कैलिफोर्निया में एक टीचर को हर साल पाँच-छह हजार डॉलर का वेतन मिलता था। उसने एक दुकान में एक सुंदर सफेद अर्मीन कोट देखा, जिसका भाव 8,000 डॉलर था। उसने कहा, "इतना पैसा बचाने में तो मुझे कई साल लग जाएँगे। मैं इसका ख़र्च कभी नहीं उठा सकती। ओह, मैं इसे कितना चाहती हूँ!" इन नकारात्मक अवधारणाओं से विवाह करना छोड़कर उसने सीखा कि वह अपना मनचाहा कोट, कार या कोई भी दूसरी चीज़ हासिल कर सकती है और इसके लिए उसे संसार में किसी को चोट पहुँचाने की ज़रूरत नहीं है। मैंने उससे यह कल्पना करने को कहा कि उसने कोट पहन रखा है। कि कल्पना में वह इसका सुंदर फर छुए, महसूस करे और इसे सचमुच पहनने की भावना जगाए। वह रात को सोने से पहले अपनी कल्पना की शक्ति का इस्तेमाल करने लगी। उसने अपनी कल्पना में वह कोट पहना, उसे सहलाया, उस पर हाथ फेरा, जिस तरह कि कोई बच्ची अपनी गुड़िया के साथ करती है। वह ऐसा हर रात करती रही और आख़िरकार उसे इस सबका रोमांच महसूस हो गया। वह हर रात यह काल्पनिक कोट पहनकर सोने गई और इसे हासिल करने पर वह बहुत खुश थी। तीन महीने गुज़र गए, लेकिन कुछ नहीं हुआ। वह डगमगाने वाली थी, लेकिन उसने खुद को य...
जब आपके विश्वास प्रबल होते हैं, तभी वे विश्वास हकीकत में बदलते हैं, हार्वर्ड के डॉक्टर विलियम जेम्स ने 1905 में कहा था, "विश्वास वास्तविक तथ्य का निर्माण करता है।" उन्होंने आगे कहा था, कि "इंसान अपने अंदरूनी नजरिए को बदल कर अपनी जिंदगी के बाहरी पहलुओं को बदल सकता है।"
नेपोलियन हिल ने कहा था, "इंसान का दिमाग जो सोच सकता है, और यकीन कर सकता है, उसे वह हासिल भी कर सकता है।"
आप जिंदगी में जो भी करते या हासिल करते हैं आपका हर विचार, भावना या काम आपकी आत्म अवधारणा से नियंत्रित और निर्धारित होता हैं, आपकी आत्म अवधारणा आपके कार्य प्रदर्शन और प्रभाव के स्तर से पहले आती है, और उसकी भविष्यवाणी करती है, आपकी आत्म अवधारणा आपके मानसिक कंप्यूटर का मास्टर प्रोग्राम है, यह बुनियादी ऑपरेटिंग सिस्टम है, आप बाहरी संसार में जो भी हासिल करते हैं, वह आपकी आत्म अवधारणा का ही परिणाम है।
आपकी आत्म अवधारणा उन सारे विश्वासों, नजरियों, भावनाओं और रायों का महायोग है, जो आपकी अपने और संसार के बारे में होती हैं, इस वजह से आप हमेशा अपनी आत्म अवधारणा के अनुरूप ही काम करते हैं, चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक, खुद को सीमित करने वाले विश्वास सबसे बुरे होते हैं।
जब अल्बर्ट आइंस्टीन को सीखने में अक्षम करार देकर बचपन में ही स्कूल से घर भेज दिया गया था, उनके माता-पिता को बताया गया कि यह लड़का शिक्षित हो ही नहीं सकता, माता-पिता ने इस बात को मानने से इंकार कर दिया, और अंततः ऐसी व्यवस्था की, कि आइंस्टीन को उत्कृष्ट शिक्षा मिली।
डॉक्टर अल्बर्ट श्वेटजर को भी स्कूल में यही समस्या आई थी, दरअसल स्कूल वालों ने उनके माता-पिता को प्रोत्साहित किया कि वे उसे किसी मोची का एप्रेंटिस अर्थात चेला बना दे, ताकि बड़े होने पर उसके पास कम से कम एक सुरक्षित काम तो रहे, आइंस्टीन और श्वेटजर, दोनों ही ने बीस साल की उम्र से पहले ही डॉक्टरेट हासिल की, और बीसवीं सदी के इतिहास पर अपने कदमों के निशान छोड़े।
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जब आप अपनी सोच को बदलते हैं तो आप अपनी जिंदगी को भी बदल देते हैं।