मैंने कई साल पहले ऑस्ट्रेलिया के एक किशोर के साथ काम किया था। यह किशोर डॉक्टर और सर्जन बनना चाहता था, लेकिन उसके पास पैसा नहीं था; न ही उसने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की थी। ख़र्च निकालने के लिए वह डॉक्टरों के ऑफिस साफ करता था, खिड़कियाँ धोता था और मरम्मत के छुटपुट काम करता था। उसने मुझे बताया कि हर रात जब वह सोने जाता था, तो वह दीवार पर टंगे डॉक्टर के डिप्लोमा का चित्र देखता था, जिसमें उसका नाम बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था। वह जहाँ काम करता था, वहाँ वह डिप्लोमाओं को साफ करता और चमकाता था, इसलिए उसे मन में डिप्लोमा की तस्वीर देखना या उसकी कल्पना करना मुश्किल नहीं था। मैं नहीं जानता कि उसने इस तस्वीर को देखना कितने समय तक जारी रखा, लेकिन उसने यह कुछ महीनों तक किया होगा। जब वह लगन से जुटा रहा, तो परिणाम मिले। एक डॉक्टर इस लड़के को बहुत पसंद करने लगा। उस डॉक्टर ने उसे औज़ारों को कीटाणुरहित करने, इंजेक्शन लगाने और प्राथमिक चिकित्सा के दूसरे कामों की कला का प्रशिक्षण दिया। वह किशोर उस डॉक्टर के ऑफिस में तकनीकी सहयोगी बन गया। डॉक्टर ने उसे अपने खर्च पर हाई स्कूल और बाद में कॉलेज भी भेजा। आज
एप्पल व पिक्सर के संस्थापक स्टीव जॉब्स प्रौद्योगिकी के महान नेतृत्वकर्ता थे, जिन्होंने जनसाधारण के मैकिनटोश व्यक्तिगत कंप्यूटर (पीसी) का आविष्कार किया था, फिर उसने आईपॉड नामक ऐसे क्रांतिकारी संगीत वादन उपकरण (म्यूजिक प्लेयर) की रचना की थी, जिसने विश्व संगीत उद्योग को हमेशा के लिए बदल दिया, और आईपॉड ने आईफोन के विकास का रास्ता साफ किया।
जॉब्स ने आईफोन में चल दूरभाष (मोबाइल फोन) व कंप्यूटर की विशेषताओं को समाहित कर सूचना प्रौद्योगिकियों (इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी) की संपूर्ण शक्तियों को जनसाधारण की मुट्ठियों में रख दिया था।
एप्पल में दोबारा वापस आने से पहले स्टीव जॉब्स ने पिक्सर एनीमेशन स्टूडियो के साथ कंप्यूटर जीव संचारण (एनिमेशन) क्षेत्र में प्रवेश किया था, और टॉय स्टोरी जैसी ऐसी उच्च गुणवत्ता की जीव संचारित कथाचित्रों (अनिमेटेड फीचर फिल्म) की रचनाए की थी, उद्योग की महारथी द वाल्ट डिजनी कंपनी ने पिक्सर को 7•4 अरब डॉलर के मूल्यांकन पर अपने पाले में झटक लिया था।
जॉब्स के जीवन का अंतिम नवाचार टेबलेट कंप्यूटर आईपैड था किसके माध्यम से उसने बहुत हद तक व्यक्तिगत कंप्यूटर (पीसी) की आवश्यकताओं को ही खत्म कर दिया था, वास्तव में स्टीव जॉब्स आईपैड के रूप में एक ऐसे उपकरण की रचना करना चाहता था, जो विश्व की सभी प्रकार की जानकारियों के साथ अपने छोटे से पर्दे पर मस्तिष्क की प्रसंस्करण शक्ति (प्रोसेसिंग पावर) का विस्तार कर सके।
प्रौद्योगिकी उद्योग में स्टीव जॉब्स ऐसा व्यक्ति (क्रांतिकारी नवाचारी) था, जो अपने ही उत्पादों की हत्या करने में भी कभी डरा नही था, स्टीव जॉब्स की करिश्माई नेतृत्व व निगरानी में एप्पल इतिहास के सबसे अधिक सफल कंपनियों में से गिना जाने लगा था।
वह वर्तमान की बजाय भविष्य की आवश्यकताओ व चुनौतियों पर अपना ध्यान केंद्रित कर पानें में सक्षम व सफल सिद्ध हुआ था, आध्यात्मिक तीव्रता (स्प्रिचुअल इंटेंसिटी) ने जॉब्स को थिंक डिफरेंट (अलग सोचो) के लिए, अर्थात बिल्कुल नई प्रकार की ऐसी चीजों की कल्पना करने के लिए बनाया था, जो दूसरे लोग देख नहीं सके।
जब जॉब्स किसी नए उत्पाद का शुभारंभ करता था, तो प्रौद्योगिकी समीक्षक सारी सीमाएं तोड़कर उसकी प्रशंसा करते थे, और अगली सुबह उसे सबसे पहले हासिल करने के लिए एप्पल स्टोर्स के सामने रात में उपभोक्ताओं की लंबी कतारें सजने लगती थी, यह सब स्टीव जॉब्स के प्रबन्धन सूत्र (मैनेजमेंट फार्मूला) का ही जादू था।
जुलाई 1997 की सुबह स्टीव जॉब्स कंपनी में वापस लौटा था, जिसकी उसने बीस वर्ष पूर्व अपने शयनकक्ष में सह स्थापना की थी।
उस समय एप्पल अपने अंत की ओर तेजी से बढ़ रही थी, कंपनी को दीवालिया होने में छः महीने का समय बचा था, एप्पल के मुख्यालय में शीर्ष अधिकारियों को सुबह की बैठक में बुलाया गया, तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सी.ई.ओ.) रहे गिलबर्ट अमेलियो का फेरबदल किया जाना था, उसने तब बस इतना ही कहा था, "यह मेरे लिए जाने का समय है" और कक्ष से बाहर चला गया, कोई कुछ भी प्रतिक्रिया करें, इससे पहले स्टीव जॉब्स ने कक्ष में प्रवेश किया, कोई उत्तर दे पाता, उससे पहले ही वह मानो फट पड़ा था, "यह उत्पाद है, उत्पाद बेकार है, उनमें अब कोई मौहकता नहीं बची है।"
20 दिसंबर 1996 को अमेलियो ने नेक्स्ट को 42•70 करोड़ डॉलर में अधिकृत करने की घोषणा की थी, और दोनों कंपनियों में विलय व कार्य समायोजन में मदद करने के लिए स्टीव जॉब्स को विशेष सलाहकार के रूप में एप्पल मुख्यालय में फिर से वापस आने का अवसर दे दिया था।
11 वर्षों बाद जॉब्स अपनी सह संस्थापित कंपनी एप्पल में आया था, देखिए इतिहास अपने आप को किस तरह दोहराता है, जिस जॉन स्कूली को स्टीव जॉब्स ने बड़ी उम्मीदों के साथ एप्पल का सीईओ बनाया था, उसी ने सन् 1985 में जॉब्स को अपनी कंपनी से बाहर हो जाने पर मजबूर कर दिया था, और अब स्टीव जॉब्स के द्वारा भी अमेलियो के साथ ऐसा ही कुछ होने वाला था।
स्टीव जॉब्स एप्पल में कोई औपचारिक भूमिका निभाने के लिए तैयार नहीं था, वह अपनी दूसरी कंपनी पिक्सर में सीईओ था, एप्पल के भविष्य के बारे में जॉब्स इतना अधिक उलझन में था, कि उसने जून 1997 में एप्पल के 15 लाख शेयरों (जो उसे पिक्सर के सौदे में मिले थे) को बहुत निचले भाव में बेच दिए थे, जॉब्स ने एप्पल का एकमात्र सांकेतिक शेयर अपने स्वामित्व में जरूर रखा हुआ था, ताकि एप्पल की वार्षिक आम बैठक में भाग लेने का हकदार बना रहे।
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