अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें। डेनियल काहनेमन की पुस्तक थिंकिंग, फास्ट एंड स्लो पिछले कुछ वर्षों में लिखी गई सर्वश्रेष्ठ और सबसे ज़्यादा गहन चिंतन वाली पुस्तकों में से एक है। वे बताते हैं कि हमें अपने दैनिक जीवन में जिन बहुत सी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, उनसे निपटने के लिए दो अलग-अलग प्रकार की सोच का इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है। तीव्र सोच का इस्तेमाल हम अल्पकालीन कामों, ज़िम्मेदारियों, गतिविधियों, समस्याओं और स्थितियों से निपटने के लिए करते हैं। इसमें हम जल्दी से और सहज बोध से काम करते हैं। ज़्यादातर मामलों में तीव्र सोच हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों के लिए पूरी तरह उचित होती है। दूसरी तरह की सोच का वर्णन काहनेमन धीमी सोच के रूप में करते हैं। इसमें आप पीछे हटते हैं और स्थिति के विवरणों पर सावधानीपूर्वक सोचने में ज़्यादा समय लगाते हैं और इसके बाद ही निर्णय लेते हैं कि आप क्या करेंगे। काहनेमन की ज्ञानवर्धक जानकारी यह है कि आवश्यकता होने पर भी हम धीमी सोच करने में असफल रहते हैं और इसी वजह से हम जीवन में कई ग़लतियाँ कर बैठते हैं। समय के प्रबंधन में उत्कृष्ट बनने और अपने
व्यक्ति के जन्म से ही उसके शरीर के साथ उसकी आत्मा का संबंध रहता हैं, लेकिन यह संबंध कब तक रहता हैं, सभी लोग मानते हैं, या ऐसी धारणा है, कि व्यक्ति जब तक जीवित रहता है, उसकी आत्मा उसमें निवास करती है।
यह सही है, कि व्यक्ति जब तक जीवित हैं, तब तक उसमें आत्मा रहती हैं, लेकिन यह आत्मा कब तक उसमे क्रियाशील रहती हैं, इसके बारे में कोई कुछ नहीं बता सकता।
आत्मा की क्रियाशीलता उसके आत्मबोध पर निर्भर करती है, अगर आपकी सोच पॉजिटिव है, और आपकी आत्मा आपको रास्ता दिखाती है, तो आपकी आत्मा क्रियाशीलता है, इसके विपरित अगर आपकी सोच नेगेटिव है, और आपकी आत्मा आपको रास्ता नहीं दिखाती है, तो इसका सीधा मतलब है, कि आपकी आत्मा आपमें शून्य के समान निवास तो करती है, लेकिन आपको रास्ता नहीं दिखाती है, अर्थात आपकी आत्मा शांत अवस्था में चली गई हैं, अगर इसे सही अर्थ में समझा जाए, जिसे मानवीय भाषा कहते हैं, तो इसका सीधा मतलब है, कि व्यक्ति की आत्मा मर चुकी है।
अगर व्यक्ति की आत्मा मर चुकी है, तो यह आत्मा वापस कब जीवित होगी, इसके बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता, आत्मा का संबंध सीधा आत्मबोध से हैं, जब व्यक्ति का आत्मबोध, उसकी क्रियाओं से क्रियाशील होता है, तो उसकी आत्मा स्वत ही जीवित हो जाती है, और व्यक्ति को आत्मबोध होने लग जाता है, आत्मबोध का संबंध सीधा आत्मा से हैं, जो व्यक्ति को हर राह पर रास्ता दिखाती है।
यह तो मान सकते है, कि व्यक्ति की सोच का संबंध उसकी आत्मा से होता है, अगर उसकी सोच पॉजिटिव है, तो उसकी आत्मा क्रियाशील हैं, अगर उसकी सोच नेगेटिव है, तो उसकी आत्मा कब शून्य व्यवस्था में चली जाएगी, उसे स्वयं को ही मालूम नहीं होगा।
किसी भी चीज को प्राप्त करने से पहले आपको यह सोचना होगा, कि आपने उसके लिए क्या प्रयत्न किया है, अगर आपने उसके लिए कुछ भी प्रयत्न नहीं किया है, तो जिस तरह वह चीज आपको प्राप्त हुई थी, और जिस तेजी से प्राप्त हुई थी, उसी तेजी से वापस चली जाएगी।
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जब आप अपनी सोच को बदलते हैं तो आप अपनी जिंदगी को भी बदल देते हैं।