अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें। डेनियल काहनेमन की पुस्तक थिंकिंग, फास्ट एंड स्लो पिछले कुछ वर्षों में लिखी गई सर्वश्रेष्ठ और सबसे ज़्यादा गहन चिंतन वाली पुस्तकों में से एक है। वे बताते हैं कि हमें अपने दैनिक जीवन में जिन बहुत सी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, उनसे निपटने के लिए दो अलग-अलग प्रकार की सोच का इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है। तीव्र सोच का इस्तेमाल हम अल्पकालीन कामों, ज़िम्मेदारियों, गतिविधियों, समस्याओं और स्थितियों से निपटने के लिए करते हैं। इसमें हम जल्दी से और सहज बोध से काम करते हैं। ज़्यादातर मामलों में तीव्र सोच हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों के लिए पूरी तरह उचित होती है। दूसरी तरह की सोच का वर्णन काहनेमन धीमी सोच के रूप में करते हैं। इसमें आप पीछे हटते हैं और स्थिति के विवरणों पर सावधानीपूर्वक सोचने में ज़्यादा समय लगाते हैं और इसके बाद ही निर्णय लेते हैं कि आप क्या करेंगे। काहनेमन की ज्ञानवर्धक जानकारी यह है कि आवश्यकता होने पर भी हम धीमी सोच करने में असफल रहते हैं और इसी वजह से हम जीवन में कई ग़लतियाँ कर बैठते हैं। समय के प्रबंधन में उत्कृष्ट बनने और अपने
प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई डर विद्यमान रहता हैं, जैसे जैसे व्यक्ति बड़ा होता है, बड़े होने के साथ ही दो खास किस्म के डर हम सभी में घर कर जाते हैं, नाकामी या नुकसान का डर और आलोचना या अस्वीकृति का डर, किसी चीज को पाने के लिए विलक्षण दिमाग के इस्तेमाल की बजाय हम अपनी तर्कशक्ति को यह साबित करने पर खर्च करने लगते हैं कि हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते और हम जो चाहते हैं वह हमारे लिए क्यों असंभव हैं।
लेखक आर्थर गोर्डन ने आईबीएम के संस्थापक थॉमस जे वॉटसन से एक बार पूछा कि लेखक के तौर पर जल्दी से कामयाब होने के लिए उन्हें क्या करना होगा ?
अमेरिकी कारोबारी जगत के धुरंधर थॉमस जे वॉटसन ने इस सवाल का जवाब इन शब्दों में दिया, "अगर आप तेजी के साथ कामयाब होना चाहते हैं, तो आपको अपनी नाकामयाब होने की दर को भी दुगना करना होगा, दरअसल कामयाबी तो नाकामयाबी के दूसरे सिरे पर रहती है।"
आप जितने ज्यादा नाकाम होंगे, संभावना यही है कि कामयाबी आपके उतने ही करीब होगी, आपकी नाकामयाबियों ने आपको कामयाबी हासिल करने के लिए तैयार कर दिया है।
जब कभी भी कुछ समझ ना पड़े तो "नाकामयाबी की दर को दुगना कर दें" किसी भी डर पर काबू पाने के लिए आपको उसी काम को करना चाहिए जिसमें डर लग रहा हो तब तक जब तक, कि आप पर डर का कोई प्रभाव न बचे।
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जब आप अपनी सोच को बदलते हैं तो आप अपनी जिंदगी को भी बदल देते हैं।