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अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें

अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें। डेनियल काहनेमन की पुस्तक थिंकिंग, फास्ट एंड स्लो पिछले कुछ वर्षों में लिखी गई सर्वश्रेष्ठ और सबसे ज़्यादा गहन चिंतन वाली पुस्तकों में से एक है। वे बताते हैं कि हमें अपने दैनिक जीवन में जिन बहुत सी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, उनसे निपटने के लिए दो अलग-अलग प्रकार की सोच का इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है। तीव्र सोच का इस्तेमाल हम अल्पकालीन कामों, ज़िम्मेदारियों, गतिविधियों, समस्याओं और स्थितियों से निपटने के लिए करते हैं। इसमें हम जल्दी से और सहज बोध से काम करते हैं। ज़्यादातर मामलों में तीव्र सोच हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों के लिए पूरी तरह उचित होती है। दूसरी तरह की सोच का वर्णन काहनेमन धीमी सोच के रूप में करते हैं। इसमें आप पीछे हटते हैं और स्थिति के विवरणों पर सावधानीपूर्वक सोचने में ज़्यादा समय लगाते हैं और इसके बाद ही निर्णय लेते हैं कि आप क्या करेंगे। काहनेमन की ज्ञानवर्धक जानकारी यह है कि आवश्यकता होने पर भी हम धीमी सोच करने में असफल रहते हैं और इसी वजह से हम जीवन में कई ग़लतियाँ कर बैठते हैं। समय के प्रबंधन में उत्कृष्ट बनने और अपने

एक सामान्य व्यक्ति हिटलर कैसे बना पार्ट सेकंड

वियान में बिताया यह समय मेरे जीवन का सबसे अधिक उदासीनता का समय था आज भी उसकी स्मृति मुझे अत्यंत उदासीन बना देती है, फेसियन कस्बे में किस प्रकार मैंने गरीबी के पांच वर्ष बिताए, और उन पांच वर्षों में किस कठिनाई से मैं अपनी आजीविका कमाता था, यह सब बड़ा ही दुखद है। 

मैं पहले दैनिक श्रमिक रूप में और फिर लघु चित्रों के निर्माता चित्रकार के रूप में जीवन जीता था, यह दोनों धंधे बहुत कम आय वाले थे, इनसे होने वाली आय से तो मेरी भूख भी पूरी तरह नहीं मिटती थी, अब मैं क्या कहूं यह भूख तो मेरे जीवन की स्थाई साथी बन गई, जिसने मुझे कभी भी नहीं छोड़ा, मेरी हर आवश्यकता के साथ जुड़ी रही, मेरे लिए पुस्तक खरीदने का अर्थ था आने वाले दिनों में भूखा रहना।

फेसियन जाति के एक व्यक्ति से मेरी मित्रता हो गई, इस बेदर्द मित्र के साथ मेरा हमेशा झगड़ा रहता था, परंतु फिर भी उस दौरान इस मित्र से मैंने जितना सीखा उतना पहले कभी नहीं सीखा था, कभी वास्तुकला के अध्ययन के लिए तो कभी संगीत समारोह में जाने के लिए और फिर कभी पुस्तकें खरीदने के लिए मुझे भूखा रहना पड़ता था, इन तीनों के अतिरिक्त मुझे जीवन में और कुछ अच्छा नहीं लगता था। 

मैंने उन दिनों बहुत पढ़ा और पढ़ने के बाद उस पर गंभीरता से मनन किया, काम करने के बाद जितना समय बचता था, मैं निष्ठापूर्वक अध्ययन करता था, इस तरह कुछ ही वर्षों में मैंने ज्ञान का बृहद भंडार एकत्रित कर लिया, जो आज भी मेरे लिए लाभदायक हैं। 

उन वर्षों में मेरे मस्तिष्क में जीवन और संसार के प्रति एक निश्चित दृष्टिकोण स्थिर हो गया, और यह उस समय मेरे आचरण के स्थायी आधार बन गये, तब से इस आधार में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।

आज मेरा पक्का विश्वास है, कि सामान्यतया यौवन में ही रचनात्मक विचारों का आधार तैयार होता है, चाहे वे विचार कैसे भी क्यों न हो, मैं आयु की बुद्धिमता और यौवन की रचनात्मक प्रतिभा में अंतर करता हूं, आयु की बुद्धिमता अधिक गहराई और दूरदर्शिता से पैदा होती है, जो लंबे जीवन के अनुभवों पर आधारित होती है। 

जबकि यौवन की प्रतिभा विचारों और धारणाओं की असीम शक्ति से अंकुरित होती है, परंतु जिन्हें आधिक्य के कारण व्यवहार में नहीं लाया जा सकता, यह भविष्य के लिए भवन सामग्री और योजनाएं उपलब्ध करवाती है, यदि वर्षों की बुद्धिमता ने यौवन की रचनात्मक प्रतिभा को न बुझा दिया हो तो उनसे ही आयु के पत्थर लेकर इमारत का निर्माण होता है।

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