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अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें

अपने विचार और मिशन के बारे में सोचें। डेनियल काहनेमन की पुस्तक थिंकिंग, फास्ट एंड स्लो पिछले कुछ वर्षों में लिखी गई सर्वश्रेष्ठ और सबसे ज़्यादा गहन चिंतन वाली पुस्तकों में से एक है। वे बताते हैं कि हमें अपने दैनिक जीवन में जिन बहुत सी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, उनसे निपटने के लिए दो अलग-अलग प्रकार की सोच का इस्तेमाल करने की ज़रूरत होती है। तीव्र सोच का इस्तेमाल हम अल्पकालीन कामों, ज़िम्मेदारियों, गतिविधियों, समस्याओं और स्थितियों से निपटने के लिए करते हैं। इसमें हम जल्दी से और सहज बोध से काम करते हैं। ज़्यादातर मामलों में तीव्र सोच हमारी रोज़मर्रा की गतिविधियों के लिए पूरी तरह उचित होती है। दूसरी तरह की सोच का वर्णन काहनेमन धीमी सोच के रूप में करते हैं। इसमें आप पीछे हटते हैं और स्थिति के विवरणों पर सावधानीपूर्वक सोचने में ज़्यादा समय लगाते हैं और इसके बाद ही निर्णय लेते हैं कि आप क्या करेंगे। काहनेमन की ज्ञानवर्धक जानकारी यह है कि आवश्यकता होने पर भी हम धीमी सोच करने में असफल रहते हैं और इसी वजह से हम जीवन में कई ग़लतियाँ कर बैठते हैं। समय के प्रबंधन में उत्कृष्ट बनने और अपने

बीमारी किसके अनुरूप घटती बढ़ती है क्या आपको पता है

जब किसी व्यक्ति मैं बीमारी के लक्षण नजर आते हैं और उसको मालूम होता है कि मैं बीमार हूं तो वह उसका इलाज लेने के लिए किसी डॉक्टर के पास जाता है और डॉक्टर द्वारा उसके बीमारी का पता बताया जाता है कि आप में यह बीमारी है जब व्यक्ति को यह पता हो जाता है कि मुझ में इस प्रकार की बीमारी है तो यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह उस बीमारी को कितना महत्व देता है।

अगर वह दिन भर उसी बीमारी के बारे में सोचता है तो वह बीमारी धीरे-धीरे उसके शरीर पर हावी होने लग जाएगी और एक समय आएगा कि इस बीमारी का इलाज होना बंद हो जाएगा और वह इस बीमारी से पूर्ण रूप से ग्रसित हो जाएगा।

व्यक्ति का दिमाग उसी प्रकार चलता है जिस प्रकार उसके शरीर की क्रिया चलती है यह आप पर निर्भर करता है क्या आप किसी को कितना महत्व दे पाते हैं।

इस सांसारिक जीवन में एक विशेष बात यह है कि आप जिस को महत्व देते हैं वह धीरे-धीरे बढ़ने लगती है चाहे वह आपका शरीर हो या आपके पास रुपया हो या बीमारी हो इन सभी का दायरा व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह किस को कितना महत्व देता है जिसको जितना अधिक महत्व देगा वह उतना तीव्र गति से बढ़ेगा इसलिए इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए।

कि जब भी आपके शरीर में किसी प्रकार की बीमारी उत्पन्न हो तो आप उसका इलाज ले जरूर लेकिन उस बीमारी को अपने दिमाग में स्थान कभी ना दें जब आप उस को स्थान नहीं देंगे तो धीरे-धीरे वह बीमारी आपके शरीर से खत्म हो जाएगी और आने वाले समय में जो आप मेडिसन ले रहे होते हैं उनकी आवश्यकता भी खत्म हो जाएगी।

यह सब शरीर में किस प्रकार होता है यह भी जानना आवश्यक है जब किसी बीमारी के बारे में हम जानते हैं या सुनते हैं तो उस समय हमारे ऊपर उसका प्रभाव नहीं होता है अगर हम उसको स्थान नहीं देते हैं तो जिस प्रकार हम उसको सुनते हैं वैसे ही वह हमारे दिमाग से बाहर चली जाती है और हमारे पर उसका प्रभाव नहीं होता, अगर हमारा दिमाग उसको स्थान देता है और हमें ही मालूम नहीं होता कि हमने इसको स्थान दिया है तो उसका प्रभाव लंबे समय बाद जिसकी अवधि आप निश्चित नहीं कर सकते देखने को मिलता है।

जिस प्रकार आपका दिमाग आपके शरीर को आपके हारमोंस के द्वारा नियंत्रण प्रदान करता है उसी प्रकार जब आप किसी बीमारी को स्थान दे देते हैं तो आप पर निर्भर करता है कि आप उसको कितना महत्व कम दे पाते हैं और कितना दिमाग से बाहर निकाल पाते हैं जब आपके दिमाग से उस बीमारी का स्थान समाप्त हो जाएगा तो ऑटोमेटिकली आपके शरीर से वह बीमारी समाप्त हो जाएगी। 

बीमारी समाप्त करने में मुख्य भूमिका आपके दिमाग की होती हैं जो आपके शरीर के हारमोंस को नियंत्रण प्रदान करता है हारमोंस ऐसी शक्ति होती हैं जो शरीर को बनाने व बिगाड़ने का काम करता है इसलिए यह आप पर निर्भर करता है कि आप अपने दिमाग पर कितना कंट्रोल रख पाते हो।

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