एन्ड्रयू कारनेगी प्रख्यात अमेरिकी उद्योगपति तथा स्टील किंग अपने युग के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक थे। बहरहाल, स्कॉटलैंड में जन्मे कारनेगी को स्कूली शिक्षा नसीब नहीं हुई थी। तेरह वर्ष की उम्र में वे सफल होने का सपना लेकर अमेरिका आये। सबसे पहले उन्होंने पेनसिल्वेनिया में एक सूती मिल में मजदूरी की। उन्हें हर सप्ताह 1.20 डॉलर मिलते थे। कारनेगी के मन में सफलता का सपना था, इसलिये उन्होंने नई चीजें सीखने तथा नये अवसर तलाशने का निरंतर प्रयास किया। टेलीग्राफ़ी सीखने की वजह से उन्हें पेनसिल्वेनिया रेलरोड में प्राइवेट सेक्रेटरी तथा टेलीग्राफ़र की नौकरी मिल गई। उनकी लगन, सीखने की आदत तथा मेहनत की बदौलत उन्हें प्रमोशन मिलते चले गये और वे पिट्सबर्ग क्षेत्र के सुपरिंटेंडेंट बन गये। उनके मन में अपना खुद का बिज़नेस करने का सपना था, इसलिये वे पैसे बचाकर निवेश करते रहे। पुलमैन पैलेस कार कंपनी तथा तेल के क्षेत्र में उन्होंने जो निवेश किया, उससे वे इतने अमीर हो गये कि उन्होंने नौकरी छोड़कर खुद की स्टील कंपनी शुरू की। नई मशीनों तथा नई तकनीकों की बदौलत कारनेगी ने इतनी तरक्की कर ली कि वे एक के ...
ग्रीक दार्शनिक एरिस्टोटल ने ईसा पूर्व 350 वीं सदी में पश्चिमी दर्शन का आधारभूत सिद्धांत कायम किया था, इसे "एरिस्टोटेलियन प्रिंसिपल ऑफ कैजुअल्टी" कहां जाता है, आज हम इसे कारण और प्रभाव का नियम कहते हैं।
इस नियम के मुताबिक, आपकी जिंदगी पर पड़ने वाले हर प्रभाव का कोई न कोई कारण होता है, इसके अनुसार जो कुछ भी होता है, उसका कुछ कारण होता है, कामयाबी किसी दुर्घटना की तरह अकस्मात नहीं मिल जाती, न ही, नाकामयाबी अकस्मात मिलती है, आपके साथ जो कुछ भी होता है, उसका निर्धारण किस्मत या संयोग नहीं करता, बल्कि यह इसी अपरिवर्तनीय नियम की वजह से हैं।
बेरोजगारी और गरीबी से कामयाबी और आर्थिक स्वावलंबन तक पहुंचने का मेरा सफर उसी दिन शुरू हो गया, जिस दिन मैंने समाज के सबसे कामयाब लोगों के बारे में पढ़ना शुरू किया, मेरी सोच बहुत ही सरल थी, मैं यह पता लगाऊगा, कि उन्होंने इतना कुछ हासिल करने के लिए क्या किया और फिर मैं भी वही करूंगा, मैंने जो कुछ खोजा उसने मेरी जिंदगी ही बदल डाली।
जब मैंने पढ़ने और रिसर्च करने का काम शुरू किया, उस वक्त अमेरिका में ऐसे सात लाख लखपति थे, जो खाली हाथ से शुरुआत करके अपने दम पर लखपति बने।
आईआरएस के अनुसार, ऐसे अठारह लाख परिवार या व्यक्ति थे, जिनकी कुल संपत्ति दस लाख डॉलर से ज्यादा थी, लेकिन आज ऐसे लोगों की संख्या बढ़कर पचास लाख तक पहुंच गई हैं।
यानी कि 22 वर्ष में 277 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, और इनमें से अधिकांश तो अपने दम पर ही लखपति बने हैं, ये ऐसे पुरुष और महिलाएं हैं, जिन्होंने काफी कम या बिना धन के ही काम शुरु किया था, कई बार तो दिवालिया जैसी हालत से या कर्ज के साथ, धीरे-धीरे उन्होंने इतना धन कमा लिया कि वे आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बन गए।
ये लोग समाज के हर तबके, हर किस्म की शिक्षा और कौशल के स्तर से निकलकर हरसंभव, हर मुश्किल, हर बाधा, हर गतिरोध और हर चुनौती का सामना करके अपने दम पर लखपति बने हैं।
इनमें से कुछ जवान है तो कुछ उम्रदराज, कुछ अमेरिका में हाल ही में आए अप्रवासी हैं, तो कुछ ऐसे परिवारों से हैं जो कई पीढ़ियों से अमेरिका में ही है, कुछ ऐसे हैं जिन्होंने सबसे बेहतरीन विश्वविद्यालय से शिक्षा हासिल की है, तो कुछ ऐसे कि जिन्होंने हाईस्कूल में ही पढ़ाई छोड़ दी थी, कुछ ऐसे कि जो शारीरिक तौर पर असक्षम है, तो कुछ ऐसे जो व्हीलचेयर पर हैं या जिन्हें कम सुनाई देता है, दृष्टिहीन है या फिर किसी अन्य किस्म की विकलांगता से पीड़ित।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि चाहे जो भी बाधा आए, चाहे आपको लगे कि कोई समस्या आपको आगे बढ़ने से रोक रही हैं, याद रखिए कि किसी अन्य ने या कि दुनिया भर में हजारों लोगों ने, तो आपकी सोच से भी बड़ी बाधाओं से पार पाते हुए, कामयाबी हासिल करके ही दम लिया, और जो दूसरों ने किया वो आप भी कर सकते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ जॉर्जिया के डॉक्टर थॉमस स्टैनले ने अपने बूते लखपति बने लाखों लोगों का तीस से ज्यादा वर्ष तक अध्ययन किया, उन्होंने ऐसे हजारों लोगों के इंटरव्यू लिए और फिर अपने द्वारा हासिल जानकारी को, अपनी दो बेस्टसेलर किताबों "द मिलियनेयर नेक्स्ट डोर" और " द मिलियनेयर माइंड" के अलावा कई अन्य किताबों, रिसर्च, अध्ययनों और रिपोर्टों में संकलित किया।
उनके रिसर्च के अनुसार, हर किस्म का इंसान, हर तबके का व्यक्ति, खाली हाथ शुरुआत करके कुछ बातों को कुछ विशिष्ट अंदाज में करके मिलियन डॉलर के जादुई अंक को छूने में बार-बार कामयाब रहा है।
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