अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें। डेनियल काहनेमन की पुस्तक थिंकिंग, फास्ट एंड स्लो पिछले कुछ वर्षों में लिखी गई सर्वश्रेष्ठ और सबसे ज़्यादा गहन चिंतन वाली पुस्तकों में से एक है। वे बताते हैं कि हमें अपने दैनिक जीवन में जिन बहुत सी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, उनसे निपटने के लिए दो अलग-अलग प्रकार की सोच का इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है। तीव्र सोच का इस्तेमाल हम अल्पकालीन कामों, ज़िम्मेदारियों, गतिविधियों, समस्याओं और स्थितियों से निपटने के लिए करते हैं। इसमें हम जल्दी से और सहज बोध से काम करते हैं। ज़्यादातर मामलों में तीव्र सोच हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों के लिए पूरी तरह उचित होती है। दूसरी तरह की सोच का वर्णन काहनेमन धीमी सोच के रूप में करते हैं। इसमें आप पीछे हटते हैं और स्थिति के विवरणों पर सावधानीपूर्वक सोचने में ज़्यादा समय लगाते हैं और इसके बाद ही निर्णय लेते हैं कि आप क्या करेंगे। काहनेमन की ज्ञानवर्धक जानकारी यह है कि आवश्यकता होने पर भी हम धीमी सोच करने में असफल रहते हैं और इसी वजह से हम जीवन में कई ग़लतियाँ कर बैठते हैं। समय के प्रबंधन में उत्कृष्ट बनने और अपने
जब हिटलर पहली बार वियना गया, उस समय उसकी उम्र 16 वर्ष की भी नहीं थी, उस दौरान वियना में हिटलर की माता का देहांत हो गया, जब हिटलर ने "अकैडमी आफ फाइन आर्ट्स" की परीक्षा दी, तो हिटलर का मानना था, कि मैं चित्रकला के स्थान पर रेखाचित्र अर्थात वास्तुकला में अधिक योग्य हूं, जब उन्होंने परीक्षा का परिणाम सुना, कि वे परीक्षा में फेल हो गए हैं, तो उन्हें ऐसा लगा, जैसे उन पर बिजली टूट गई हो, उस समय वे दूसरी बार वियना आए थे।
कुछ ही दिनों में उन्हें एहसास हो गया, कि मुझे वास्तुकार बनना चाहिए, पर यह रास्ता बहुत कठिन था, मानवीय मापदंडों के अनुसार चित्रकला में प्रशिक्षण पाने का मेरा शौक अब संभावनाओं से परे लग रहा था, मेरी माता की मृत्यु के बाद मैंने अब निश्चय कर लिया कि मैं वास्तुकार ही बनूंगा,
मेरे पिता का चित्र हमेशा मेरे सामने रहता था जो एक गरीब मोची के बेटे थे उन्होंने अपने ही प्रयासों से सरकारी नौकरी प्राप्त की थी।
जैसे-जैसे मेरी मुश्किलें बढ़ती गई, वैसे-वैसे मेरे इरादे भी पक्के होते गए, और अंत में मेरे विश्वास की जीत हुई, मैं अपने जीवन के इस चरण का आभारी हूं, क्योंकि इस समय से ही मैं अधिक से अधिक मजबूत होता गया, और इतना अधिक शक्तिशाली बन गया, जैसा कि आज मैं आप लोगों के सामने हूं।
मैं तो जीवन की कठोर परिस्थितियों के प्रति अपना और भी अधिक आभार प्रकट करता हूं, क्योंकि इनकी कृपा से ही में जीवन में आराम के खोखलेपन से मुक्त हो सका, परंतु मुझे जिन प्रतिकूल परिस्थितियों को सौंप दिया गया, वह एक प्रकार से मेरी नई मां थी, मैंने इसे दुर्भाग्य समझ कर इसके विरुद्ध विद्रोह भले ही किया हो, परंतु वास्तव में मैं बड़ा कृतज्ञ हूं, कि मुझे दीनता और गरीबी में धकेल दिया गया, और इस तरह मुझे मालूम हो गया, कि जीवन में मुझे किस प्रकार संघर्ष करना है।
इस काल में ही मुझे उन संकटों की पहचान हुई, जिनकी अब तक न तो मुझे कोई जानकारी थी, और न ही मुझे मालूम था, कि उनका अस्तित्व जर्मन लोगों के लिए कितना भयानक था, यह दो संकट थे, मार्क्सवाद और यहूदीवाद।
वियना में बिताया यह समय मेरे जीवन का सबसे अधिक उदासीनता का समय था, आज भी उसकी स्मृति मुझे अत्यंत उदासीन बना देती है, फ्रेसियन कस्बे में किस प्रकार मैंने गरीबी के 5 वर्ष बिताए, और उन 5 वर्षों में किस कठिनाई से मैं अपनी आजीविका कमाता था, यह सब बड़ा ही दु:खद है, मैं पहले दैनिक श्रमिक के रूप में, और फिर लघु चित्रों के निर्माता चित्रकार के रूप में जीवन जीता था, यह दोनों धंधे बहुत कम आय वाले थे।
इनसे होने वाली आय से तो मेरी भूख भी पूरी तरह नहीं मिटती थी, अब मैं क्या कहूं, यह भूख तो मेरी जीवन की स्थायी साथी बन गई, जिसने मुझे कभी भी नहीं छोड़ा, मेरी हर आवश्यकता के साथ जुड़ी रही, मेरे लिए पुस्तक खरीदने का अर्थ था, आने वाले दिनों में भूखा रहना।
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जब आप अपनी सोच को बदलते हैं तो आप अपनी जिंदगी को भी बदल देते हैं।