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डॉक्टर बनने की चाहत क्या आपको डॉक्टर बना सकती है? जी हा! कैसे

मैंने कई साल पहले ऑस्ट्रेलिया के एक किशोर के साथ काम किया था। यह किशोर डॉक्टर और सर्जन बनना चाहता था, लेकिन उसके पास पैसा नहीं था; न ही उसने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की थी। ख़र्च निकालने के लिए वह डॉक्टरों के ऑफिस साफ करता था, खिड़‌कियाँ धोता था और मरम्मत के छुटपुट काम करता था।  उसने मुझे बताया कि हर रात जब वह सोने जाता था, तो वह दीवार पर टंगे डॉक्टर के डिप्लोमा का चित्र देखता था, जिसमें उसका नाम बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था। वह जहाँ काम करता था, वहाँ वह डिप्लोमाओं को साफ करता और चमकाता था, इसलिए उसे मन में डिप्लोमा की तस्वीर देखना या उसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं था। मैं नहीं जानता कि उसने इस तस्वीर को देखना कितने समय तक जारी रखा, लेकिन उसने यह कुछ महीनों तक किया होगा। जब वह लगन से जुटा रहा, तो परिणाम मिले। एक डॉक्टर इस लड़के को बहुत पसंद करने लगा। उस डॉक्टर ने उसे औज़ारों को कीटाणुरहित करने, इंजेक्शन लगाने और प्राथमिक चिकित्सा के दूसरे कामों की कला का प्रशिक्षण दिया। वह किशोर उस डॉक्टर के ऑफिस में तकनीकी सहयोगी बन गया। डॉक्टर ने उसे अपने खर्च पर हाई स्कूल और बाद में कॉलेज भी भेजा। आज

हिटलर की आत्मकथा मेरा संघर्ष "माइन काम्फ" के प्रथम व द्वितीय खंड को हिटलर ने कब लिखा

हिटलर की आत्मकथा मेरा संघर्ष "माइन काम्फ" में अनेक संदर्भ मिलते हैं, जिनसे राजनीति के स्वरूप, राजनीतिज्ञों के आचरण, संसद की भूमिका, शिक्षा के महत्व, श्रमिकों एवं साधारण जनमानस की मानसिकता, नौकरशाही, भाग्य एवं प्रकृति, मानवीय मूल्यों और सबसे बढ़कर राष्ट्रीय भावना की महानता आदि का बोध होता है। 

हिटलर ने अपनी इस रचना में वेश्यावृत्ति की कटु आलोचना की है, उन्होंने लिखा है कि भिन्न जाति के पिता द्वारा भिन्न जाति की स्त्री से उत्पन्न की जाने वाली संतान को राष्ट्र के लिए घातक बताया है, उन्होंने भगवान और भाग्य के अस्तित्व को स्वीकार किया है।

संसद में चहकते सदस्यों की खोखली दलीलों का पर्दा फाश किया है, सत्ता में बने रहने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले गठबंधनो, राष्ट्रहितों की अवहेलना के रूपों, निजी स्वार्थों को राष्ट्र सेवा का नाम देने की धूर्तताओं और लोक सेवा के नाम पर अपने परिवारों के पोषण के कुचक्रों का भंडाफोड़ किया है।

अडोल्फ हिटलर द्वारा लिखित इस पुस्तक का सही मूल्यांकन तभी किया जा सकता है, जब पाठक को उस समय जर्मनी में घट रहे ऐतिहासिक तथ्यों की सही जानकारी हो, इस जानकारी को देने वाला यह एक दुर्लभ ग्रंथ है, इसे उस ऐतिहासिक संदर्भ में ही पढ़ा जाना चाहिए।

 माइन काम्फ का पहला खंड हिटलर द्वारा तब लिखा गया था जब उससे बवेरियन किले की जेल में बंद रखा गया था, वह वाह क्यों और कैसे गया इस प्रश्न का उत्तर जरूरी है।

आठ नवंबर की रात को बरगरब्राउ कैलर में एक सभा का आयोजन किया गया, बवेरिया के देश प्रेमी सैनिक वहां एकत्रित थे, प्रधानमंत्री डॉक्टर बोन कहर ने सरकारी घोषणा पढ़नी प्रारंभ कर दी, जिसमें व्यवहारिक रूप से बवेरिया की स्वाधीनता का और अलग राज्य की स्थापना का उल्लेख था, जब बोन कैलर बोल रहा था, तो हिटलर ने हाल में प्रवेश किया, और लोडिनडोरफ उसके पीछे आ गया, सभा भंग हो गई।

अगले दिन नाजी बटालियनो ने राष्ट्रीय एकता के लिए बाजारों में व्यापक प्रदर्शन किया, हिटलर और लोडिनडोरफ के नेतृत्व में जुलूस निकाले गए, लेकिन लोग ज्यों ही शहर के केंद्रीय स्क्वायर में पहुंचे, त्यों ही पुलिस ने गोली चला दी, सोलह प्रदर्शनकारी घटनास्थल पर ही मारे गए, दो राइखबैयर की बैरको में चल बसे तथा अनेक लोग जख्मी हुए, हिटलर पहाड़ी पर से गिर पड़ा और उसकी गर्दन की हड्डी टूट गई, लोडिनडोरफ सीधा गोली चलाने वाले सिपाहियों के घेरे में घुस गया, परंतु उस बूढ़े कमांडर पर गोली चलाने का किसी ने साहस नहीं किया।

हिटलर को अनेक साथियों के साथ गिरफ्तार किया गया, और लेच नदी पर स्थित लैड्जबर्ग किले की जेल में डाल दिया गया, 26 फरवरी 1924 को उस पर मुकदमा चलाने के लिए उसे म्यूनिख में बोलसगेराइशट जनन्यायालय के सामने पेश किया गया, उसे 5 वर्ष तक किले में बंद रखने का आदेश दिया गया, उसे उसके बाकी साथियों के साथ लैड्जबर्ग एम लेक में वापस लाया गया, पर अगले दिसंबर की 20 तारीख को उसे रिहा कर दिया गया, वह कुल 13 महीने जेल में रहा, इन्हीं दिनों उसने "माइन काम्फ" का प्रथम खंड लिखा।

इस पुस्तक का दूसरा खंड हिटलर ने तब लिखा, जब उसे जेल से रिहा कर दिया गया था, किंतु जब पूरी पुस्तक प्रकाशित हुई, तब फ्रांसीसी रूहर छोड़ चुके थे, फ्रांसीसी आक्रमण के कारण जर्मनी का आर्थिक सामाजिक ढांचा अस्त-व्यस्त हो चुका था, चारों ओर अराजकता निराशा और बदले की भावना फैली हुई थी, तथा फ्रांस को अपने फ्रैंक का पचास प्रतिशत अवमूल्यन करना पड़ा था, वास्तव में सारा यूरोप बर्बादी के कगार पर बैठा था, रूहर तथा राइनलैंड पर फ्रांसीसी आक्रमण ने भारी तबाही मचाई थी। 

हिटलर ने स्वयं कहा था, मैं केवल राजनीतिक नेता हूं, कूटनीतिज्ञ नहीं हूं, जब मैंने यह पुस्तक लिखी, तो मैं राइख अर्थात साम्राज्य का चांसलर नहीं था, इसलिए इस पुस्तक के साथ मेरे सरकारी पद का कोई संबंध नहीं है। 

यह पुस्तक वास्तव में जर्मनी का ऐतिहासिक दर्द है हिटलर ने अपनी मानसिक पीड़ा की अभिव्यक्ति इस पुस्तक के रूप में की है, जो कुछ हिटलर ने अपने शासनकाल में किया, वह उसकी जिंदगी का दूसरा हिस्सा था, पुस्तक को उसी संदर्भ में पढ़ा और ग्रहण किया जाना चाहिए।

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