबी और आर्थिक स्वावलंबन तक पहुंचने का मेरा सफर उसी दिन शुरू हो गया, जिस दिन मैंने समाज के सबसे कामयाब लोगों के बारे में पढ़ना शुरू किया, मेरी सोच बहुत ही सरल थी, मैं यह पता लगाऊगा, कि उन्होंने इतना कुछ हासिल करने के लिए क्या किया और फिर मैं भी वही करूंगा, मैंने जो कुछ खोजा उसने मेरी जिंदगी ही बदल डाली।
जब मैंने पढ़ने और रिसर्च करने का काम शुरू किया, उस वक्त अमेरिका में ऐसे सात लाख लखपति थे, जो खाली हाथ से शुरुआत करके अपने दम पर लखपति बने।
आईआरएस के अनुसार, ऐसे अठारह लाख परिवार या व्यक्ति थे, जिनकी कुल संपत्ति दस लाख डॉलर से ज्यादा थी, लेकिन आज ऐसे लोगों की संख्या बढ़कर पचास लाख तक पहुंच गई हैं।
यानी कि 22 वर्ष में 277 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, और इनमें से अधिकांश तो अपने दम पर ही लखपति बने हैं, ये ऐसे पुरुष और महिलाएं हैं, जिन्होंने काफी कम या बिना धन के ही काम शुरु किया था, कई बार तो दिवालिया जैसी हालत से या कर्ज के साथ, धीरे-धीरे उन्होंने इतना धन कमा लिया कि वे आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बन गए।
ये लोग समाज के हर तबके, हर किस्म की शिक्षा और कौशल के स्तर से निकलकर हरसंभव, हर मुश्किल, हर बाधा, हर गतिरोध और हर चुनौती का सामना करके अपने दम पर लखपति बने हैं।
इनमें से कुछ जवान है तो कुछ उम्रदराज, कुछ अमेरिका में हाल ही में आए अप्रवासी हैं, तो कुछ ऐसे परिवारों से हैं जो कई पीढ़ियों से अमेरिका में ही है, कुछ ऐसे हैं जिन्होंने सबसे बेहतरीन विश्वविद्यालय से शिक्षा हासिल की है, तो कुछ ऐसे कि जिन्होंने हाईस्कूल में ही पढ़ाई छोड़ दी थी, कुछ ऐसे कि जो शारीरिक तौर पर असक्षम है, तो कुछ ऐसे जो व्हीलचेयर पर हैं या जिन्हें कम सुनाई देता है, दृष्टिहीन है या फिर किसी अन्य किस्म की विकलांगता से पीड़ित।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चाहे जो भी बाधा आए, चाहे आपको लगे कि कोई समस्या आपको आगे बढ़ने से रोक रही हैं, याद रखिए कि किसी अन्य ने या कि दुनिया भर में हजारों लोगों ने, तो आपकी सोच से भी बड़ी बाधाओं से पार पाते हुए, कामयाबी हासिल करके ही दम लिया, और जो दूसरों ने किया वो आप भी कर सकते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ जॉर्जिया के डॉक्टर थॉमस स्टैनले ने अपने बूते लखपति बने लाखों लोगों का तीस से ज्यादा वर्ष तक अध्ययन किया, उन्होंने ऐसे हजारों लोगों के इंटरव्यू लिए और फिर अपने द्वारा हासिल जानकारी को, अपनी दो बेस्टसेलर किताबों "द मिलियनेयर नेक्स्ट डोर" और " द मिलियनेयर माइंड" के अलावा कई अन्य किताबों, रिसर्च, अध्ययनों और रिपोर्टों में संकलित किया।
उनके रिसर्च के अनुसार, हर किस्म का इंसान, हर तबके का व्यक्ति, खाली हाथ शुरुआत करके कुछ बातों को कुछ विशिष्ट अंदाज में करके मिलियन डॉलर के जादुई अंक को छूने में बार-बार कामयाब रहा है।
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जब आप अपनी सोच को बदलते हैं तो आप अपनी जिंदगी को भी बदल देते हैं।