धम्मपदं : दुखों से मुक्ति और सुख शांति के जीवन का मार्ग : महाकारुणिक तथागत बुद्ध के उपदेशों का यह 'धम्मपद' अनमोल, अमृत वचन है। मानव जीवन का परम उद्देश्य होता है दुखों से मुक्ति और सुख शांति को पाना। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह ग्रंथ परिपूर्ण है। 'धम्मपद' 'धम्म' का सरल अर्थ है सदाचार अर्थात 'सज्जनों' द्वारा जीवन में धारण करने, पालन करने योग्य कर्तव्य। और 'पद' शब्द का अर्थ यहां 'मार्ग' माना गया है। इस प्रकार 'धम्मपद' का अर्थ होगा- धम्म यानी सदाचार (Morality) का मार्ग। ग्रंथ में 'पद' शब्द का एक दूसरा अर्थ भी माना गया है। वह अर्थ है, किसी का कथन, वचन, शिक्षा, उपदेश या वाणी। इस ग्रंथ में 'धम्मपद' का सरल अर्थ है- भगवान बुद्ध के शील सदाचार सम्बंधी उपदेश, वचन या वाणी। इस प्रकार 'धम्मपद' का अर्थ है- धम्म वचन या धम्मवाणी या धम्म देशना। आज से 2600 साल पहले भगवान बुद्ध ने, बुद्धत्व प्राप्ति के बाद 45 साल तक मध्य देश की आम बोलचाल की भाषा में 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय लोकानुकम्पाय' का जो संदेश और उपदेश दिय...
जब आपके विश्वास प्रबल होते हैं, तभी वे विश्वास हकीकत में बदलते हैं, हार्वर्ड के डॉक्टर विलियम जेम्स ने 1905 में कहा था, "विश्वास वास्तविक तथ्य का निर्माण करता है।" उन्होंने आगे कहा था, कि "इंसान अपने अंदरूनी नजरिए को बदल कर अपनी जिंदगी के बाहरी पहलुओं को बदल सकता है।"
नेपोलियन हिल ने कहा था, "इंसान का दिमाग जो सोच सकता है, और यकीन कर सकता है, उसे वह हासिल भी कर सकता है।"
आप जिंदगी में जो भी करते या हासिल करते हैं आपका हर विचार, भावना या काम आपकी आत्म अवधारणा से नियंत्रित और निर्धारित होता हैं, आपकी आत्म अवधारणा आपके कार्य प्रदर्शन और प्रभाव के स्तर से पहले आती है, और उसकी भविष्यवाणी करती है, आपकी आत्म अवधारणा आपके मानसिक कंप्यूटर का मास्टर प्रोग्राम है, यह बुनियादी ऑपरेटिंग सिस्टम है, आप बाहरी संसार में जो भी हासिल करते हैं, वह आपकी आत्म अवधारणा का ही परिणाम है।
आपकी आत्म अवधारणा उन सारे विश्वासों, नजरियों, भावनाओं और रायों का महायोग है, जो आपकी अपने और संसार के बारे में होती हैं, इस वजह से आप हमेशा अपनी आत्म अवधारणा के अनुरूप ही काम करते हैं, चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक, खुद को सीमित करने वाले विश्वास सबसे बुरे होते हैं।
जब अल्बर्ट आइंस्टीन को सीखने में अक्षम करार देकर बचपन में ही स्कूल से घर भेज दिया गया था, उनके माता-पिता को बताया गया कि यह लड़का शिक्षित हो ही नहीं सकता, माता-पिता ने इस बात को मानने से इंकार कर दिया, और अंततः ऐसी व्यवस्था की, कि आइंस्टीन को उत्कृष्ट शिक्षा मिली।
डॉक्टर अल्बर्ट श्वेटजर को भी स्कूल में यही समस्या आई थी, दरअसल स्कूल वालों ने उनके माता-पिता को प्रोत्साहित किया कि वे उसे किसी मोची का एप्रेंटिस अर्थात चेला बना दे, ताकि बड़े होने पर उसके पास कम से कम एक सुरक्षित काम तो रहे, आइंस्टीन और श्वेटजर, दोनों ही ने बीस साल की उम्र से पहले ही डॉक्टरेट हासिल की, और बीसवीं सदी के इतिहास पर अपने कदमों के निशान छोड़े।
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जब आप अपनी सोच को बदलते हैं तो आप अपनी जिंदगी को भी बदल देते हैं।