अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें। डेनियल काहनेमन की पुस्तक थिंकिंग, फास्ट एंड स्लो पिछले कुछ वर्षों में लिखी गई सर्वश्रेष्ठ और सबसे ज़्यादा गहन चिंतन वाली पुस्तकों में से एक है। वे बताते हैं कि हमें अपने दैनिक जीवन में जिन बहुत सी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, उनसे निपटने के लिए दो अलग-अलग प्रकार की सोच का इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है। तीव्र सोच का इस्तेमाल हम अल्पकालीन कामों, ज़िम्मेदारियों, गतिविधियों, समस्याओं और स्थितियों से निपटने के लिए करते हैं। इसमें हम जल्दी से और सहज बोध से काम करते हैं। ज़्यादातर मामलों में तीव्र सोच हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों के लिए पूरी तरह उचित होती है। दूसरी तरह की सोच का वर्णन काहनेमन धीमी सोच के रूप में करते हैं। इसमें आप पीछे हटते हैं और स्थिति के विवरणों पर सावधानीपूर्वक सोचने में ज़्यादा समय लगाते हैं और इसके बाद ही निर्णय लेते हैं कि आप क्या करेंगे। काहनेमन की ज्ञानवर्धक जानकारी यह है कि आवश्यकता होने पर भी हम धीमी सोच करने में असफल रहते हैं और इसी वजह से हम जीवन में कई ग़लतियाँ कर बैठते हैं। समय के प्रबंधन में उत्कृष्ट बनने और अपने
यह मेरा सौभाग्य है कि भगवान ने मुझे "ब्राउनाउ ऑन द इन" में उत्पन्न किया, जर्मन आस्ट्रिया हमारी मातृभूमि महान जर्मनी को वापस मिलना ही चाहिए, मेरी इस मान्यता का आधार आर्थिक दृष्टिकोण कदापि नहीं, यदि इस पुनर्गठन से देशवासियों को आर्थिक हानि भी उठानी पड़े तो भी मैं चाहूंगा, कि यह पुनर्गठन अवश्य ही होना चाहिए, क्योंकि एक ही खून के लोगों का एक ही राइख अर्थात साम्राज्य में होना जरूरी है।
इस छोटे से कस्बे में मेरे माता-पिता निवास करते थे, यह कस्बा खून से तो बवेरियन था, परंतु आस्ट्रिया राज्य के नियंत्रण में था, मेरे पिता एक असैनिक कर्मचारी थे, मेरी माता घर की देखभाल करती थी।
जब हिटलर 13 वर्ष का था तब उसके पिता की मृत्यु हो चुकी थी और जब वह 16 साल का हुआ तब उसकी माता की मृत्यु हो चुकी थी हिटलर की मां एक लंबी और पीड़ादायक बीमारी का शिकार हो गई थी।
गरीबी और जीवन के कठोर तथ्य ने मुझे मजबूर कर दिया, कि मैं अपने भावी जीवन तथा व्यवसाय के संबंध में शीघ्र ही कोई उपयुक्त फैसला करू, परिवार के सीमित साधन तो माता की बीमारी में लगभग समाप्त हो चुके थे, अनाथ होने के कारण मुझे मिलने वाला सरकारी भत्ता, जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भी पर्याप्त नहीं था, अतः जैसे तैसे मुझे अपनी आजीविका स्वयं कमानी थी।
अपने कपड़ों और बिस्तर आदि को बांधकर तथा अपने दिल में एक अदम्य साहस लिए मैं वियाना के लिए चल पड़ा, मैंने अपने भाग्य से लड़ने की ठीक उसी प्रकार चेष्टा की थी, जिस तरह कि पचास वर्ष पहले मेरे पिता ने की थी मैंने कुछ बनने का दृढ़ निश्चय कर लिया था।
इस काल में ही मुझे उन संकटों की पहचान हुई, जिनकी अब तक न तो मुझे कोई जानकारी थी, और न ही मुझे मालूम था, कि उनका अस्तित्व जर्मन लोगों के लिए कितना भयानक था, यह दो संकट थे मार्क्सवाद और यहूदीवाद।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
जब आप अपनी सोच को बदलते हैं तो आप अपनी जिंदगी को भी बदल देते हैं।