सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें

अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें। डेनियल काहनेमन की पुस्तक थिंकिंग, फास्ट एंड स्लो पिछले कुछ वर्षों में लिखी गई सर्वश्रेष्ठ और सबसे ज़्यादा गहन चिंतन वाली पुस्तकों में से एक है। वे बताते हैं कि हमें अपने दैनिक जीवन में जिन बहुत सी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, उनसे निपटने के लिए दो अलग-अलग प्रकार की सोच का इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है। तीव्र सोच का इस्तेमाल हम अल्पकालीन कामों, ज़िम्मेदारियों, गतिविधियों, समस्याओं और स्थितियों से निपटने के लिए करते हैं। इसमें हम जल्दी से और सहज बोध से काम करते हैं। ज़्यादातर मामलों में तीव्र सोच हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों के लिए पूरी तरह उचित होती है। दूसरी तरह की सोच का वर्णन काहनेमन धीमी सोच के रूप में करते हैं। इसमें आप पीछे हटते हैं और स्थिति के विवरणों पर सावधानीपूर्वक सोचने में ज़्यादा समय लगाते हैं और इसके बाद ही निर्णय लेते हैं कि आप क्या करेंगे। काहनेमन की ज्ञानवर्धक जानकारी यह है कि आवश्यकता होने पर भी हम धीमी सोच करने में असफल रहते हैं और इसी वजह से हम जीवन में कई ग़लतियाँ कर बैठते हैं। समय के प्रबंधन में उत्कृष्ट बनने और अपने

हिटलर की आत्मकथा मेरा संघर्ष "माइन काम्फ" के प्रथम व द्वितीय खंड को हिटलर ने कब लिखा

हिटलर की आत्मकथा मेरा संघर्ष "माइन काम्फ" में अनेक संदर्भ मिलते हैं, जिनसे राजनीति के स्वरूप, राजनीतिज्ञों के आचरण, संसद की भूमिका, शिक्षा के महत्व, श्रमिकों एवं साधारण जनमानस की मानसिकता, नौकरशाही, भाग्य एवं प्रकृति, मानवीय मूल्यों और सबसे बढ़कर राष्ट्रीय भावना की महानता आदि का बोध होता है। 

हिटलर ने अपनी इस रचना में वेश्यावृत्ति की कटु आलोचना की है, उन्होंने लिखा है कि भिन्न जाति के पिता द्वारा भिन्न जाति की स्त्री से उत्पन्न की जाने वाली संतान को राष्ट्र के लिए घातक बताया है, उन्होंने भगवान और भाग्य के अस्तित्व को स्वीकार किया है।

संसद में चहकते सदस्यों की खोखली दलीलों का पर्दा फाश किया है, सत्ता में बने रहने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले गठबंधनो, राष्ट्रहितों की अवहेलना के रूपों, निजी स्वार्थों को राष्ट्र सेवा का नाम देने की धूर्तताओं और लोक सेवा के नाम पर अपने परिवारों के पोषण के कुचक्रों का भंडाफोड़ किया है।

अडोल्फ हिटलर द्वारा लिखित इस पुस्तक का सही मूल्यांकन तभी किया जा सकता है, जब पाठक को उस समय जर्मनी में घट रहे ऐतिहासिक तथ्यों की सही जानकारी हो, इस जानकारी को देने वाला यह एक दुर्लभ ग्रंथ है, इसे उस ऐतिहासिक संदर्भ में ही पढ़ा जाना चाहिए।

 माइन काम्फ का पहला खंड हिटलर द्वारा तब लिखा गया था जब उससे बवेरियन किले की जेल में बंद रखा गया था, वह वाह क्यों और कैसे गया इस प्रश्न का उत्तर जरूरी है।

आठ नवंबर की रात को बरगरब्राउ कैलर में एक सभा का आयोजन किया गया, बवेरिया के देश प्रेमी सैनिक वहां एकत्रित थे, प्रधानमंत्री डॉक्टर बोन कहर ने सरकारी घोषणा पढ़नी प्रारंभ कर दी, जिसमें व्यवहारिक रूप से बवेरिया की स्वाधीनता का और अलग राज्य की स्थापना का उल्लेख था, जब बोन कैलर बोल रहा था, तो हिटलर ने हाल में प्रवेश किया, और लोडिनडोरफ उसके पीछे आ गया, सभा भंग हो गई।

अगले दिन नाजी बटालियनो ने राष्ट्रीय एकता के लिए बाजारों में व्यापक प्रदर्शन किया, हिटलर और लोडिनडोरफ के नेतृत्व में जुलूस निकाले गए, लेकिन लोग ज्यों ही शहर के केंद्रीय स्क्वायर में पहुंचे, त्यों ही पुलिस ने गोली चला दी, सोलह प्रदर्शनकारी घटनास्थल पर ही मारे गए, दो राइखबैयर की बैरको में चल बसे तथा अनेक लोग जख्मी हुए, हिटलर पहाड़ी पर से गिर पड़ा और उसकी गर्दन की हड्डी टूट गई, लोडिनडोरफ सीधा गोली चलाने वाले सिपाहियों के घेरे में घुस गया, परंतु उस बूढ़े कमांडर पर गोली चलाने का किसी ने साहस नहीं किया।

हिटलर को अनेक साथियों के साथ गिरफ्तार किया गया, और लेच नदी पर स्थित लैड्जबर्ग किले की जेल में डाल दिया गया, 26 फरवरी 1924 को उस पर मुकदमा चलाने के लिए उसे म्यूनिख में बोलसगेराइशट जनन्यायालय के सामने पेश किया गया, उसे 5 वर्ष तक किले में बंद रखने का आदेश दिया गया, उसे उसके बाकी साथियों के साथ लैड्जबर्ग एम लेक में वापस लाया गया, पर अगले दिसंबर की 20 तारीख को उसे रिहा कर दिया गया, वह कुल 13 महीने जेल में रहा, इन्हीं दिनों उसने "माइन काम्फ" का प्रथम खंड लिखा।

इस पुस्तक का दूसरा खंड हिटलर ने तब लिखा, जब उसे जेल से रिहा कर दिया गया था, किंतु जब पूरी पुस्तक प्रकाशित हुई, तब फ्रांसीसी रूहर छोड़ चुके थे, फ्रांसीसी आक्रमण के कारण जर्मनी का आर्थिक सामाजिक ढांचा अस्त-व्यस्त हो चुका था, चारों ओर अराजकता निराशा और बदले की भावना फैली हुई थी, तथा फ्रांस को अपने फ्रैंक का पचास प्रतिशत अवमूल्यन करना पड़ा था, वास्तव में सारा यूरोप बर्बादी के कगार पर बैठा था, रूहर तथा राइनलैंड पर फ्रांसीसी आक्रमण ने भारी तबाही मचाई थी। 

हिटलर ने स्वयं कहा था, मैं केवल राजनीतिक नेता हूं, कूटनीतिज्ञ नहीं हूं, जब मैंने यह पुस्तक लिखी, तो मैं राइख अर्थात साम्राज्य का चांसलर नहीं था, इसलिए इस पुस्तक के साथ मेरे सरकारी पद का कोई संबंध नहीं है। 

यह पुस्तक वास्तव में जर्मनी का ऐतिहासिक दर्द है हिटलर ने अपनी मानसिक पीड़ा की अभिव्यक्ति इस पुस्तक के रूप में की है, जो कुछ हिटलर ने अपने शासनकाल में किया, वह उसकी जिंदगी का दूसरा हिस्सा था, पुस्तक को उसी संदर्भ में पढ़ा और ग्रहण किया जाना चाहिए।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

दौलत मनुष्य की सोचने की क्षमता का परिणाम है

आपका मस्तिष्क असीमित है यह तो आपकी शंकाएं हैं जो आपको सीमित कर रही हैं दौलत किसी मनुष्य की सोचने की क्षमता का परिणाम है इसलिए यदि आप अपना जीवन बदलने को तैयार हैं तो मैं आपका परिचय एक ऐसे माहौल से करवाने जा रहा हूं जो आपके मस्तिष्क को सोचने और आपको ज्यादा अमीर बनाने का अवसर प्रदान करेगा।  अगर आप आगे चलकर अमीर बनना चाहते हैं तो आपको एक ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जिसके दरमियान 500 से अधिक व्यक्ति कार्यरत हो ऐसा कह सकते हैं कि वह एक इंडस्ट्रियलिस्ट होना चाहिए या एक इन्वेस्टर होना चाहिए उसको यह मालूम होना चाहिए की इन्वेस्टमेंट कैसे किया जाए। जिस प्रकार व अपनी दिमागी क्षमता का इन्वेस्टमेंट करता है उसी प्रकार उसकी पूंजी बढ़ती है यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह अपनी दिमागी क्षमता का किस प्रकार इन्वेस्टमेंट करें कि उसकी पूंजी बढ़ती रहे तभी वह एक अमीर व्यक्ति की श्रेणी में उपस्थित होने के लिए सक्षम होगा। जब कोई व्यक्ति नौकरी छोड़ कर स्वयं का व्यापार स्थापित करना चाहता है तो इसका एक कारण है कि वह अपनी गरिमा को वापस प्राप्त करना चाहता है अपने अस्तित्व को नया रूप देना चाहता है कि उस पर किसी का अध

जीवन को समझे,अपने विचारों को उद्देश्य में परिवर्तित करें

जीवन को समझने के लिए आपको पहले अपने आप को समझना होगा तभी आप जीवन को समझ पाएंगे जीवन एक पहेली नुमा है इसे हर कोई नहीं समझ पाता,  लोगों का जीवन चला जाता है और उन्हें यही पता नहीं होता कि हमें करना क्या था हमारा उद्देश्य क्या था हमारे विचार क्या थे हमारे जीवन में क्या परिवर्तन करना था हमारी सोच को कैसे विकसित करना था,  यह सारे बिंदु हैं जो व्यक्ति बिना सोचे ही इस जीवन को व्यतीत करता है और जब आखरी समय आता है तो केवल कुछ व्यक्तियों को ही एहसास होता है कि हमारा जीवन चला गया है कि हमें हमारे जीवन में यह परिवर्तन करने थे,  वही परिवर्तन व्यक्ति अपने बच्चों को रास्ता दिखाने के लिए करता है लेकिन वे परिवर्तन को सही मुकाम तक पहुंचाने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं यह तो उनकी आने वाली पीढ़ी को देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है,  कि उनकी पीढ़ी कहां तक सक्षम हो पाई है और अपने पिता के उद्देश्य को प्राप्त कर पाने में सक्षम हो पाई है या नहीं, व्यक्ति का जीवन इतना स्पीड से जाता है कि उसके सामने प्रकाश का वेग भी धीमा नजर आता है, व्यक्ति अपना अधिकतर समय बिना सोचे समझे व्यतीत करता है उसकी सोच उसके उद्देश्य से

लक्ष्य की स्थिरता क्या आपके जीवन को बदल सकती है ?

सकारात्मक सोच महत्वपूर्ण है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है, अगर दिशा न दी जाए और नियंत्रित न किया जाए, तो सकारात्मक सोच जल्द ही विकृत होकर सिर्फ सकारात्मक इच्छा और सकारात्मक आशा बनकर रह सकती है।  लक्ष्य हासिल करने में एकाग्र और प्रभावी बनने के लिए सकारात्मक सोच को "सकारात्मक जानने" में बदलना होगा, आपको अपने अस्तित्व की गहराई में इस बात पर पूरा यकीन करना होगा कि आप किसी खास लक्ष्य को हासिल करने में जरुर सफल होंगे, आपको अपनी अंतिम सफलता के बारे में दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि कोई भी चीज आपको रोक नहीं सकती।  एक महत्वपूर्ण मानसिक नियम है, जो भी छाप छूटती हैं, वह व्यक्त जरूर होती है, आप अपने अवचेतन मन पर जो भी गहरी छाप छोड़ते हैं, वह अंततः आपके बाहरी जगत में अभिव्यक्त होती हैं, मानसिक प्रोग्रामिंग में आपका मकसद आपने अवचेतन मन पर अपने लक्ष्य की गहरी छाप छोड़ना है। मैं कई सालों तक अपने लक्ष्य पर काम करता रहा था, उन्हें साल में एक दो बार लिख लेता था, और मौका मिलने पर उनकी समीक्षा भी कर लेता था, इससे मेरे जीवन में अविश्वसनीय फर्क पड़ा, अक्सर मैं जनवरी में पूरे साल के लक्ष्यों की सूची बनाता