कैलिफोर्निया में एक टीचर को हर साल पाँच-छह हजार डॉलर का वेतन मिलता था। उसने एक दुकान में एक सुंदर सफेद अर्मीन कोट देखा, जिसका भाव 8,000 डॉलर था। उसने कहा, "इतना पैसा बचाने में तो मुझे कई साल लग जाएँगे। मैं इसका ख़र्च कभी नहीं उठा सकती। ओह, मैं इसे कितना चाहती हूँ!" इन नकारात्मक अवधारणाओं से विवाह करना छोड़कर उसने सीखा कि वह अपना मनचाहा कोट, कार या कोई भी दूसरी चीज़ हासिल कर सकती है और इसके लिए उसे संसार में किसी को चोट पहुँचाने की ज़रूरत नहीं है। मैंने उससे यह कल्पना करने को कहा कि उसने कोट पहन रखा है। कि कल्पना में वह इसका सुंदर फर छुए, महसूस करे और इसे सचमुच पहनने की भावना जगाए। वह रात को सोने से पहले अपनी कल्पना की शक्ति का इस्तेमाल करने लगी। उसने अपनी कल्पना में वह कोट पहना, उसे सहलाया, उस पर हाथ फेरा, जिस तरह कि कोई बच्ची अपनी गुड़िया के साथ करती है। वह ऐसा हर रात करती रही और आख़िरकार उसे इस सबका रोमांच महसूस हो गया। वह हर रात यह काल्पनिक कोट पहनकर सोने गई और इसे हासिल करने पर वह बहुत खुश थी। तीन महीने गुज़र गए, लेकिन कुछ नहीं हुआ। वह डगमगाने वाली थी, लेकिन उसने खुद को य...
समय का वह दौर था, जब मैंने अपने जीवन के प्रारंभिक ध्येय निश्चित करने शुरू किये, मेरा ख्याल है कि मेरे अंदर छिपा हुआ बोलने का गुण अब विकसित और निश्चित रूप धारण कर रहा था मैं अपने साथियों से थोड़ी बहुत परंतु जोरदार बहस किया करता था, मैं अब एक ऐसा किशोर नेता बन चुका था।
एक बार पिताजी की किताबों को उलटते पलटते मेरे हाथ कुछ ऐसे प्रकाशन लगे, जो सैनिक विषयों से संबंधित थे, इन प्रकाशनों में से एक पुस्तिका सन 1870–71 के फ्रांसीसी–जर्मन युद्ध के लोकप्रिय इतिहास से संबंधित थी,
यह उन वर्षों की घटनाओं से जुड़ी दो खंडों में विभक्त एक प्रसिद्ध पत्रिका थी, पढ़ने के लिए मुझे यह सामग्री बहुत पसंद आई, इसे पढ़ने के बाद थोड़े ही समय में एक तीव्र संघर्ष मेरे मस्तिष्क में अपना स्थान बनाने लगा और तब से मैं युद्ध तथा सैनिक मामलों से जुड़ी उस घटना को बारीकी से जानने के लिए उत्सुक रहने लगा।
फ्रांसीसी जर्मन युद्ध की वह कहानी मेरे लिए कई अन्य कारणों में से भी महत्वपूर्ण थी मेरे मस्तिष्क में हालांकि उस समय यह सब अस्पष्ट था कि क्या युद्ध में लड़ने वाले जर्मन निवासियों और अन्य जर्मन निवासियों में कोई अंतर है अगर है तो वह क्या है ऑस्ट्रिया ने इस युद्ध में भाग क्यों नहीं लिया मेरे पिता और अन्य लोगों ने उस संघर्ष में भाग क्यों नहीं लिया क्या हम जर्मन निवासी अन्य जर्मन निवासियों की तरह नहीं है क्या हम एक दूसरे से परस्पर जुड़े हुए नहीं हैं।
यह पहला अवसर था कि जब इस समस्या ने मेरे छोटे से मस्तिष्क को उत्तेजित करना प्रारंभ कर दिया, मेरे पिताजी ने मन ही मन यह विचार बनाया कि उनका लड़का एक सरकारी कर्मचारी बन जाए, वास्तव में उन्होंने मेरे लिए यह व्यवसाय बहुत पहले से ही तय कर लिया था, मेरे पिताजी कभी सोच भी नहीं सके होंगे कि मैं उस सब को नकार दूंगा जो उनके अपने जीवन के लिए बहुत कुछ था।
उस समय मेरी आयु 11 वर्ष की थी जहां मेरे पिता कठोर और दृढ़ निश्चय के व्यक्ति थे वहां उनका लड़का भी ऐसे विचारों को नकारने में कम जिद्दी नहीं था लड़के के लिए तो उनके विचारों का कोई मूल्य नहीं था
हिटलर का सरकारी नौकर न बनने का निश्चय अटल था, उनके विचार थे, कि यह सोच कर मेरा दिल कांप जाता था कि एक दिन मुझे सरकारी स्टूल से बांध दिया जाएगा, तथा मैं अपनी इच्छा के अनुसार समय नहीं बिता पाऊंगा, बल्कि मुझे फॉर्म भरते हुए ही सारी आयु काटनी पड़ेगी।
मेरा अपना पक्का निर्णय था कि मैं सरकारी कर्मचारी नहीं बनूंगा, उस समय मेरी आयु केवल 12 वर्ष की थी, एक दिन मुझे स्पष्ट रूप से लगा, कि मैं चित्रकार अर्थात एक कलाकार बनूंगा, जब मैंने मेरे पिता की मनचाही योजना को मानने से इनकार कर दिया, तो मेरे पिता ने पहली बार मुझसे पूछा, तुम क्या करना चाहते हो, क्या तुम एक कलाकार अर्थात एक रंगकर्मी बनोगे, मेरे पिता ने साफ कह दिया कि मैं कलाकार बनने की आशा छोड़ दूं, मैं एक कदम और आगे बढ़ा, और मैंने घोषणा कर दी, कि मैं कलाकार के सिवाय और कुछ नहीं बनूंगा, स्थिति की विषमता को देखकर मैंने चुप्पी साध ली, और अपने निर्णय को अमल में लाना शुरू कर दिया।
देखा जाए तो मेरा सबसे लोकप्रिय विषय भूगोल था, उससे भी बढ़कर सामान्य इतिहास मुझे विशेष प्रिय था यह दोनों विषय मेरी रुचि के थे और इनमें मैं कक्षा में सबसे आगे था।
मैं जब बीते वर्षो की ओर मुड़कर देखता हूं, और उन दिनों के अपने अनुभवों के परिणाम का विश्लेषण करता हूं, तो दो अत्यंत महत्वपूर्ण तथ्य उभरकर मेरी आंखों के सामने आ जाते हैं : प्रथम मेरा राष्ट्रवादी बनना तथा दूसरा मेरा इतिहास को सही अर्थ में समझने लगना।
आज जबकि मेरी राजनीतिक विरोधी मेरे जीवन में बड़ी होशियारी से ताक झांक और उधेड़ बुन करते हैं, तो मुझे अपने बचपन के वे दिन याद आ जाते हैं, और मैं स्वयं चकित हो उठता हूं, कि मैं जवानी में किस प्रेरणा से प्रकृति का अनुरागी था, आज मैं अपने कार्य को उचित समझता हूं, जब मैं खुशी के उन दिनों की ओर मुड़ कर देखता हूं, तो मुझे बहुत प्रसन्नता होती है, और उनकी याद से मुझे काफी राहत मिलती है।
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