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अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें

अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें। डेनियल काहनेमन की पुस्तक थिंकिंग, फास्ट एंड स्लो पिछले कुछ वर्षों में लिखी गई सर्वश्रेष्ठ और सबसे ज़्यादा गहन चिंतन वाली पुस्तकों में से एक है। वे बताते हैं कि हमें अपने दैनिक जीवन में जिन बहुत सी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, उनसे निपटने के लिए दो अलग-अलग प्रकार की सोच का इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है। तीव्र सोच का इस्तेमाल हम अल्पकालीन कामों, ज़िम्मेदारियों, गतिविधियों, समस्याओं और स्थितियों से निपटने के लिए करते हैं। इसमें हम जल्दी से और सहज बोध से काम करते हैं। ज़्यादातर मामलों में तीव्र सोच हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों के लिए पूरी तरह उचित होती है। दूसरी तरह की सोच का वर्णन काहनेमन धीमी सोच के रूप में करते हैं। इसमें आप पीछे हटते हैं और स्थिति के विवरणों पर सावधानीपूर्वक सोचने में ज़्यादा समय लगाते हैं और इसके बाद ही निर्णय लेते हैं कि आप क्या करेंगे। काहनेमन की ज्ञानवर्धक जानकारी यह है कि आवश्यकता होने पर भी हम धीमी सोच करने में असफल रहते हैं और इसी वजह से हम जीवन में कई ग़लतियाँ कर बैठते हैं। समय के प्रबंधन में उत्कृष्ट बनने और अपने

आप मैं भी वह गुण है जो एक जीनीयस में है

सीखने की अयोग्यताओं पर फार्च्यून पत्रिका में एक लेख छपा था, व्यवसायियों पर केंद्रित इस लेख का निष्कर्ष था कि फॉर्च्यून 500 कॉरपोरेशन के बहुत से प्रेसिडेंट्रस और सीनियर एक्जीक्यूटिव्स को स्कूल में खास प्रतिभाशाली या सक्षम नहीं माना जाता था, लेकिन मेहनत की बदौलत उन्होंने बाद में अपने उद्योग में भारी सफलता हासिल की।

थॉमस एडिसन को छठे ग्रेड में स्कूल से निकाल दिया गया था, टीचर्स ने उनके माता-पिता से साफ-साफ कह दिया था कि उन्हें कुछ सिखाने की कोशिश करना समय की बर्बादी है क्योंकि वे कुछ भी नहीं सीख सकते, और कतई स्मार्ट नहीं है, एडिसन बाद में जाकर आधुनिक युग के सबसे महान आविष्कारक बने। 

खुद को सीमित करने वाले विश्वास कई बार तो सिर्फ एक अनुभव या टिप्पणी पर ही आधारित होते हैं, दुखद बात यह है कि उनकी वजह से आप वर्षों तक रुके रहते हैं, ज्यादातर लोग जिस क्षेत्र में खुद को अयोग्य मानते थे, बाद में उन्होंने उसी में महारत हासिल की। 

लेखक लुइसे हे के अनुसार जीवन में हमारी ज्यादातर समस्याओं की जड़ इस भावना में है कि "मैं पर्याप्त अच्छा नहीं हूं।"

डॉ.अल्फ्रेड एल्डर ने कहा है कि पाश्चात्य व्यक्ति की नैसर्गिक विरासत "हीनता" की भावनाएं हैं, जो बचपन में ही शुरू हो जाती हैं, और अधिकांशत: आजीवन चलती रहती है। 

अपने नकारात्मक विश्वासो, जिनमें से ज्यादातर गलत होते हैं, की वजह से कई लोग अकारण ही अपनी बुद्धि, प्रतिभा, क्षमता, रचनात्मकता या योग्यताओं को सीमित मान लेते हैं, लगभग हर मामले में यह विश्वास झूठे होते हैं।

डॉ. हॉवर्ड गार्डनर के अनुसार आपमें कम से कम दस अलग अलग बुद्धियाँ होती हैं, जिनमें से किसी एक में आप जीनियस हो सकते हैं, स्कूल कॉलेज में सिर्फ दो ही बुद्धियों को नापा जाता है, और उन्हीं पर ध्यान दिया जाता है, शाब्दिक और गणितीय। 

एक साइन बोर्ड पर लिखा था "ईश्वर {गॉड} घटिया सामान नहीं बनाता।" हर इंसान में किसी न किसी क्षेत्र में उत्कृष्ट बनने की क्षमता होती है आपका काम तो यह पता लगाना है कि उसकी उत्कृष्टता किसमें है।

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जीवन को समझने के लिए आपको पहले अपने आप को समझना होगा तभी आप जीवन को समझ पाएंगे जीवन एक पहेली नुमा है इसे हर कोई नहीं समझ पाता,  लोगों का जीवन चला जाता है और उन्हें यही पता नहीं होता कि हमें करना क्या था हमारा उद्देश्य क्या था हमारे विचार क्या थे हमारे जीवन में क्या परिवर्तन करना था हमारी सोच को कैसे विकसित करना था,  यह सारे बिंदु हैं जो व्यक्ति बिना सोचे ही इस जीवन को व्यतीत करता है और जब आखरी समय आता है तो केवल कुछ व्यक्तियों को ही एहसास होता है कि हमारा जीवन चला गया है कि हमें हमारे जीवन में यह परिवर्तन करने थे,  वही परिवर्तन व्यक्ति अपने बच्चों को रास्ता दिखाने के लिए करता है लेकिन वे परिवर्तन को सही मुकाम तक पहुंचाने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं यह तो उनकी आने वाली पीढ़ी को देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता है,  कि उनकी पीढ़ी कहां तक सक्षम हो पाई है और अपने पिता के उद्देश्य को प्राप्त कर पाने में सक्षम हो पाई है या नहीं, व्यक्ति का जीवन इतना स्पीड से जाता है कि उसके सामने प्रकाश का वेग भी धीमा नजर आता है, व्यक्ति अपना अधिकतर समय बिना सोचे समझे व्यतीत करता है उसकी सोच उसके उद्देश्य से

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सकारात्मक सोच महत्वपूर्ण है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है, अगर दिशा न दी जाए और नियंत्रित न किया जाए, तो सकारात्मक सोच जल्द ही विकृत होकर सिर्फ सकारात्मक इच्छा और सकारात्मक आशा बनकर रह सकती है।  लक्ष्य हासिल करने में एकाग्र और प्रभावी बनने के लिए सकारात्मक सोच को "सकारात्मक जानने" में बदलना होगा, आपको अपने अस्तित्व की गहराई में इस बात पर पूरा यकीन करना होगा कि आप किसी खास लक्ष्य को हासिल करने में जरुर सफल होंगे, आपको अपनी अंतिम सफलता के बारे में दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि कोई भी चीज आपको रोक नहीं सकती।  एक महत्वपूर्ण मानसिक नियम है, जो भी छाप छूटती हैं, वह व्यक्त जरूर होती है, आप अपने अवचेतन मन पर जो भी गहरी छाप छोड़ते हैं, वह अंततः आपके बाहरी जगत में अभिव्यक्त होती हैं, मानसिक प्रोग्रामिंग में आपका मकसद आपने अवचेतन मन पर अपने लक्ष्य की गहरी छाप छोड़ना है। मैं कई सालों तक अपने लक्ष्य पर काम करता रहा था, उन्हें साल में एक दो बार लिख लेता था, और मौका मिलने पर उनकी समीक्षा भी कर लेता था, इससे मेरे जीवन में अविश्वसनीय फर्क पड़ा, अक्सर मैं जनवरी में पूरे साल के लक्ष्यों की सूची बनाता