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अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें

अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें। डेनियल काहनेमन की पुस्तक थिंकिंग, फास्ट एंड स्लो पिछले कुछ वर्षों में लिखी गई सर्वश्रेष्ठ और सबसे ज़्यादा गहन चिंतन वाली पुस्तकों में से एक है। वे बताते हैं कि हमें अपने दैनिक जीवन में जिन बहुत सी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, उनसे निपटने के लिए दो अलग-अलग प्रकार की सोच का इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है। तीव्र सोच का इस्तेमाल हम अल्पकालीन कामों, ज़िम्मेदारियों, गतिविधियों, समस्याओं और स्थितियों से निपटने के लिए करते हैं। इसमें हम जल्दी से और सहज बोध से काम करते हैं। ज़्यादातर मामलों में तीव्र सोच हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों के लिए पूरी तरह उचित होती है। दूसरी तरह की सोच का वर्णन काहनेमन धीमी सोच के रूप में करते हैं। इसमें आप पीछे हटते हैं और स्थिति के विवरणों पर सावधानीपूर्वक सोचने में ज़्यादा समय लगाते हैं और इसके बाद ही निर्णय लेते हैं कि आप क्या करेंगे। काहनेमन की ज्ञानवर्धक जानकारी यह है कि आवश्यकता होने पर भी हम धीमी सोच करने में असफल रहते हैं और इसी वजह से हम जीवन में कई ग़लतियाँ कर बैठते हैं। समय के प्रबंधन में उत्कृष्ट बनने और अपने

"हिटलर" एडोल्फ हिटलर कैसे बना

जर्मनी की कुछ ऐसी घटनाएं हैं उन घटनाओं ने हिटलर को काफी प्रभावित किया है उनमें से कुछ घटनाएं इस प्रकार है इन घटनाओं ने हिटलर को एडोल्फ हिटलर बना दिया :

सन 1792 से 1814 तक फ्रांसीसी क्रांतिकारी सेनाओं ने जर्मनी को अपने कब्जे में ले रखा था, होइनलिंडन में हुई ऑस्ट्रिया की पराजय में बवेरिया का भी हाथ था, फ्रांसिसियों ने म्यूनिख पर कब्जा कर लिया, सन 1805 में नेपोलियन ने बवेरियन डलेक्टर को बवेरिया का राजा बना दिया, और बदले में उसने 30,000 सैनिकों को जुटाकर प्रत्येक युद्ध में नेपोलियन की सहायता की, इस तरह बवेरिया पूरी तरह से फ्रांसिसियों की जागीर बन गया, यह जर्मनी के घोर अपमान का समय था, इस घटना ने बालक हिटलर को बहुत प्रभावित किया था।

दक्षिणी जर्मनी में सन 1800 में "जर्मनी का घोर अपमान" शीर्षक से एक पुस्तिका छपी, इस पुस्तक का विवरण करने वालों में न्यूरमबर्ग का पुस्तक विक्रेता जाहन्ज फिलिप पल्म भी था, उसे एक बवेरियन एजेंट ने फ्रांसीसियों को सौंप दिया, लेकिन मुकदमे के समय उसने लेखक का नाम बताने से इनकार कर दिया, अतः 26 अगस्त 1806 को नेपोलियन के आदेश से उसे ब्राउनाउ ऑन द इन में गोली से उड़ा दिया गया,
 इस स्थान पर उसकी याद एक स्मारक बनाया गया, जनता द्वारा बनाए गए शहीद स्मारकों के अंतर्गत इस स्थान ने बालक हिटलर को काफी प्रभावित किया।

शलागेटर ब्राह विज्ञान का एक जर्मन विद्यार्थी था, जिसने सन 1914 में सेना में प्रवेश किया, वह एक तोपखाने का अधिकारी बन गया, और उसने दोनों श्रेणियों के "आयरन क्रॉस" जीत लिये, जब फ्रांस ने सन 1923 में रूहर पर कब्जा किया, तो उसने जर्मनी की ओर से सत्याग्रह का संयोजन किया, जिससे फ्रांस में कोयला आसानी से न जा सके, इसलिए उसने और उसके साथियों ने एक रेलवे पुल को उड़ा दिया, जिससे एक जर्मन मुखबिर ने उन सबको फ्रांसिसियों के हवाले कर दिया।
शलागेटर ने पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली, और फ्रांसीसी न्यायालय ने उसे मृत्यु दंड दिया, जबकि उसके साथियों को अलग-अलग समय के लिए कारावास या गुलामी की सजा दी गई, शलागेटर ने उनको पहचानने से भी इंकार कर दिया, जिन्होंने उसे पुल उड़ाने का आदेश दिया था, और उसने न्यायालय से माफी मांगने से भी इंकार कर दिया, 26 मई 1923 को एक फ्रांसीसी फौजी दस्ते ने उसे गोली से उड़ा दिया, उस समय सिवयरिंग जर्मनी के गृहमंत्री थे, ऐसा माना जाता है कि शलागेटर की ओर से उन्हें ज्ञापन दिए गए, पर उन्होंने हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया। 

इस प्रकार रूहर पर फ्रांसीसी कब्जे को रोकने में वह मुख्य शहीद बन गया, और उसे "राष्ट्रीय समाजवादी आंदोलन" के महान बलिदानियों में से एक माना जाता है, वह बहुत ही जल्दी आंदोलन में शामिल हो गया था उसकी सदस्यता कार्ड की संख्या 61 थी, इस घटना ने भी बालक हिटलर को काफी प्रभावित किया...... 

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